कश्मीर में शांति है पर क्या कश्मीरियों को भारत सरकार पर भरोसा है?

08:01 am Aug 05, 2021 | विजय त्रिवेदी

श्रीनगर से पहलगाम जाते वक़्त रास्ते में संगम कस्बे के पास अब भी यूँ तो पुलवामा हमले की यादें ताज़ा हो जाती हैं जब दो साल पहले 14 फ़रवरी 2019 को एक आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ़ के 40 जवान शहीद हो गए थे, लेकिन अब यहाँ केसर की महक महसूस होती है, इस इलाक़े में केसर की खेती होती है और ज़्यादातर दुकानों पर असली केसर मिलती है और साथ ही शानदार कहवा का स्वाद, दिल्ली के बड़े होटलों में मिलने वाले ‘कश्मीरी कहवा’ से बिलकुल अलग, ऐसा स्वाद जो भूलता नहीं, इसी इलाक़े में विलू के पेड़ हैं और कारखाने भी, जहाँ देश और दुनिया में नाम कमाने वाले क्रिकेट बैट मिलते हैं।

पहलगाम हो, गुलमर्ग हो या सोनमर्ग या फिर करगिल। इस बार कश्मीर में देश भर से आने वाले पर्यटकों की इतनी भीड़ है कि स्थानीय होटलों से उनका ठीक से इंतज़ाम भी नहीं हो पा रहा। वैसे पिछले दो साल से तो यहाँ सन्नाटा पसरा हुआ था। दो वज़हें थीं कोरोना और अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद की पाबंदियाँ।

दो साल पहले पाँच अगस्त 2019 को लोकसभा में जब गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और उसे राज्य से केन्द्र शासित प्रदेश में बदलने का ऐलान किया था। उसके क़रीब एक सप्ताह बाद हफ्ते भर के लिए मैं कश्मीर में ही था, लेकिन तब और अब के हालात में दिन-रात का फ़र्क दिखाई देता है। उस बार भी तब बकरीद आने वाली थी लेकिन ज़्यादातर जगहों पर सन्नाटा था। बाज़ार नहीं खुले थे। हर सौ मीटर से भी कम पर सुरक्षा बलों का पहरा और संगीनों का खौफ़ दिखाई देता था। इस बार भी बकरीद का मौक़ा था लेकिन बाज़ारों में भीड़ थी, खरीदार थे। शहर और आसपास के पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की भीड़ थी। श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग में होटलों में कमरे खाली नहीं थे। हर जगह कश्मीरी सामान बेचने वाले, गाइड और पिट्ठू वाले व्यस्त थे।

मान्यता है कि कश्मीर का नाम कश्यप ऋषि के नाम पर रखा गया। सुप्रसिद्ध कवि, और इतिहासकार कल्हण के राजतरंगिणी में कश्मीर का इतिहास लिखा गया है। मेरे मित्र और ट्रैवल एजेंट युवा बुरहान मानते हैं कि इतने ट्यूरिस्ट ट्रैफिक का आइडिया ही नहीं था। होटल मालिकों ने अपने काम करने वालों को घर वापस भेज दिया था, सो लोग ही नहीं है काम करने वाले। डल झील में हाउस बोट के लोगों को भले ही ज़्यादा पर्यटक नहीं मिल पा रहे लेकिन शिकारों में हिन्दुस्तान के हर हिस्से की खुशबू महसूस की जा सकती थी। शिकार वाले मंसूर साहब बादलों के बीच झांकती पहाड़ी की चोटी पर बने शंकराचार्य मंदिर को दिखाने की कोशिश कर रहे थे। साथ ही हिदायत दे रहे थे कि झील के बीच बने मार्केट से जरा संभल कर खरीदारी करना। उनका सवाल था कि ‘साहब, क्या अब ऐसा नॉर्मल हो जाएगा, बिना ट्यूरिस्ट के तो हम लोगों का जीना ही बेहाल हो जाता है और कोई ना कोई वजह से यहाँ बंद ही रहता है।’ 

