सभी पक्ष एक क़दम पीछे हटें तो ही सुलझेगा अयोध्या विवाद?

12:27 pm Mar 21, 2019 | अतुल चंद्रा - सत्य हिन्दी

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद के समाधान के लिए चयनित तीन-सदस्यीय मध्यस्थता समिति की पहली बैठक 13 मार्च को अयोध्या में हुई। इसमें क्या हुआ इसकी कोई ख़बर नहीं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ मीडिया को मध्यस्थता समिति से दूर रहने के लिए कहा गया है। जो बात लिखी जा सकती है, वह यह कि यह पहली बैठक थी और हिन्दू और मुसलिम दावेदारों ने अपना-अपना पक्ष समिति के सामने रखा होगा।

यह समझौते की प्रक्रिया की शुरुआत थी। इस महीने के अंत तक समिति के सदस्य, सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश जस्टिस एफ़. एम्. इब्राहीम कलिफुल्लाह, आर्ट ऑफ़ लिविंग के श्री श्री रविशंकर और मद्रास उच्च न्यायालय के वकील श्रीराम पंचू अयोध्या में फिर इकट्ठा होकर बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाएँगे।

समिति के सामने दोनों पक्ष समझौते के लिए कितना झुकेंगे यह कहना मुश्किल है, क्योंकि आज भी वे अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक सदस्य का कहना है कि वह बाबरी मसजिद उसी जगह चाहते हैं जहाँ वह थी। इसके ठीक विपरीत, रामलला विराजमान के पक्षकार विश्व हिन्दू परिषद् के त्रिलोकी नाथ मसजिद को विवादित परिसर तो दूर की बात है, अयोध्या में ही जगह देने को तैयार नहीं हैं।

विवादित परिसर में मसजिद के पुनर्निर्माण का विरोध करते हुए रामलला विराजमान के पक्षकार त्रिलोकी नाथ कहते हैं, ‘हम इसे राम का जन्म स्थान मानते हैं, जबकि मुसलमानों के लिए बाबरी मसजिद विजय का प्रतीक थी।’

और अगर अयोध्या में ही कहीं दूर मसजिद बनाने के लिए मुसलमान तैयार हो जाएँ तो इसके जवाब में त्रिलोकी नाथ कहते हैं कि अयोध्या में पहले से ही 22 मसजिदें हैं इसलिए यहाँ एक और मसजिद की बात का कोई औचित्य नहीं है। पिछले साल दिसंबर में महंत परमहंस दास ने राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश की माँग करते हुए आत्मदाह करने की बात की थी जिसके बाद उनको 14 दिन की न्यायिक हिरासत में ले लिया गया था।

राजनीतिकरण के लिए ज़िम्मेदार कौन

दूसरी तरफ़ है निर्मोही अखाड़ा है जो इस मुद्दे का बहुत पहले से पैरोकार है’। निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता प्रभात सिंह का आरोप है कि विश्व हिन्दू परिषद् इस मुद्दे के राजनीतिकरण के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार है। प्रभात सिंह के अनुसार निर्मोही अखाड़ा 1885 से इस मुद्दे को लेकर मुक़दमा लड़ रहा है, जबकि ‘वीएचपी और रामजन्म भूमि न्यास मंदिर के नाम पर पैसा इकट्ठा करके भारतीय जनता पार्टी की मदद करते हैं’।

निर्मोही अखाड़े को विश्वास है कि मध्यस्थता से जो भी फ़ैसला निकलेगा वह उनके पक्ष में होगा। प्रभात सिंह कहते हैं कि निर्मोही अखाड़े को अयोध्या में मसजिद निर्माण से कोई आपत्ति नहीं है।

ज़ाहिर है ये सारे पहलू मध्यस्थता समिति के सामने रखे जायेंगे और फिर समस्या का कोई समाधान निकाला जाएगा।

दो प्रधानमंत्रियों ने भी किये थे प्रयास

इससे पहले भी दो प्रधानमंत्रियों, चंद्रशेखर और राजीव गाँधी ने मसले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की थी। इस दिशा में काँची के शंकराचार्य का प्रयास भी विफल हो गया था। कुछ महीने पहले श्री श्री रविशंकर अपनी तरफ़ से मध्यस्थता की कोशिश की थी। उस प्रयास के दौरान उनके कुछ बयान इतने विवादित हो गए कि जब सुप्रीम कोर्ट ने उनको वर्तमान समिति के लिए नामित किया तो उसका खुल कर विरोध हुआ।

पिछले प्रयासों की तुलना में यह समिति अलग है क्योंकि यह सीपीसी के सेक्शन 9 के तहत गठित की गई है और यह पहली बार हुआ है। इस सेक्शन में ज़मीन-जायदाद से सम्बंधित सिविल मुक़दमे आते हैं।

चार हफ़्तों में बातचीत करके इस समिति को बताना होगा कि सभी पक्ष सुलह के पक्ष में हैं या नहीं। यदि समझौता नहीं हो पाता है तो फिर सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई शुरू करेगा। उम्मीद की जा रही है शायद सभी पक्ष एक-एक कदम पीछे हट कर दशकों से चल रहे विवाद पर पूर्ण विराम लगाने को राज़ी हो जाएँ।