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एक राष्ट्र एक चुनावः विपक्ष असहमत, फिर कोविंद पैनल का आम राय का दावा कैसे?

एक राष्ट्र एक चुनावः विपक्ष असहमत, फिर कोविंद पैनल का आम राय का दावा कैसे?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित वन नेशन वन इलेक्शन पैनल ने गुरुवार 14 मार्च को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस रिपोर्ट में कोविंद पैनल ने राजनीतिक दल की आम राय से तैयार की रिपोर्ट बताया है। लेकिन कोविंद पैनल का यह दावा ऐसे में कितना वाजिब है, जब देश के पूरे विपक्ष ने एक देश एक चुनाव का विरोध किया। कोविंद पैनल ने किन दलों के आधार पर इसे सभी की आम राय बता दिया, जानिएः

एक देश एक चुनाव पर दी गई अपनी रिपोर्ट को लेकर रामनाथ कोविंद पैनल ने कहा कि 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने एक देश एक चुनाव  का समर्थन किया, जबकि 15 ने इसका विरोध किया। लेकिन तथ्य यह है कि जिन दलों ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया, उनमें से सिर्फ दो ही राष्ट्रीय पार्टियाँ हैं, वो हैं - भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी)। इस पार्टी का नेतृत्व कोनराड संगमा कर रहे हैं, जो एनडीए का भी हिस्सा है। यानी एनपीपी दरअसल भाजपा का ही सहयोगी दल है।

चुनाव आयोग ने 6 पार्टियों को राष्ट्रीय दल की मान्यता दे रखी है। जिसमें से भाजपा और एनपीपी का जिक्र ऊपर किया जा चुका है कि उन्होंने इसका समर्थन किया। लेकिन बाकी चार राष्ट्रीय दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। यानी चार विपक्षी दलों - कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और सीपीआईएम  ने एकसाथ चुनाव कराने का पुरजोर विरोध किया। इस तरह सारा विपक्ष एक तरफ है और दूसरी तरह भाजपा और उसका सहयोगी दल इसके समर्थन में हैं। कोविंद पैनल ने कुल 62 राजनीतिक दलों से राय मांगी थी और 18 दलों के साथ सीधी बातचीत की थी।

महत्वपूर्ण बात यह है कि कोविंद पैनल ने जिन पार्टियों को इसके पक्ष में बताया है, वो वही दल हैं जो एनडीए में भाजपा के सहयोगी हैं। यानी जो भाजपा की राय है, वही उनकी भी राय है। जिन दलों ने एकसाथ चुनाव का समर्थन किया, उनमें भाजपा और एनपीपी के अलावा, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), अपना दल (सोनेलाल पटेल), असम गण परिषद, लोक जनशक्ति पार्टी (आर), नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (नागालैंड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, मिजो नेशनल फ्रंट और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ऑफ असम; जेडीयू, बीजू जनता दल; शिवसेना (शिंदे गुट), अकाली दल, एआईएडीएमके। इनमें से जेडीयू ने हाल ही में भाजपा का दामन थामा है।

 

चार विपक्षी दलों के अलावा विपक्ष के कुछ अन्य दलों ने भी एकसाथ चुनाव का विरोध किया। हालांकि वो राष्ट्रीय दल नहीं हैं लेकिन देश के लोकतंत्र में उनकी भी भूमिका है। विरोध जताने वाले दल हैं- एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, सीपीआई, डीएमके, नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और समाजवादी पार्टी (सपा) शामिल हैं।

कोविंद पैनल को जिन राजनीतिक दलों ने जवाब नहीं दिया। उनमें भारत राष्ट्र समिति, आईयूएमएल, जेएंडके नेशनल कॉन्फ्रेंस, जेडीएस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), एनसीपी, आरजेडी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), टीडीपी, आरएलडी और वाईएसआरसीपी शामिल हैं। आरएलडी और टीडीपी अब एनडीए में शामिल हो चुकी हैं।

अपनी रिपोर्ट में कोविंद पैनल ने दिल्ली में आयोजित एक सर्वदलीय बैठक का भी जिक्र किया है, जिसमें 19 दलों ने भाग लिया था। उस बैठक में इसी मुद्दे पर चर्चा थी। कोविंद पैनल ने रिपोर्ट में लिखा है कि इस बैठक में मौजूद 19 पार्टियों में से 16 ने एकसाथ चुनाव कराने का समर्थन किया, जबकि सिर्फ तीन ने इसका विरोध किया। रिपोर्ट के अनुसार, जिन पार्टियों ने समर्थन किया उनमें भाजपा, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी, अकाली दल, अपना दल, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया; एनसीपी; वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी) और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा। इस बैठक में विरोध करने वाली पार्टियां सीपीएम, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और एआईएमआईएम थीं।

बहिष्कार करने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और डीएमके शामिल हैं। सरकार ने जब कोविंद पैनल बनाया था, उसी समय से कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने कहा कि सरकार एक देश एक चुनाव पर आगे बढ़ना चाहती है। उसने पैनल बनाने और उससे रिपोर्ट मांगने का नाटक किया है। यह पहले से ही साफ है कि यह पैनल सरकार को उसके मनमाफिक रिपोर्ट देगा। सरकार जब यह प्रस्ताव लाई है तो उसी से उसकी मंशा साफ हो जाती है।

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