डल झील।फ़ोटो: विजय त्रिवेदी

डल झील में तो शिकारों को चलने का मौक़ा अब आया है लेकिन ज़्यादातर हाउसबोट अब भी खाली पड़े हैं। हाँ, श्रीनगर के निशात बाग़, शालीमार बाग़ और चश्मेशाही अटे पड़े हैं, हर कोई कश्मीरी ड्रेस में अपनी फोटो खिंचाने में लगा है। कई सौ साल पुराने शंकराचार्य मंदिर जाने वाले लोगों की तादाद काफ़ी है लेकिन हजरत बल कम लोग पहुँचते हैं। रेनोवेशन का काम चल रहा है लेकिन पीछे हरि पर्वत और पीर पंजाल की रेंज दिखाई देती है। कश्मीर विश्वविद्यालय में अभी रौनक नहीं है। रास्ते में सज्जाद साहब श्रीनगर का गोल्फ क्लब और मैदान दिखाते चलते हैं जिसे दुनिया के बेहतरीन गोल्फ मैदानों में से एक माना जाता है।

हमारे ड्राईवर सज्जाद साहब पूरे सात दिन साथ रहे। हर जगह दिखाने के लिए आतुर। राजनीति और सामाजिक मनोदशा समझाते। गुपकर रोड पर कश्मीर के ज़्यादातर राजनेताओं की कोठियाँ हैं, उसी वजह से फारुख अब्दुल्ला साहब की कोठी पर हुई नेताओं की मीटिंग के बाद गुपकर एलायंस बनाया गया, जिसे कुछ लोगों ने गुपकर गैंग का नाम भी दे दिया। राजभवन भी इससे आगे है। यहाँ के स्थानीय नेताओं में अब लोगों का भरोसा कम हो गया है लेकिन हिन्दुस्तानी सरकार पर भी ऐतबार पूरा नहीं है।

“हम तो फँसे हुए हैं, कैसे निकलेंगे, और कब निकलेंगे, पता नहीं।” 

“अब्दुल्ला परिवार हो या मुफ्ती परिवार या फिर खुद को सेपरेटिस्ट लीडर मानने वाले लोग, हमेशा खुद का ही भला देखते रहे, घर भरते रहे। अब यहाँ किसी को नहीं लगता कि अनुच्छेद 370 वापस आ जाएगा लेकिन राज्य तो फिर से बनना चाहिए। अनुच्छेद 370 के बिना लगता है जैसे कुछ खास छिन गया है हमारा। जम्मू वालों को भी नुक़सान हुआ है साहब। मगर इस बार का सीजन ठीक रहा है। पत्थरबाज़ी और टेरेरिस्ट के हमले कम हुए हैं। पाकिस्तान ना तो कोई जाना चाहता है और ना ही उस मुल्क पर भरोसा है। हम हिन्दुस्तानी हैं, यह भरोसा हिन्दुस्तान की सरकार और अवाम को करना है।”

अब बात राजनीति की। जून में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ जम्मू कश्मीर के आठ दलों के 14 नेताओं की बैठक से उम्मीद जगी कि अब कुछ तेज़ी से बदलने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी ने सभी नेताओं की बात को बेरोक-टोक सुना। सबने खुल कर अपने मन की बात कही। बातचीत के बाद एक बात साफ़ हो गई कि अब कश्मीर के नेताओं को भी अनुच्छेद 370 की वापसी की उम्मीद नहीं जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ही कोई फ़ैसला नहीं दे दे। लेकिन अब उनकी मांग कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाने की है। सरकार भी शायद यही चाहती थी इसलिए इसे नेगोसिएशन प्वाइंट के तौर पर अपने पास रखा होगा लेकिन कहा गया कि पहले राज्य में चुनाव होंगे, और चुनाव से पहले होगा परिसीमन जिसका काम अभी चल रहा है। परिसीमन के बाद सीटों की तादाद 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। संभावना है कि ज़्यादातर बढ़ी हुई सीटें जम्मू के हिस्से में आएँ, क्योंकि वहाँ के लोग पहले से इस बात की शिकायत कर रहे थे। 

