कोरोना: बिस्तर खाली नहीं? लूट-पाट बंद करें अस्पताल

08:52 am Jun 07, 2020 | डॉ. वेद प्रताप वैदिक - सत्य हिन्दी

भारत में कोरोना का प्रकोप एक तरफ़ नई ऊँचाइयों को छू रहा है और दूसरी तरफ़ हमारे अस्पताल लापरवाही और लूटमार में सारी दुनिया को मात दे रहे हैं। दिल्ली और मुंबई से कई ऐसी लोमहर्षक ख़बरें आ रही हैं कि उन पर विश्वास ही नहीं होता। कोरोना के मरीज़ों को और उनके रिश्तेदारों को यह कहकर टरका दिया जाता है कि अस्पताल में कोई बिस्तर खाली नहीं है। दिल्ली के एक मरीज़ को जो ख़ुद डाॅक्टर थे, पाँच सरकारी और ग़ैर-सरकारी अस्पतालों ने टरकाया और उन्हें रास्ते में ही दम तोड़ना पड़ा। 

मुंबई के नामी-गिरामी अस्पताल के सघन चिकित्सा ईकाई (आइसीयू) से एक बुजुर्ग मित्र कल रात से मुझे कई बार फ़ोन कर चुके हैं। वह कह रहे हैं कि वह ठीक-ठाक हैं लेकिन उस अस्पताल ने उन्हें कोरोना-मरीज़ कहकर ज़बर्दस्ती भर्ती कर लिया है। वह नमाज़ पढ़ने गए थे और रोज़े उनके गले पड़ गए। वह हल्के बुखार को दिखाने गए थे लेकिन उन्हें अस्पताल में इसलिए फँसा लिया गया है कि अब उनसे लाखों रुपए वसूले जाएँगे। दिल्ली में भी यही हाल है। एक-दो मित्रों ने बताया कि फलाँ ग़ैर-सरकारी अस्पताल उनसे 5 से 10 लाख रुपये अगाऊ रखा ले रहा है जबकि सरकारी अस्पतालों में वही इलाज और कमरा सिर्फ़ कुछ हजार रुपये रोज़ में मिल जाता है। 

इसी मुद्दे पर आजकल सर्वोच्च न्यायालय में भी बहस चल रही है। याचिकाकर्ता माँग कर रहे हैं कि इन निजी अस्पतालों को सरकार ने ज़मीनें मुफ्त दी थीं तो ये नियम के मुताबिक़ 25 प्रतिशत मरीज़ों का इलाज मुफ्त क्यों नहीं करते। यह ठीक है कि यह संकट का समय है, अस्पतालों का ख़र्च ज्यों का त्यों है और उनकी आमदनी काफ़ी घट गई है, इसलिए वे कैसे भी अपना घाटा पूरा करना चाहते हैं। लेकिन मेरा निवेदन यह है कि इस संकट के समय को वे लूट-पाट का समय न बनाएँ।

यों भी भारत के निजी अस्पताल और निजी शिक्षा-संस्थान, कुछ सम्मानीय अपवादों को छोड़कर, शुद्ध लूट-पाट के अड्डे बन चुके हैं। इसीलिए चार-पाँच साल पहले मैंने लिखा था कि समस्त सांसदों, विधायकों, पार्षदों और सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों का इलाज भी सरकारी अस्पतालों में और बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूल व कॉलेजों में ही होना चाहिए। तभी इनका स्तर सुधरेगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्हीं शब्दों का आदेश भी जारी किया था। कोरोना की बीमारी ने इस मुद्दे पर दुबारा मोहर लगा दी है। यदि निजी अस्पताल अपना रवैया नहीं बदलते तो वे निश्चय ही अपने राष्ट्रीयकरण को दावत दे देंगे।