मनुस्मृति, रामचरितमानस और बंच ऑफ थॉट्स को नफ़रत फैलाने वाला और समाज को बांटने वाला बताते हुए बिहार के शिक्षा मंत्री डॉ चंद्रशेखर अचानक चारों तरफ़ से घिर गये हैं।
डॉ चंद्रशेखर से बिहार के विपक्षी दल इस्तीफे की मांग हो रही है और उन्हें बर्खास्त करने की माँग भी की जा रही हैं ? मंत्री से पूछा जाना चाहिये कि नालंदा में एक दीक्षांत समारोह में उन्हें ऐसे बयान देने की जरूरत क्या पड़ गयी? और उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया ? और क्यों नहीं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिये?
कब खत्म होगी छुआछूत?
25 दिसंबर 1927 को जब डॉ भीम राव अंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाई थीं तब इसकी वजह यही थी कि ‘हिन्दू भावनाएं आहत’ थीं। मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में ही गरीब, दलित, पिछड़े हिन्दुओँ की भावनाएं तार-तार हुईं महसूस की गयी थीं। तब से स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। छुआछूत, दलित और स्त्री विरोधी बातें आज भी विद्यमान हैं। आहत होकर हिन्दुओं ने डॉ बाबा साहब अंबेडकर और उनके समर्थकों ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया था।
डॉ. भीम राव अंबेडकर ने मनुस्मृति दहन करते हुए जो पांच महत्वपूर्ण घोषणाएं की थीं उन पर गौर कीजिए-
- मैं जन्म आधारित चार वर्णों में विश्वास नहीं रखता हूं।
- मैं जाति भेद में विश्वास नहीं रखता हूं।
- मेरा विश्वास है कि जातिभेद हिन्दू धर्म पर कलंक है और मैं इसे खत्म करने की कोशिश करूंगा।
- यह मान कर कि कोई भी ऊंचा-नीचा नहीं है, मैं कम से कम हिन्दुओं में आपस में खान-पान में कोई प्रतिबंध नहीं मानूंगा।
- मेरा विश्वास है कि दलितों का मंदिर, तालाब और दूसरी सुविधाओं में सामान अधिकार है।
धर्म बदलना आसान, जाति बदलना मुश्किल क्यों?
क्या यह सही नहीं है कि आज एक व्यक्ति धर्म तो बदल सकता है लेकिन जाति बदलना उसके वश की बात नहीं है? ऐसा क्यों है? मनुस्मृति के कारण अगर नहीं है तो जिस कारण है उस कारण को क्यों नहीं मिटा दिया जाता? देश में खुलेआम दलितों की मॉब लिंचिंग, घोड़ी चढ़ने या मूंछ रखने पर पिटाई, मंदिर में प्रवेश करने या कुएं से पानी पीने पर सज़ा दिए जाने की घटनाएं घटती रही हैं।
कभी हिन्दू धर्म पर गर्व करने वाले इन घटनाओं को रोकते नज़र नहीं आते। उल्टे इसमें शरीक पाए जाते हैं। चंद महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है जिससे पता चलता है कि छुआछूत की व्यवस्था बनाए रखने के लिए समाज कितना प्रयत्नशील रहा है-
- सितंबर 2014 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बताया था कि मधुबनी जिले के राजनगर विधानसभा क्षेत्र के तरही गांव स्थित परमेश्वरी स्थान नामक मंदिर में वे गये थे। उनके चले जाने के बाद मंदिर और मूर्तियों को ‘शुद्ध’ कराया गया।
- मार्च 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पुरी जगन्नाथ मंदिर में जाने से रोका गया था। उनकी पत्नी के साथ सेवादारों ने धक्का-मुक्की भी की थी।
- 2016 में गुजरात विधानसभा में राज्य के गृहमंत्री ने प्रश्नकाल के दौरान विधायक शैलेश परमार के उठाए प्रश्न के जवाब में माना था कि प्रदेश के 13 मंदिरों में दलितों के प्रवेश करने पर रोक है।
- एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए सितंबर 2018 में यह दावा रखा कि वाराणसी के कालभैरव, भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर, अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम और बागेश्वर के बैजनाथ मंदिर में दलितों को प्रवेश करने नहीं दिया जाता।
- सितंबर 2021 में कर्नाटक के कराटागी गांव में लक्ष्मी देवी मंदिर में प्रवेश करने पर एक दलित को 11 हजार रुपये खर्च कर दावत देने को मजबूर किया गया।
- सितंबर 2021 में ही कोप्पल जिले के मियापुर गांव में दो साल के दलित बच्चे के मंदिर में प्रवेश करने पर दलित परिवार से शुद्धिकरण के लिए 25 हजार रुपये मांगा गया।
हिन्दू विरोधी कौन?
जब कभी भी जाति व्यवस्था, छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठायी जाती है उस आवाज को बंद करने के लिए वर्णवादी एकजुट हमला करने को टूट पड़ते हैं। ‘हिन्दू विरोधी’ कहने में तनिक भी देर नहीं लगायी जाती। चाहे पढ़े लिखे डॉ अंबेडकर हों या फिर कोई और ? इन्हें नासमझ, अज्ञानी तक करार दिया जाता है। एक साधु ने डॉ चंद्रशेखर की जीभ काटने पर 10 करोड़ रुपये इनाम देने की घोषणा तक कर दी है। क्या यह साधु हिन्दू विरोधी नहीं है?
हिन्दुओं के बड़े हिस्से को इंसान तक मानने से इनकार करने वाला एक वर्ग खुद को क्या समझता है ?
क्या ऐसे लोगों की कारगुजारियों की वजह से सदियों दलित पिछड़ा वर्ग हिन्दू धर्म नहीं छोड़ता आया है और आज भी यह सिलसिला जारी है ? क्या इन चीजों पर बहस नहीं होनी चाहिये ? क्यों इस पर एक गंभीर खामोशी बरती जाती है ? दलितों पर जब अत्याचार होता है तो क्यों हिंदुत्ववादियों की भावना आहत नहीं होती?