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किसके साथ जाएंगे राजभर, बीजेपी के या फिर बीएसपी के?

किसके साथ जाएंगे राजभर, बीजेपी के या फिर बीएसपी के?

अगर राजभर बीएसपी के साथ जाते हैं तो मायावती का कोर वोट बैंक माने जाने वाले दलित और सुभासपा के आधार वाली अति पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को मिलाकर उत्तर प्रदेश और विशेषकर पूर्वांचल के भीतर एक नया सियासी समीकरण तैयार हो सकता है। 

उत्तर प्रदेश की सियासत के चर्चित राजनेता ओमप्रकाश राजभर का अगला कदम क्या होगा, इस पर तमाम राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें टिकी हुई हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष राजभर की लगातार तीखी बयानबाजी के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें खुला पत्र लिखकर कहा था कि उन्हें जहां ज्यादा सम्मान मिलता है, वे वहां जाने के लिए आज़ाद हैं। 

राजभर के साथ ही अखिलेश यादव के चाचा और पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव का भी अगला क़दम क्या होगा, इस बारे में उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा है। 

इस बीच, बीजेपी के सांसद रवि किशन ने कहा है कि ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव बीजेपी के साथ आ रहे हैं।

मार्च में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल सिंह यादव लगातार पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर निशाना साध रहे थे। दोनों ही नेताओं के बीजेपी के आला नेताओं के संपर्क में होने की बात भी सामने आई थी।

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समाजवादी पार्टी की ओर से पत्र जारी होने के बाद ओमप्रकाश राजभर ने कहा था कि वह बीएसपी के नेताओं के साथ बातचीत करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि राजभर सत्तारूढ़ पार्टी के बजाय उत्तर प्रदेश में लगभग हाशिए पर जा चुकी बीएसपी के साथ क्यों जाएंगे।

पूर्वांचल में है असर 

पूर्वांचल के कुछ जिलों में राजभर वोटों की संख्या और ओमप्रकाश राजभर के सियासी असर को देखते हुए बीजेपी उन्हें योगी कैबिनेट में मंत्री बना सकती है। राजभर 2017 में भी योगी कैबिनेट में मंत्री बने थे लेकिन बाद में पिछड़ों के आरक्षण के बंटवारे के मसले पर वह सरकार से बाहर निकल गए थे।

अगर राजभर बीएसपी के साथ जाते हैं तो मायावती का कोर वोट बैंक माने जाने वाले दलित और सुभासपा के आधार वाली अति पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को मिलाकर उत्तर प्रदेश और विशेषकर पूर्वांचल के भीतर एक नया सियासी समीकरण तैयार हो सकता है।

दूसरी ओर बीएसपी को भी राज्य में ऐसे राजनीतिक सहयोगी की जरूरत है जो उसे सहारा दे सके। यहां बताना होगा कि ओमप्रकाश राजभर ने अपना सियासी करियर बीएसपी से ही शुरू किया था।

सपा को होगा नुकसान!

निश्चित रूप से अगर उत्तर प्रदेश में बीएसपी और ओमप्रकाश राजभर साथ आ जाते हैं तो दलित, अति पिछड़ी जातियों और मुसलमानों का एक सियासी समीकरण बन सकता है और यह 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बीजेपी से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। इस सियासी समीकरण की आबादी उत्तर प्रदेश में 60 फीसदी है।

बीएसपी से की बात

सुभासपा के सूत्रों के मुताबिक, ओमप्रकाश राजभर ने बीएसपी के बड़े नेताओं से बातचीत की है और उनसे गठबंधन की संभावनाओं को लेकर भी चर्चा की गई है। पार्टी के मुख्य महासचिव अरविंद राजभर ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “दोनों दलों की विचारधारा और सिद्धांत एक जैसे ही हैं। कांशीराम ही राजभर को राजनीति में लाए थे और ओमप्रकाश राजभर कांशीराम के विचारों से प्रभावित हैं।”

ओमप्रकाश राजभर को योगी सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है और इसलिए माना जा रहा है कि कुछ वक्त के बाद ओमप्रकाश राजभर बीजेपी से गठबंधन कर लेंगे। दूसरी ओर शिवपाल सिंह यादव क्या करेंगे इस बारे में भी चर्चा जोरों पर है। 

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शिवपाल ने समाजवादी पार्टी के पत्र का जवाब यह कह कर दिया था कि राजनीतिक यात्रा में सिद्धांतों एवं सम्मान से समझौता अस्वीकार्य है। शिवपाल सिंह यादव के पास राजभर की तरह मायावती की पार्टी बीएसपी से हाथ मिलाने का विकल्प नहीं है। ऐसे में वह बीजेपी के साथ जा सकते हैं और बीजेपी उन्हें या उनके समर्थकों को राज्य सरकार में मंत्री पद या कुछ अहम महकमे दे सकती है। 

2024 का चुनाव 

निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दोनों ही नेताओं का कुछ इलाकों में असर है और अगर यह दोनों नेता बीजेपी के साथ जाते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा का नुकसान करने के साथ ही बीजेपी को सियासी फायदा पहुंचा सकते हैं। बहरहाल, देखना दिलचस्प होगा कि ये नेता क्या क़दम उठाते हैं। 

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