नफरत को 'दिवस' बनाने की राजनीति!

07:37 am Dec 26, 2021 | हरजिंदर

25 दिसंबर की सुबह जब मोबाइल फोन उठाया तो उम्मीद थी कि मैरी क्रिसमस के ढेर संदेश मिलेंगे। लेकिन ऐसे संदेश दिखाई देते उसके पहले ही तुलसी पूजन दिवस की बधाई के संदेश मिलने लग गए। तुलसी पूजन के लिए एक दिवस मनाना अपने आप में कोई ग़लत बात नहीं है और न ही इस दिन के लिए लोगों को बधाई देना। लेकिन थोड़ी ही देर में जो संदेश दिखाई दिए वे चौंकाने वाले थे। उनमें साफ़-साफ़ कहा जा रहा था कि 25 दिसंबर को क्रिसमस न मनाएँ बल्कि इस दिन को तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाएँ।

सुबह से ही ऐसे संदेश ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे थे। कुछ संदेशों में तुलसी का महत्व बताया गया था और कुछ में यह कहा जा रहा था कि हम विदेशी संस्कृति के प्रभाव में अपनी परंपराओं को भूलते जा रहे हैं।

क्या तुलसी पूजन दिवस हमारी परंपरा का सचमुच कोई पर्व है? दस साल पहले तक इस तरह के किसी पर्व की कोई परंपरा कहीं नहीं थी। सबसे पहले आसाराम बापू ने इस त्योहार को मनाने की अपील की थी। वही आसाराम बापू जो इन दिनों विभिन्न आपराधिक धाराओं में जोधपुर की जेल में पिछले कई साल से बंद हैं। तमाम कोशिशों और कई बड़े वकीलों की पैरवी के बावजूद अदालत ने उन्हें जमानत नहीं दी। 

चार साल पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने एक सूची जारी करके बताया था कि उसकी नज़र में कौन कौन से साधू फर्जी हैं। इस सूची में आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं का नाम काफी प्रमुखता से शामिल था।

तुलसी पूजन दिवस से पहले आसाराम बापू ने एक और दिवस की शुरुआत की थी, वह था मातृ-पितृ पूजन दिवस। यह दिवस हर साल 14 फरवरी को मनाया जाता है, यानी उस दिन जब वैलेंटाइन डे होता है। उसके लिए भी तर्क वही था- भारतीय संस्कृति। 

दिलचस्प यह है कि जब तक आसाराम बापू जेल नहीं गए थे इन दोनों ही दिवसों का दायरा बहुत सीमित था। इन्हें आमतौर पर आसाराम बापू के भक्तों के बीच और उनकी संस्थाओं में ही मनाया जाता था। जबसे वे जेल गए हैं ये दिवस एक दिन के लिए पूरे सोशल मीडिया पर कब्जे की कोशिश करते दिखाई देते हैं। इन्हें उन लोगों को भी बड़े पैमाने पर सहयोग मिल रहा है जो विदेशी संस्कृति के नाम पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफ़रत फैलाने की राजनीति करते हैं।

इसी से जुड़ा ये नैरेटिव भी बड़े पैमाने पर चलाया गया है कि हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं। यह उन लोगों को भी ऐसे अभियानों से अनायास ही जोड़ देता है जो आसाराम बापू या नफ़रत की राजनीति से दूर ही रहना चाहते हैं।

यू-ट्यूब के बहुत से चैनल और यहाँ तक कि बहुत सारी परंपरागत मीडिया संगठन भी अब इस दिन तुलसी पूजन पर बहुत सारी सामग्री छापते दिखाई देते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि देश में तुलसी जैसे पवित्र माने जाने वाले और बहुउपयोगी पौधे के लिए कोई पर्व नहीं है। कार्तिक शुल्क पक्ष की एकादशी के दिन, जिसे देव उत्थान एकादशी भी कहा जाता है, देश के बहुत सारे हिस्सों में तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। धारणा यह है कि इस दिन तुलसी का सालिगराम से विवाह होता है। इस दिन भी तुलसी का पूजन ही होता है। इसी के बाद सहालग शुरू होती है जिसे विवाह का सीज़न भी कहा जाता है। 

इस त्योहार के विपरीत तुलसी पूजन दिवस परंपरागत भारतीय कैलेंडर के हिसाब से नहीं बल्कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से मनाया जाता है। यह ज़रूरी भी है वर्ना हर बार टकराव का मौक़ा नहीं मिल पाएगा और अल्पसंख्यकों के त्योहारों के विरोध का मक़सद ही पूरा नहीं रह पाएगा। 

जिस तरह से इस दिन को खुले तौर पर क्रिसमस के विरोध में मनाए जाने की बातें की जा रही हैं, जल्द ही कई दूसरे पर्व त्योहार निशाने पर आ सकते हैं।