कश्मीर के राजनेताओं को लगता है कि यह बीजेपी की हिन्दू मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति है लेकिन अभी कश्मीरी पंडितों की वापसी पर कुछ बड़ा नहीं हुआ है।

लोगों को उम्मीद है कि चुनाव कराने से पहले सरकार कोई बड़ा ऐलान कर दे। बीजेपी का बड़ा एजेंडा भी है कश्मीरी विस्थापितों की वापसी का, लेकिन अब भी यह आसान काम नहीं है।

पत्थरबाज़ी रोकने के लिए सरकार ने अभी नया फरमान जारी किया है, अब ऐसी घटनाओं में शामिल नौजवानों को सरकारी नौकरियों, योजनाओं का लाभ मिलने में मुश्किल होगी और साथ ही उसे वीज़ा के लिए सिक्योरिटी क्लियरेंस भी मिलना मुश्किल होगा। हाल में जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने कहा कि यह ‘बदलता कश्मीर है’ जहाँ अब हर शुक्रवार को पत्थरबाज़ी इतिहास की बात हो गई है।

प्रतीकात्मक तसवीर।

यहाँ 20 हज़ार करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूरी की प्रक्रिया में हैं और पचास हज़ार करोड़ के निवेश की तैयारी है। इससे 84 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा। जम्मू डिवीजन में 1548 करोड़ रुपए के 15 प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन दे दी गई है। इससे पाँच हज़ार रोज़गार पैदा होंगे। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का मानना है कि पहले हमें 20-25 हज़ार करोड़ के निवेश की उम्मीद थी लेकिन देश भर से उद्योगपतियों के रिस्पांस से इसे अब बढ़ाकर 50 हज़ार करोड़ का लक्ष्य कर दिया गया है। इसके साथ ही दो नए एम्स, 7 नए मेडिकल कॉलेज, 5 नर्सिंग कॉलेज, दो कैंसर संस्थान समेत कई और बड़े प्रोजेक्ट हैं। 

लेफ्टिनेंट गवर्नर ऑफ़िस से कूरियर से आई बुकलेट में नए कश्मीर की तस्वीर दिखाई गई है। इसमें पहले पेज पर प्रधानमंत्री मोदी के फोटो के साथ लिखा है- जम्मू कश्मीर में नए युग की शुरुआत हो गई है। पाँच अगस्त 2019 की तारीख़ के साथ कहा गया है- ‘एक देश, एक संविधान, एक झंडा और एक बाज़ार।’

अब केन्द्र के सभी 890 क़ानून जम्मू कश्मीर में भी लागू। अन्याय और भेदभाव वाले सभी क़ानून हटाए गए। डोमिसाइल सर्टीफिकेट और लड़कियों के नए अधिकारों की कहानी शुरू हो गई है। लड़कियों को कश्मीर से बाहर शादी करने पर उनके पति को कश्मीर के अधिकार मिल जाएँगे।

श्रीनगर में डल झील के सामने एक रेस्टोरेंट में चाय पर एक पुराने पत्रकार मित्र ने कहा कि ‘बहुत कुछ बदल रहा है लेकिन मुझे डर इसलिए लग रहा है क्योंकि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जैसा ग़ुस्सा बाहर आने की आशंका थी, वो सामने नहीं आया। इसका मतलब यह नहीं कि वो ग़ुस्सा ख़त्म हो गया है, बेहतर होता कि वो सामने आ जाता तो बात ख़त्म होकर नई शुरुआत होती। और अगर वाक़ई कोई नाराज़गी नहीं रही है तो फिर यह कश्मीर के लिए नई खुशनुमा सुबह है’।

लेकिन कश्मीरियों से पहले दिल्ली में बैठे लोग उन्हें हिन्दुस्तानी मानें, ईमानदारी से, बिना शक के। दिल्ली से और दिल से दोनों दूरियों को कम करने का काम आपका है। बेवजह का शक मोहब्बत में दरार बनाए रखता है और इसका इलाज फ़िलहाल रायसीना हिल के पास ही है। मौसम और कुदरत की बहार अब भी आपको इस बात का अहसास कराती है कि जहांगीर ने फारसी में सही कहा था कि “गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त”, यानी धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।