जिस दिन देश के 74 पूर्व नौकरशाहों के एक बड़े समूह ने उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था के ख़स्ताहाल और संवैधानिक शासन के हर दिन खड्ड में और गिरते जाने को लेकर एक खुला पत्र जारी किया, उसके 5 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस में मुख्यमंत्री की पीठ ठोकने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी।
इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री से प्रशंसा पत्र हासिल करने के ठीक अगले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में हुई पार्टी की कार्यसमिति की बैठक के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए जम कर अपने गाल बजाये और क़ानून-व्यवस्था के नियंत्रण के मामले में यूपी को देश में अव्वल क़रार दे डाला।
जिस दिन मुख्यमंत्री ने अपनी वाहवाही सुभाषित की उसके ठीक अगले दिन आगरा में दिन दहाड़े एक 'फाइनेंस कम्पनी' में डकैतों ने साढ़े 9 करोड़ का डाका डाल दिया।
प्रदेश में पुलिस के इक़बाल की बुलंदी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर की पॉश कालोनी में हुई इस दिल दहला देने वाले घटना स्थल से पुलिस थाना सिर्फ़110 मीटर की दूरी पर था लेकिन इसके बावजूद कम्पनी के एर्नाकुलम (केरल) मुख्यालय से आयी इमरजेंसी टेलीफ़ोन कॉल पर ही वह सोते से जागा और हरक़त में आया।
उत्तर प्रदेश में पिछले 6 महीनों के अपराध का ग्राफ टटोलें तो यह शहरों और गाँवों में डकैती, लूट, हत्या और बलात्कार की दर्जनों घटनाओं से पटा मिलेगा।
ब्लॉक प्रमुख चुनाव में तांडव
इस घटना से कोई सप्ताह भर पहले प्रदेश में हुए ब्लॉक प्रमुखों के चुनावों में लोकतंत्र की वैतरिणी का अपहरण करके 'हर-हर गंगे' बना दिए जाने की अनगिनत घटनाओं ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। खीरी लखीमपुर में विपक्षी दल की एक महिला ब्लॉक प्रमुख प्रत्याशी और उसकी महिला प्रस्तावक की सरे आम सड़कों पर चीरहरण ने योगी राज में महाभारत काल की स्मृतियों को पुनर्जीवित कर दिया।
अपराध नियंत्रण की अपनी सरकार की कोशिशों के ढोल-तांसे पीटकर गुणगान करने का मुख्यमंत्री का यह कोई पहला दावा नहीं है। अपनी सरकार के चार साल पूरा होने के मौक़े पर तीन माह पूर्व हुए भव्य कार्यक्रम के अवसर पर उन्होंने कहा था कि “अपराधियों और माफिया तत्वों से निपटने की दिशा में यूपी की सरकार द्वारा उठाये गए क़दमों ने देश के सामने नए मानकों को खड़ा कर दिया है।"
'राष्ट्रीय अपराध अनुसन्धान ब्यूरो' (एनसीआरबी) के अनुसार (2019) में प्रदेश में आईपीसी और स्थानीय क़ानूनों से जुड़े प्रत्येक प्रकार के अपराधों में 12.2% की वृद्धि हुई है।
योगी के काम से मोदी ख़ुश। देखिए चर्चा-
'हिंदुत्व' को उभारने की कोशिश
विधानसभा चुनावों को मंडराता देख हाल के महीनों में 'हिंदुत्व' के नए उभार को लेकर जिस प्रकार का तनाव खड़ा करने की कोशिश पार्टी और सरकार-दोनों के स्तर पर की जा रही है, उसे देखते हुए आने वाले समय में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति के और ज़्यादा डांवाडोल होते जाने की संभावनाएं हैं।
जिस तरह से 'लिंचिंग' का ख़ौफ़ बीते 4 वर्षों में पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिर पर नाचता रहा, उसने मुसलामानों की कई पीढ़ियों के भीतर एक गहरे भय और संत्रास को जन्म दिया। जघन्य अपराध की यह एक नयी धारा है, जो हाल के सालों में जो तेजी से विकसित हुई है।
