क्या मोदी मैजिक केवल गुजरात में सिमट कर रह गया है? क्या हिमाचल प्रदेश में मोदी मैजिक फीकी पड़ गयीहै? दिल्ली में मोदी मैजिक पर केजरीवाल मैजिक हावी है? एक्जिट पोल के नतीजे ये सवाल पैदा कर रहे हैं।
गुजरात में नरेंद्र मोदी लोकप्रिय हैं। उनका यहां जादू चलता है। यहां उनके टक्कर में कोई नेता नहीं है। इन बातों को मानने में विरोधी दलों के नेताओं को भी संकोच नहीं होता। एक्जिट पोल बताते हैं कि बीजेपी अधिक मजबूत होकर गुजरात की सत्ता में वापसी कर रही है। 27 साल की एंटी इनकंबेंसी से लड़कर सत्ता में वापसी कोई आसान काम नहीं। मोदी मैजिक ने ही इसे मुमकिन बनाया है।
तकरीबन सारे एक्जिट पोल बता रहे हैं कि बीजेपी सौ से ज्यादा या डेढ़ सौ से भी ज्यादा सीटें पा सकती है। ऐसा वोट प्रतिशत घटने के बावजूद होता दिख रहा है तो इसकी वजह गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री है। ‘आप’ को 10 फीसदी से ऊपर वोट मिलता दिख रहा है और इसी फैक्टर ने ‘मोदी मैजिक’ को गुजरात में जिन्दा रखा है।
‘आप’ ने बीजेपी को फायदा पहुंचाया
‘आप’ ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों के वोट बैंक में सेंध लगायी है लेकिन यह अधिक नुकसान कांग्रेस को पहुंचा रही है। जो काम आम आदमी पार्टी गुजरात में कर पा रही है, वही काम वह हिमाचल में करती नहीं दिखी। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस अपेक्षाकृत मजबूत चुनाव प्रदर्शन करती दिख रही है। वह सत्ता के करीब है और कई एक एक्जिट पोल उसे सत्ता में पहुंचते भी देख रही है। हालांकि ज्यादातर एक्जिट पोल हिमाचल में कांटे का संघर्ष बता रहे हैं।
दिल्ली में बीजेपी के पास 15 साल से एमसीडी थी। लेकिन, एक्जिट पोल बताते हैं कि बीजेपी एमसीडी नहीं बचा पा रही है। तमाम एक्जिट पोल में 2-1 के अनुपात में एमसीडी की ढाई सौ सीटें आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाती दिख रही हैं। चूकि यहां कांग्रेस वह भूमिका नहीं निभा सकी जो भूमिका गुजरात में आम आदमी पार्टी ने निभाई यानी सत्ताधारी दल बीजेपी की अपेक्षा प्रतिद्वंद्वी दल ‘आप’ को नुकसान पहुंचाना। यही कारण है कि यहां आम आदमी पार्टी को बीजेपी पर हावी होते वक्त नहीं लगा। मोदी मैजिक कतई असरदार नहीं रहा।
‘मोदी मैजिक’ के बारे में क्या यह माना जाए कि यह एक राज्य में काम करता है और दूसरे राज्य में नहीं? अगर ‘मोदी मैजिक’ गुजरात में है तो हिमाचल प्रदेश में क्यों नहीं? या फिर दिल्ली में क्यों नहीं? यह बात तो स्पष्ट है कि केजरीवाल का मैजिक भी चल रहा है।
गुजरात में भी आम आदमी पार्टी की जो धमक बनी है उसके पीछे अरविंद केजरीवाल के अलावा कोई दूसरा फैक्टर नहीं है। दिल्ली में तो केजरीवाल का जादू सर चढ़कर बोलता दिखा है। कुछ इस कदर कि 15 साल से एमसीडी पर काबिज बीजेपी को सत्ता से बेदखल होने की स्थिति बन आयी है।
कांग्रेस को ‘मैजिक फिगर’ की कमी खली
कांग्रेस के पास क्या किसी मैजिक फिगर का नहीं होना ही सबसे बड़ी मुश्किल है? अगर गुजरात में ऐसा फिगर होता तो निश्चित रूप से कांग्रेस अपने घटते प्रभाव को थाम सकती थी। हिमाचल में भी अगर कोई थामने वाला फिगर होता तो कांग्रेस दावे के साथ सत्ता में वापसी कर रही होती। संभव है कि वह वापसी कर भी ले, लेकिन यह हिमाचल में मोदी फिगर के घटते जादू की वजह से हो रहा है। कांग्रेस के पास कोई मैजिक फिगर नहीं।
दिल्ली एमसीडी का हाथ से निकलना बीजेपी के लिए बहुत बड़ा धक्का है। जिस पार्टी की देश भर में डेढ़ दर्जन डबल इंजन की सरकार हो, वह राजधानी दिल्ली में अपनी पकड़ खो रही है यह बीजेपी के लिए चिंता का सबब है। अगर कांग्रेस के हाथों बीजेपी हिमाचल प्रदेश हार जाती है या फिर बीजेपी किसी तरह अगर यहां सरकार बना भी लेती है तब भी यहां की स्थिति बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाली है।
सबसे बड़ी लूजर बीजेपी ही रही?
बीजेपी के लिए संतोष की बात सिर्फ गुजरात विधानसभा चुनाव में लगातार 7वीं जीत है। गुजरात चुनाव बचाकर बीजेपी ने अपनी लाज बचायी है। अगर यहां भी हिमाचल प्रदेश जैसी मुश्किल स्थिति में अगर पार्टी होती या फिर एमसीडी की तरह चुनाव हार रही होती तो बीजेपी मुश्किल में पड़ जाती है। आने वाले समय में जो राजनीति होनी है उसमें बीजेपी अब ऐसी हार को संभाल नहीं सकती। आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका बनाने के लिए खड़ी होती दिख रही है। वहीं, कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव से पहले यह आखिरी मौका है जब वह अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश करे।
राहुल गांधी ने जो भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है उसका असर भी तब व्यापक होगा जब विधानसभा चुनावों को जीतने का सिलसिला शुरू भी हो और यह निरंतर जारी रहे। इस वक्त आम आदमी पार्टी के रूप में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गयी है। इस स्थिति से निपटने का एकमात्र तरीका जनता से जुड़ा और निरंतर जुड़े रहना है।