मनमोहन सरकार के तेल बॉन्ड की वजह से बढ़ रही हैं पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें?
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सत्तारूढ़ बीजेपी ने पेट्रोलियम उत्पादों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से जिस तरह पल्ला झाड़ लिया है और इसके लिए पूर्व कांग्रेसी सरकार के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया है, उससे कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
क्या वाकई मनमोहन सिंह सरकार के समय जारी तेल बॉन्ड की वजह से तेल की कीमतें बढ़ रही हैं? क्या बीजेपी सरकार ने कभी तेल बॉन्ड जारी नहीं किया था?
क्या तेल की बढ़ी कीमतों से जो अतिरिक्त पैसे मिले हैं, उससे तेल बॉन्ड को चुका दिया गया? सवाल यह भी उठता है कि कितने पैसे के तेल बॉन्ड का भुगतान किया गया और कितने पैसे तेल की बढ़ी कीमतों से मिले हैं?
इन तमाम सवालों की पड़ताल की जा सकती है।
'फ़ाइनेंशियल फ़्रॉड'?
पहले बीजेपी ने क्या कहा है, इस पर डालते हैं एक नज़र।
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्ववीट कर कहा, “पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ी क़ीमतें यूपीए के कुप्रबंध से मिली विरासत हैं।”
ट्वीट में आगे कहा गया है, “हम तेल बॉन्ड के लिए पैसे चुका रहे हैं, जो वित्तीय वर्ष 2021 से 2026 के बीच पूरे मैच्योर हो जाएंगे, यूपीए सरकार ने तेल कंपनियों को पैसे देने के बदले ये बॉन्ड जारी कर दिए थे।”
'बुरी अर्थव्यवस्था, बुरी राजनीति।'
Let’s understand this financial fraud of UPA better.
— Amit Malviya (@amitmalviya) June 21, 2021
These bonds were issued to finance the subsidy given on some petroleum products to cover the difference between the purchase price by the oil companies and the reduced price they were forced to sell by the UPA government. 1/n https://t.co/QeZCIHXqvU
मालवीय ने इसे 'वित्तीय धोखाधड़ी' ('फ़ाइनेंशियल फ़्रॉड') तक क़रार दिया।
बीजेपी ने एक दूसरे ट्वीट में पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह पर तंज करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते, लेकिन 1.30 लाख करोड़ रुपए के तेल बॉन्ड भुगतान किए बग़ैर चले गए।
What the economist PM Manmohan Singh said & did on petroleum prices? He said that money does not grow on trees & left unpaid bills of oil bonds worth Rs. 1.3 lakh crore. Modi govt paid off the pending bills with interest because 'we should not burden our children'. #NationFirst pic.twitter.com/Z8zTV1kG1i
— BJP (@BJP4India) September 10, 2018
क्या होता है तेल बॉन्ड?
सबसे पहले तेल बॉन्ड क्या होता है, यह समझना ज़रूरी है।
यह एक तरह का डेट इंस्ट्रूमेंट है यानी क़र्ज़ का काग़ज़ है, जो केंद्र सरकार तेल विपणन कंपनियों, फ़र्टिलाइज़र्स कॉरपोरेशन और फ़ूड कॉरपोरेशन को पैसे के बदले दे सकती। यह लंबी अवधि, मोटे तौर पर 15-20 साल के लिए होता है और उस पर एक निश्चित दर पर ब्याज चुकाया जाता है।
पहले पेट्रोल व डीज़ल की कीमतें केंद्र सरकार तय करती थी। वह तेल विपणन कंपनियों को उनका घाटा पाटने के लिए सब्सिडी देती थी। बाद में आर्थिक उदारीकरण के नाम पर 2010 में पेट्रोल की कीमतों से यह व्यवस्था हटा ली गई, तेल विपणन कंपनियों से कहा गया कि वे बाज़ार की दर पर तेल बेचें।
इसके बाद अक्टूबर 2014 में यानी मोदी सरकार के आने के बाद डीज़ल पर से भी यह व्यवस्था हटा ली गई। साल 2017 में डायनमिक फ़्यूल प्राइसिंग सिस्टम लागू कर दिया गया। इसके बाद पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें रोज़ बदलने लगीं।
कांग्रेस की सरकार ने तेल बॉन्ड इसलिए जारी किए थे कि वह तेल विपणन कंपनियों को पैसे देने की स्थिति में नहीं थी। उसके बदले यह डेट इंस्ट्रूमेंट दिया था, जिस पर हर साल इन कंपनियों को ब्याज मिलता रहा।जब-जब ये बॉन्ड मैच्योर होंगे, उन्हें रिडीम करना होगा, यानी उसका मूल चुकाना होगा। तेल बॉन्ड को नीचे के ग्राफ से समझा जा सकता है।
इसके हिसाब से 2022 से 2026 तक ये बॉन्ड रिडीम होंगे, यानी उन पर मूल चुकाना होगा, ब्याज तो उसके पहले ही चुकाया जा चुका होगा।
अब जरा बीजेपी के दावों की पड़ताल करते हैं।
देश में सबसे पहले तेल बॉन्ड बीजेपी की सरकार ने ही जारी किए थे। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री राम नायक ने 30 मार्च 2002 को 9,000 करोड़ रुपए के तेल बॉन्ड जारी किए थे ताकि तेल पूल खाते के घाटे का 80 प्रतिशत हिस्सा पाटा जा सके।
कई तेल बॉन्ड
उसके बाद 2006, 2007, 2008 और 2010 में तेल बॉन्ड जारी किए गए। इस दौरान मनमोहन सिंह की सरकार रही। इसके बाद तेल बॉन्ड की प्रथा ही ख़त्म कर दी गई क्योंकि सरकार को तेल कंपनियों को पैसे देने की ज़रूरत नहीं रही। उन्हें कह दिया गया कि वे बाज़ार की क़ीमत पर पेट्रोलियम उत्पाद बेचें।
कितने का भुगतान?