योगी शासन ने ऐसे अपराधियों के नैतिक बल को और भी मज़बूती प्रदान की है। अचम्भे में डाल देने वाला इससे बड़ा तथ्य यह है कि सभी मामलों में न के बराबर गिरफ़्तारियाँ हुई हैं, सज़ा की बात तो बेमानी है।
'ह्यूमन राइट वॉच' की रिपोर्ट
'ह्यूमन राइट वॉच' ने अपनी पिछली रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकारों के लगातार बढ़ते हनन पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में उसने अपनी इस 'रिपोर्ट' में लिखा है कि "सरकार निरंतर गौ हत्या के मामलों में निरपराध मुसलमानों को निशाना बना रही है। इस मामले में पुलिस ने 4 हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया है जिसमें 76 लोगों को कठोर 'नेशनल सिक्योरिटी एक्ट' में नामित किया है जिसके अंतर्गत बिना किसी आरोप के साल भर तक जेल में बंद किया जा सकता है।"
यहाँ गौरतलब यह है कि प्रदेश के उच्च न्यायालय में आये अनेक ऐसे मामलों में अदालतों ने अभियुक्तों को बाइज़्ज़त बरी करते हुए प्रशासन को ज़बरदस्त फटकार लगायी है।
कोविड प्रबंधन में मुख्यमंत्री की तारीफ़ों के पुल बाँधने वाले प्रधानमंत्री नदियों में बहते मानव शवों के बारे में इतनी जल्दी कैसे भूल गए? उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट की वह टिप्पणी क्यों नहीं याद आई जिसमें 'कोर्ट' ने इसे यूपी सरकार के स्तर पर किया गया 'भीषण नरसंहार' बताया था?
कोविड मामलों में बरती गयी लापरवाही, बेड और ऑक्सीजन के प्रबंधन में बरती गयी आला दर्जे की लापरवाही, उपेक्षा और भूल और इसके चलते हुई अनगिनत मौतों को याद करने वाले उनके परिजन यदि इन्हें सरकारी हत्या कहते हैं तो क्या बुरा करते हैं?
क़ानून और व्यवस्था सदैव एक सुचारू लोकतांत्रिक पद्धति को सुव्यवस्थित और ईमानदार ढंग से चलाने से ही सुधर सकती है। क़ानून का शासन ही ईमानदार लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। जहाँ क़ानून का शासन होगा वहां अपराध भी नियंत्रित होंगे।
अपराध रोकने के संकल्प के नाम पर हिंसक बन चुकी शासन व्यवस्था और लोकतांत्रिक तथा संवैधानिक मूल्यों को धता बताने को कृतसंकल्प उसकी राजसत्ता की मशीनरी कभी भी सामान्य से सामान्य अपराधों पर भी लगाम नहीं लगा सकते।
प्रदेश में क़ानून व्यवस्था में सुधार के मुख्यमंत्री के दावे के बाबत टिप्पणी करने के सवाल पर लखनऊ के वरिष्ठ राजनीति वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर रमेश दीक्षित कहते हैं “टिप्पणी तो सभ्य और लोकतान्त्रिक शासन पर की जाती है, यहां तो एक बर्बर राज है जिसमें बनने वाली सभी योजनाएं वस्तुतः जनता के विरुद्ध रची जाने वाली साजिशें हैं, इन पर क्या टिप्पणी करनी!"
फर्जी मुठभेड़ की घटनाएं
एक ओर अपराधों में बेतहाशा वृद्धि और दूसरी ओर अपराध रोकने के नाम पर पुलिस को फर्जी मुठभेड़ करने वाली एक बेख़ौफ़ आपराधिक एजेंसी में परिवर्तित कर देना भी अपराधों के अप्रत्याशित विकास की ही दूसरी खतरनाक डगर है। यह मसला महज़ अपराधों के नहीं, लोकतंत्र के भी अनियंत्रित हो जाने के ख़तरों को चिन्हित करता है।
तब क्या लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर सुधीर पंवार के इस कथन को सत्य मान लेना मुनासिब होगा कि "लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी एक सरकार के हाथों ही लोकतंत्र की हत्या की सतत प्रक्रिया के अध्ययन के लिए उत्तर प्रदेश, देश की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशाला के रूप में तब्दील हो चुका है?"