जम्मू-कश्मीर एक महीने में बिल्कुल बदल गया, हमेशा के लिए!
जम्मू-कश्मीर में पिछले एक महीने में कितना कुछ बदल गया है पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाने वाला इलाक़ा ऊपर से स्तब्ध है, लेकिन अंदर से क्यों उबल रहा है इसके ज़्यादातर इलाक़ों में एक महीने से कर्फ़्यू लगा हुआ है, लेकिन जहाँ ऐसा नहीं है, वहाँ के लोग भी क्यों घरों में दुबके पड़े हैं सुरक्षा बलों के आग्रह के बावजूद क्यों लोग दुकानें नहीं खोल रहे हैं। डल झील के शिकारे खाली पड़े हैं और सैलानी जा चुके हैं। या उन सैलानियों को चले जाने को कह दिया गया एक महीने का समय बहुत अधिक नहीं होता, लेकिन इन 30 दिनों में कश्मीर में जो कुछ हुआ, वह पिछले 70 सालों में नहीं हुआ था। झेलम में काफ़ी पानी बह चुका है और घाटी बदल चुकी है, हमेशा के लिए।
जुलाई का महीना जम्मू-कश्मीर के लिए असामान्य था। केंद्र सरकार ने पहले सुरक्षा बलों के 25 हज़ार अतिरिक्त जवान वहाँ भेजे। उसके बाद फिर 10 हज़ार और जवानों की तैनाती कर दी गई। यह सवाल पूछा जाने लगा कि आख़िर क्यों ऐसा किया जा रहा है। क्या यह अनुच्छेद 370 को हटाने की तैयारी है, जिसके तहत राज्य को विशेष दर्जा दिया गया है क्या अनुच्छेद 35 ए को ख़त्म करने की कोशिश हो रही है, जिसके तहत बाहर के लोग जम्मू-कश्मीर में स्थायी तौर पर नहीं बस सकते
मीडिया, आम जनता, सिविल सोसाइटी के अलावा राजनीतिक गलियारे में भी लोग यह सवाल पूछ रहे थे। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पूछा कि घाटी में अतिरिक्त जवानों की तैनाती क्यों की जा रही है। अब्दुल्ला ने पूछा है कि क्या यह अनुच्छेद 35ए को हटाने और परिसीमन के लिए नहीं किया जा रहा है
What “on going situation” in Kashmir would require the army AND the Air Force to be put on alert This isn’t about 35A or delimitation. This sort of alert, if actually issued, would be about something very different. https://t.co/FTYG36F6aD
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 2, 2019
गवर्नर का आश्वासन!
उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फ़ारुक अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी और उनसे कहा था कि राज्य में इस साल के अंत तक चुनाव करा लिये जाएँ। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने केंद्र सरकार को आगाह किया था कि राज्य में आर्टिकल 35ए से छेड़छाड़ करना बारूद में आग लगाने जैसा होगा। केंद्र सरकार ने कहा कि घाटी में आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को मजबूती देने के लिए जवानों को तैनात किया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस तरह की अटकलों को पूरी तरह खारिज कर दिया था और कहा था कि सरकार की इस तरह की कोई भी योजना नहीं है।जम्मू-कश्मीर सरकार ने अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं और राज्य में आने वाले पर्यटकों से कहा कि वे घाटी से वापस चले जाएँ। राज्य सरकार ने इस बारे में एडवाइजरी जारी की। एडवाइजरी में कहा गया था कि अमरनाथ यात्रा पर आतंकवादी हमलों के इनपुट को देखते हुए और कश्मीर में यात्रियों और पर्यटकों की सुरक्षा के मद्देनज़र यह सलाह दी जाती है कि वे घाटी में न रुकें और जल्द से जल्द वापस चले जाएँ।
J&K govt issues security advisory in the interest of #AmarnathYatra pilgrims and tourists, "that they may curtail their stay in the Valley immediately and take necessary measures to return as soon as possible", keeping in view the latest intelligence inputs of terror threats. pic.twitter.com/CzCk6FnMQ6
— ANI (@ANI) August 2, 2019
अमेरिकी दिलचस्पी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा ही विवादास्पद बयान दिया कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के मसले पर मध्यस्थता करने को कहा था और इसके लिए वह तैयार हैं। यह बात उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के अमेरिका दौरे के दौरान उनके साथ बैठक में कही। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने इस बयान का खंडन किया।
अमेरिकी विदेश विभाग ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में इमरान ख़ान और ट्रंप के बीच हुई बातचीत की चर्चा करते हुए बड़ी ही सावधानी से कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप के बयान को शामिल नहीं किया। उन्होंने तुरंत ही कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला बताया।
गिरफ़्तारियाँ
अगले कुछ दिनों में स्थिति साफ़ होने लगी। 4 अगस्त की रात को राज्य के कई बड़े नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया या नज़रबंद कर दिया गया। राज्य के पूर्व मुख्य मंत्रियों फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन ही नहीं, मझोले स्तर के नेता इसमें शामिल थे। ज़िला और कस्बा स्तर तक के नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। व्यापारी, बुद्धिजीवी, सिविल सोसाइटी के लोग भी इसकी जद में आ गए।5 अगस्त का ऐतिहासिक दिन!
गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त को राज्यसभा में एक प्रस्ताव रख कर अनुच्छेद 370 में संशोधन की बात कही। इसके तहत राज्य को मिलने वाला विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया गया, अनुच्छेद 35 ख़त्म कर दिया गया, जिसके तहत बाहर के लोग राज्य में नहीं बस सकते थे।
जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया-जम्मू-कश्मीर और लद्दाख। अनुच्छेद 370 के उस भाग को हटा दिया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने का हक़ दिया गया था।
इसी तरह अनुच्छेद 370 के उस भाग को हटा दिया गया, जिसके तहत कहा गया था कि संसद से पारित रक्षा, विदेश मामले और संचार से जुडे़ क़ानून ही जम्मू-कश्मीर में प्रभावी होेंगे। यह प्रस्ताव जल्द ही संसद के दो सदनों में पास कर दिया गया।
सीने में जलन, आँखों में तूफान क्यों है
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टरों ने घाटी जाकर जो खबरें भेजीं, वह निराश करने वाली है। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर में पहले भी कर्फ़्यू लगा है, सुरक्षा बलों की गश्त पहले भी हुई है, पुलिस ने पहले भी तलाशी ली है, इंटरनेट कनेक्शन और फ़ोन लाइन पहले भी निष्क्रिय किए गए हैं। पर इस बार की बात कुछ और है। क्या है वह बात इस बार लोगों की आँखों में गहरी निराशा है, हताशा है, कुंठा है और है पराजय की भावना! ये चीजें आज की कश्मीर घाटी को पहले से अलग करती हैं। यह निराशा, हताशा और कुंठा पहले कभी नहीं देखी गई थी।घाटी को बाहरी दुनिया से काट दिया गया, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल फ़ोन, लैंडलाइन फ़ोन, केबल टीवी, सब कुछ ठप कर दिया गया। लोगों को अपने पास पड़ोस के लोगों से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। प्रशासन ने अपने कर्मचारियों और सुरक्षा बल के लोगों को भी कर्फ़्यू पास नहीं दिया, सरकारी पहचान पत्र को स्वीकार नहीं किया जा रहा है।
बैरिकेड की हुई घाटी!
ख़बरों के मुताबिक़, सड़कों पर बैरिकेड लगे हैं, कंटीले तार लगा दिए गए हैं, सभी चौक चौराहे पर जवान मुस्तैद हैं। श्रीनगर में एक ही सड़क पर थोड़ी बहुत छूट है, यह वह सड़क है जो हवाई अड्डे से जवाहर नगर को जोड़ती है। प्रेस को हर कोई नापसंद करता है, स्थानीय लोग भी और सुरक्षा बल वाले भी। जहाँगीर चौक पर एक पत्रकार ने कर्फ़्यू का वीडियो बनाने की कोशिश की तो वहाँ तैनात पुलिस अफ़सर ने उसे पीट दिया।
ख़बरों में कहा गया कि भारत समर्थक चुप हैं, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कान्फ्रेंस के लोग चुप हैं, यहाँ तक कि बीजेपी के भी ज़्यादातर लोग मुँह छुपाए हुए हैं।
वे आहत हैं, उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि कैसे इसे उचित ठहराएँ, जनता को क्या कहें। इसे इससे समझा जा सकता है कि राज्य बीजेपी के अध्यक्ष ने कहा कि वे बाहर के लोगों को राज्य में नौकरी देने या उन्हें बसाने का विरोध करेंगे।
भारत विरोधी प्रदर्शन
इसके बावजूद घाटी में भाारत विरोधी प्रदर्शन हुए। शुक्रवार की नमाज के बाद हज़ारों लोगों ने जुलूस निकाला, भारत विरोधी नारे लगाए, आज़ादी की माँग की। सुरक्षा बलों ने उन्हें रोका और तितर बितर कर दिया। भारतीय मीडिया इस पर चुप रही, पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसकी ख़बर दी। बीबीसी, अल जज़ीरा, रॉयटर्स के रिपोर्टर मौके पर मौजूद थे। गृह मंत्रालय ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, दूसरी जगहों पर कुछ छिटपुट प्रदर्शन हुए, जिसमें 20 से ज़्यादा लोग शामिल नहीं थे। सरकार कहती रही कि स्थिति सामान्य है।50 साल बाद सुरक्षा परिषद में कश्मीर
