मॉस्को में भारी उम्मीदों और शंकाओं के बीच भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की गुरुवार रात को हुई बातचीत के नतीजे किसी ठोस सकारात्मक निष्कर्ष पर पहुंचते नहीं दिखते हैं। बातचीत के बाद शांति की दिशा में बढ़ने वाला कोई ठोस दिखावटी एलान नहीं होने पर रक्षा हलकों में चीन के इरादों पर शक जाहिर किया जा रहा है। बातचीत के दौरान दोनों विदेश मंत्रियों ने दो टूक शब्दों में एक-दूसरे से कहा कि वे अपने सैनिक पीछे ले जाएं।
दोनों ने एक-दूसरे के सैनिकों पर भड़काने वाला कदम उठाने का आरोप लगाया। जैसे गत चार सितम्बर को मॉस्को में भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की वार्ता कड़े तेवरों के साथ समाप्त हुई थी, वैसे ही यह कहा जाए कि विदेश मंत्रियों की वार्ता भी एक-दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों और एक-दूसरे को नसीहतों के साथ समाप्त हुई तो ग़लत नहीं होगा।
विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक़, इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग ई से साफ कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सेना द्वारा की गई भारी सैन्य तैनाती की कोई वजह नहीं थी और यह बेहद चिंताजनक है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि एलएसी पर भारी संख्या में चीनी सैनिकों की जमावट 1993 और 1996 के विश्वास निर्माण समझौतों के विपरीत है और इससे संघर्ष की स्थिति पैदा हुई है। चीनी पक्ष ने इसके लिये विश्वसनीय तर्क पेश नहीं किया है।
जयशंकर ने कहा कि एलएसी पर जिस तरह चीनी सेना ने भड़काने वाली कार्रवाई की है, वह द्विपक्षीय समझौतों और सहमतियों की भावनाओं के विपरीत है।
बैठक में भारतीय पक्ष ने साफ कहा कि सीमांत इलाकों के संबंध में समझौतों का पूरा पालन हो। भारत की ओर से यह भी कहा गया कि एलएसी को एकपक्षीय तौर पर बदलने की किसी भी कोशिश को भारत स्वीकार नहीं करेगा और भारतीय पक्ष ने सीमा प्रबंध के सभी समझौतों का सटीक पालन किया है।
ग़लती नहीं मानेगा ड्रैगन
भारत की ओर से विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश मंत्री वांग ई की बातचीत के बाद दोनों ओर से साझा तौर पर तैयार संयुक्त बयान को जारी करना एक अच्छी पहल है लेकिन चीन की ओर से साझा बयान जारी करने के बदले अपना स्वतंत्र बयान जारी किया गया है जिसके वाक्यों के निहितार्थ समझने की कोशिश की जाए तो साफ दिखता है कि चीन ने सीमा पर तनाव दूर करने के लिये सारा दारोमदार भारत पर छोड़ दिया है।
हालांकि साझा बयान में सीमांत इलाक़ों में तनाव दूर करने के लिये पांच बिंदुओं पर सहमति के अनुरूप आगे बढ़ने का संकल्प लिया गया है लेकिन इन बिंदुओं में ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता है कि सीमा पर तनाव दूर करने के लिये चीनी पक्ष पांच मई की यथास्थिति को बहाल करने को तैयार है।
चीन की ओर से जारी बयान में चीनी विदेश मंत्री द्वारा भारत को आपसी दोस्ती को मजबूत करने के उपदेशों के अलावा कई नसीहतें दी गई हैं। इस विषय पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा की रॉ के पूर्व अतिरिक्त सचिव जयदेव रानाडे के साथ चर्चा।
चीन के इस कड़े रुख पर शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधान सेनापति जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों के साथ अहम बैठक की है। इस बैठक में भारत के अगले कदम के बारे में गहन चर्चा की गई है।
अपनी बात से मुकर गया चीन