सवाल यह भी है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से अब तक कितने रुपए के तेल बॉन्ड का भुगतान किया है।
साल 2014 से 2019 तक सिर्फ एक बार साल 2015 में एक तेल बॉन्ड मैच्योर हुआ और उस मद में केंद्र सरकार ने 3,500 करोड़ रुपए का भुगतान किया।
तेल बॉन्ड भुगतान!
- साल 2021 में 10 हज़ार करोड़ रुपये के तेल बॉन्ड मैच्योर होने वाले हैं, जिनका भुगतान केंद्र सरकार को करना होगा।
- ये 15 साल की मैच्युरिटी वाले पाँच-पाँच हज़ार करोड़ रुपए के दो बॉन्ड हैं।
- पहला बॉन्ड 16 अक्तूबर 2006 को जारी किया गया था, दूसरा बॉन्ड 28 नवंबर 2006 को जारी किया गया था।
- 2007 में जारी 5,000 करोड़ रुपये के ऑयल बॉन्ड 12 फ़रवरी 2024 को मैच्योर हो रहे हैं।
- इसके अलावा 2008 में जारी 22,000 करोड़ रुपये के ऑयल बॉन्ड 10 नवंबर 2023 को मैच्योर होंगे।
- साल 2010 में जारी तेल बॉन्ड 2026 में मैच्योर होंगे। ये अंतिम तेल बॉन्ड होंगे।
जिस समय नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई, तेल बॉन्ड की कुल देनदारी 1,34,423 करोड़ रुपए की थी। साल 2018 में ब्याज चुकाने के बाद कुल देनदारी 1,30,923 रुपए की हो गई।
कांग्रेस सरकार का तेल बॉन्ड भुगतान
यह सवाल अहम इसलिए है कि बीजेपी के प्रचार का कुल अर्थ तो यही है कि तेल बॉन्ड के लिए भुगतान उसी ने किया है, जो कांग्रेस को करना था।
लेकिन सच तो यह है कि कांग्रेस की सरकार ने भी तेल बॉन्ड का भुगतान किया था और बीजेपी सरकार की तुलना में बहुत अधिक रकम का भुगतान किया था।
साल 2009-10 और साल 2013-2014 के बीच मनमोहन सिंह सरकार ने 53,163 करोड़ रुपए का भुगतान किया था।
टैक्स वसूली!
अब एक नज़र पेट्रोलियम उत्पादों पर लगे टैक्सों से होने वाली वसूली पर डालते हैं।
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने 22 मार्च 2021 को कहा था कि जिस साल बीजेपी सत्ता में आई, उस साल यानी 2014-15 के दौरान पेट्रोल पर लगे केंद्रीय उत्पाद कर के रूप में 29,279 करोड़ रुपए और 42,881 करोड़ रुपए डीज़ल से मिले थे।
वित्त राज्य मंत्री के लिखित जवाब से यह साफ हो जाता है कि पेट्रोल और डीज़ल पर लगे उत्पाद कर से होने वाली कमाई हर साल बढ़ती ही चली गई। देखें ऊपर लगा टेबल।
अप्रैल 2020 और जनवरी 2021 के बीच पेट्रोल पर लगे उत्पाद कर के रूप में 89,575 करोड़ रुपए और डीज़ल से 2,04,906 करोड़ रुपए मिले। यानी केंद्र सरकार को 10 महीनों में पेट्रोल और डीज़ल के उत्पाद कर के रूप में 2,94,481 करोड़ रुपए की कमाई हुई।
कमाई का ज़रिया!
पेट्रोल-डीज़ल केंद्र और राज्य सरकारों के लिए कमाई का सबसे बढ़िया ज़रिया है। पिछले सात साल में केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 258 प्रतिशत बढ़ाई है। डीज़ल पर उत्पाद कर 820 प्रतिशत बढ़ी है।
साल 2014 में पेट्रोल पर प्रति लीटर 9.20 रुपए एक्साइज ड्यूटी थी। आज 32.90 रुपए है। डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 3.46 रुपए थी। आज 31.80 रुपए हो गई है।
एक बार फिर लौटते हैं बॉन्ड के भुगतान पर।
केंद्र सरकार को 1.31 लाख रुपये के ऑयल बॉन्ड के मूलधन के रूप में तेल कंपनियों को देने हैं, इसमें ब्याज़ भी लगेगा और यह रक़म दोगुनी हो सकती है। कुल मिला कर यह रकम 2.62 लाख रुपये या इससे कम हो सकती है।
लेकिन केंद्र सरकार को वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीनों में ही पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स से 2.94 लाख करोड़ की कमाई हुई है।
यानी तेल बॉन्ड पर केंद्र सरकार को जितना पैसा चुकाना होगा, उससे अधिक पैसे तो एक साल में ही बतौर टैक्स मिल रहा है। ऐसे में यह दावा ग़लत है कि इस बॉन्ड की वजह से तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं।