इस समय पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों से लेकर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक जितने भी राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उनमें से एक उत्तर प्रदेश को छोड़ कर बाकी सभी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। इनमें से एक उत्तर प्रदेश को छोड़ कर बाकी सभी राज्यो मे कांग्रेस या तो सरकार में है या मुख्य विपक्षी पार्टी है। इन राज्यों में प्रादेशिक पार्टियां या तो नहीं है या बहुत मामूली हैसियत रखती है।
कांग्रेस की जगह लेने के लिए हाथ पैर मार रही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की भी कोई खास हैसियत इन राज्यों में नहीं है।
कांग्रेस इस समय जिस तरह अपने इतिहास के सबसे चुनौती और संकट भरे दौर से गुजर रही है, उससे वह तभी उबर सकती है जब वह इन विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करे। इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करके ही वह पार्टी में जारी असंतोष को ठंडा कर सकती है और साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकता की अगुवाई करने का दावा भी कर सकती है। अगर इन चुनावों में उसका प्रदर्शन नहीं सुधरा तो उसकी परेशानियों में और ज्यादा इजाफा होना तय है।
इस समय जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस हाशिए की पार्टी है, लेकिन पंजाब में उसकी सरकार है और उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में वह मुख्य विपक्षी पार्टी है। जिस तरह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस हाशिए की पार्टी है उसी तरह पंजाब में बीजेपी हाशिए की पार्टी है। जिस तरह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपना खोया हुआ आधार तलाशने की कोशिशों में जुटी है, उसी तरह पंजाब में बीजेपी अपने में पैर जमाने की जगह तलाश रही है।
इस सिलसिले में उसने अकाली दल से अलग हुए सुखदेव सिंह ढींढसा के अलावा कांग्रेस से निकले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी हाथ थामा है। अमरिंदर सिंह भी कांग्रेस से खुन्नस की वजह से अपनी राजनीतिक जमा-पूंजी और अपना व अपने परिवार का बचा-खुचा राजनीतिक भविष्य गंवा कर बीजेपी को मजबूत करने मे लगे है, लेकिन कामयाबी मिलना मुश्किल नजर आ रही है।
पांच साल पहले हुए चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जीती थी, पंजाब और गोवा में बुरी तरह हारी थी और मणिपुर मे भी बहुमत से बहुत पीछे रह गई थी। दूसरी ओर कांग्रेस की उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बुरी तरह हारी थी, जबकि पंजाब, गोवा और मणिपुर में उसने जीत हासिल की थी।
पंजाब में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें मिली थीं, लिहाजा सरकार बनाने में उसे कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन मणिपुर और गोवा में वह बहुमत के नजदीक सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद सरकार नहीं बना सकी थी। इन दोनों ही राज्यों में जनादेश का अपहरण कर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी।
जोड़-तोड़ की राजनीति
गोवा में तो बीजेपी बुरी तरह से हारी थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में 21सीट जीत कर पूर्ण बहुमत की सरकार पांच साल चलाने के बाद बीजेपी 2017 के चुनाव में सिर्फ 13 सीट जीत पाई थी। और 2012 के चुनाव में नौ सीट जीतने वाली कांग्रेस ने 17 सीटें जीती थी। यानी बीजेपी की सीट आधी हुई थी और कांग्रेस की दोगुनी। फिर भी बीजेपी की जोड़-तोड़, विधायकों की खरीद-फरोख्त और राज्यपाल के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के चलते कांग्रेस को सत्ता से दूर रहना पडा था और हारी हुई बीजेपी ने सरकार बना ली थी।
मणिपुर में जरूर बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन फिर भी उसकी सीटें कांग्रेस से बहुत कम थीं। कांग्रेस हार कर भी बहुमत के करीब पहुंच गई थी। उसे 60 सदस्यों की विधानसभा मे 28 सीटें मिली थीं लेकिन 21 सीट जीतने वाली बीजेपी ने वहां भी कल-बल-छल से सरकार बना ली थी और उसके बाद से वह लगातार कांग्रेस पार्टी को तोड़ती रही।
इस समय इन पांचों राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया जारी है, जो अगले महीने मार्च में खत्म हो जाएगी। उसके बाद दो अन्य राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो जाएगी। इन दोनों राज्यों में इसी साल के अंत में चुनाव होना है। उसके बाद अगले साल यानी 2023 की शुरुआत पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, मिजोरम और नगालैंड में विधानसभा चुनाव के साथ होगी। उसके बाद मई में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होंगे और फिर साल के अंत में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव हैं।
इस तरह अगले साल कुल सात राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। यानी मार्च में पांच राज्यों के चुनाव खत्म होने के बाद से लेकर अगले लोकसभा चुनाव तक कुल नौ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे।
इन नौ राज्यों में से पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों को छोड़ कर बाकी सभी छह बड़े राज्यों में कांग्रेस की या तो सरकार है या वह मुख्य विपक्षी पार्टी है। पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में से भी वह 40 सीटों वाली मिजोरम विधानसभा में पांच विधायकों के साथ-साथ वह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है।
बीजेपी की त्रिपुरा में सरकार है और नगालैंड में वह सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। इन तीनों में राज्यों में बहुकोणीय मुकाबला होगा, जहां कांग्रेस और बीजेपी के अलावा हर राज्य की क्षेत्रीय पार्टी के साथ-साथ सीपीएम यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और तृणमूल कांग्रेस भी मैदान में उतरेंगी।
गुजरात और हिमाचल में चुनाव
बड़े राज्यों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है। इन दोनों राज्यों में इन्हीं दोनों पार्टियों का आमने-सामने का मुकाबला होगा। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी और बराबरी का मुकाबला बना दिया था। कर्नाटक में भी बीजेपी की सरकार है और कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी दल है। वहां जरूर जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) भी एक ताकत है लेकिन उसका असर राज्य के एक सीमित क्षेत्र में ही है, इसलिए मुकाबला कांग्रेस बनाम बीजेपी ही होगा।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है, जबकि मध्य प्रदेश में उससे छीन कर बनाई गई बीजेपी की सरकार है। इन तीनों राज्यों में कोई असरदार क्षेत्रीय पार्टी नहीं है। इसलिए मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होना है।
इन राज्यों के चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस यानी ममता बनर्जी की राजनीति देखने वाली होगी। अगर इस साल के चुनावों में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो अगले साल होने वाले चुनावों से पहले पार्टी में बगावत के स्वर तेज हो सकते हैं पार्टी के टूटने का खतरा पैदा हो सकता।