संयुक्त बयान में बातचीत को अब सीमा मसले पर नियुक्त प्रधानमंत्रियों के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर ले जाने पर सहमति बनी है। चीन के विशेष प्रतिनिधि खुद विदेश मंत्री और स्टेट काउंसेलर वांग ई हैं जबकि भारत के विशेष प्रतिनिधि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं। वांग ई के साथ अगले दौर की वार्ता में चीन तनाव दूर करने के लिये कोई नया नजरिया पेश करेगा, इसमें शक है। हालांकि इन दोनों के बीच जो पहली बातचीत पांच जुलाई को हुई थी उसमें यह आशय बनने की सहमति बताई गई थी कि दोनों सेनाएं एलएसी तक लौट जाएंगी लेकिन इसे ज़मीन पर नहीं उतारा गया।
साफ है कि चीन पांच जुलाई की सहमति से मुकर गया है। इस सहमति में चीनी पक्ष ने साफ कहा था कि भारतीय और चीनी सेनाएं एलएसी तक पीछे लौट आएंगी और सीमांत इलाकों से भड़काने वाली सैन्य तैनाती को खत्म कर देंगी। लेकिन विदेश मंत्रियों की ताजा बैठक के बाद जारी चीनी बयान में कहा गया है कि चीनी विदेश मंत्री ने सीमांत इलाकों पर मौजूदा स्थिति पर सख्त रवैया दिखाया।
तिलमिलाई हुई है चीनी सेना
वांग ई ने कहा कि गोलीबारी और अन्य भड़काने वाली सैन्य कार्रवाई से बचना होगा। चीनी बयान में विदेश मंत्री वांग ई के हवाले से यह भी कहा गया कि चीनी इलाकों में घुसपैठ करने वाले सैनिकों और साजो-सामान को भारत पीछे ले जाए। साफ है कि चीन का इशारा पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी किनारे पर काला टॉप और हेलमेट टॉप आदि चोटियों पर कब्जा जमाने वाले भारतीय सैनिकों की ओर था जिसे लेकर चीनी सेना तिलमिलाई हुई है। इसी सिलसिले में चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि अग्रिम मोर्चों पर सैनिकों को पीछे जाना होगा ताकि हालात को भड़काने वाला नहीं कहा जा सके।
चीनी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि अग्रिम सैनिकों के बीच टकराव और भड़काने वाली स्थिति को तुरंत खत्म करना होगा ताकि तनातनी वाली स्थिति खत्म हो सके।
विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता होगी
भारत और चीन के रक्षा व विदेश मत्रियों के बीच एक सप्ताह के भीतर हुई आमने-सामने की दो उच्चस्तरीय राजनीतिक बैठकों के बाद अब वार्ता का एक और मंच बचा है जहां यदि कोई सहमति नहीं बनती है तो दोनों देशों के बीच सीमांत टकराव या फिर खुला युद्ध ही अंतिम विकल्प बचता है।
सीमा मसले पर प्रधानमंत्रियों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच वार्ता आयोजित करने पर दोनों विदेश मंत्रियों ने सहमति दी है।
अब अहम सवाल यही है कि क्या विशेष प्रतिनिधियों की प्रस्तावित बैठक में चीनी पक्ष अपने तेवर नरम करेगा हालांकि इस बैठक का औपचारिक एलान नहीं किया गया है लेकिन भारत और चीन के बीच युद्ध को रोकने और तनाव दूर करने का यह अंतिम मंच होगा।
वैसे, राजनयिक प्रेक्षक अंतिम उम्मीद भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच विकसित निजी सम्बन्धों पर भी लगाए हुए हैं लेकिन प्रेक्षकों का यह भी मानना है कि भारतीय सीमांत इलाकों पर चीनी सेना ने जो हरकत की है वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विस्तारवादी नीति का ही अहम हिस्सा है इसलिये चीन ने पूर्वी लद्दाख के सीमांत भारतीय इलाकों में जो घुसपैठ की है उससे वह पीछे नहीं हटने वाला।
चीन का यह कदम उसकी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और अहम पर चोट पहुंचाने वाला साबित होगा। इसलिये चीनी राष्ट्रपति को अपने सैन्य कदम पीछे ले जाने को मजबूर करना राजनीतिक बातचीत के जरिये मुमकिन नहीं होगा।