पाकिस्तान के कहने पर चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अनौपचारिक बैठक में कश्मीर का मुद्दा उठाया, पर किसी देश ने उसका साथ नहीं दिया। इस बैठक के बाद कोई बयान नहीं जारी किया गया। भारत ने ज़ोरदार शब्दों में कहा कि यह उसका आंतरिक मामला है। पर इससे यह तो हो ही गया कि कश्मीर मुद्दे का अतंरराष्ट्रीयकरण हो गया।भारत-पाक तनाव
घरेलू राजनीति की वजह से और विपक्ष के हमले से परेशान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और उनके सहयोगियों ने भारत के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ दिया और उसे धमकाने लगे। समझौता एक्सप्रेस और बस सेवा बंद कर दी गईं। इमरान ख़ान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी, नरेंद्र मोदी की तुलना हिटलर से की तो भारत को शांति के लिए ख़तरा बताया, भारत के मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, यह बताने की कोशिश की।
पाकिस्तानी रेल मंत्री ने कहा कि अक्टूबर-नवंबर में दोनों देशों में युद्ध छिड़ सकता है तो भारत में पूर्व पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने परमाणु युद्ध की धमकी दे दी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि पहले परमाणु हथियार का प्रयोग नहीं करने के अपने फ़ैसले पर भारत पुनर्विचार कर सकता है।
एक महीने में कश्मीर का पूरा डायनामिक्स बदल गया। स्थानीय लोग सरकार के फ़ैसले को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, पर चुप हैं। यह चुप्पी अधिक ख़तरनाक है। भारत समर्थक आम जनता से कट चुके हैं, जनता पूरी तरह नेतृत्वहीन हो चुकी है क्योंकि सभी नेता बंद हैं, जो बाहर हैं उनमें जनता का सामना करने की हिम्मत नही है, उन्हें इस लायक नहीं छोड़ा गया है। आतंकवादियों की घुसपैठ बढ़ गई है, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठ चुका है, लोग अब पाकिस्तान की बात सुन रहे हैं, भले ही निजी हितों के कारण खुले आम समर्थन नहीं कर रहे हैं। भारत की छवि बदल रही है। उसकी धर्मनिरपेक्ष, सबको साथ लेकर चलने वाली, कश्मीर के साथ न्याय करने वाली छवि दरक रही है। मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं, असहमतियों को सख़्ती से कुचलने वाले राज्य की छवि बन रही है।
कश्मीर दोराहे पर खड़ा है, कन्फ़्यूज़्ड है। लोग नहीं समझ पा रहे है कि अब क्या होने वाला है, क्या कुछ हो सकता है। सरकार चाहे जो दावा करे, वहाँ स्थिति सामान्य नहीं है। इसे इससे समझा जा सकता है कि हाल ही में श्रीनगर के मेयर जुनैद मट्टू को सिर्फ़ इसलिए नज़रबंद कर दिया गया कि उन्होंने यह कह दिया कि 'सड़कों पर लाशें नहीं बिखरी हैं, इसका मतलब यह नहीं कि सब कुछ सामान्य है।' दो दिन पहले जम्मू-कश्मीर के सरपंचों की एक बैठक गृह मंत्री के साथ कराई गई। एक सरपंच ने खुले आम कह दिया कि स्थिति सामान्य नहीं है और हम अपने ही लोगों के बीच नहीं जा पा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने उनसे कहा है कि अगले 20-25 दिन में घाटी में स्थिति सामान्य हो जाएगी। क्या सचमुच पता नहीं। पर क्या जम्मू-कश्मीर पहले की तरह हो जाएगा शायद नहीं। वह हमेशा के लिए बदल चुका है।