इसलामिक देशों के रूख़ बदलने से मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी?
भारत सरकार के लिए समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। चीन और नेपाल के साथ बढ़ते टकराव के बीच अब इसलामिक देशों के संगठन ओआईसी ने भी मोर्चा खोल दिया है। अनुच्छेद 370 पर ओआईसी का सख़्त रवैया सामने आया है। ओआईसी ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और मूल निवासियों से संबंधित नए नियम लागू किए जाने को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन बताया है।
ओआईसी के इस रुख़ से भारत की चिंता बढ़नी लाज़िमी है, क्योंकि अभी तक वह उसे इस तरह की कार्रवाई से रोके रहने में कामयाब रहा था। इस घटनाक्रम की एक अहम बात यह भी है कि यह एक तरह से पाकिस्तान की बड़ी कामयाबी भी है। पाकिस्तान कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद से ही ओआईसी को भारत के ख़िलाफ़ कड़ा रुख़ अख़्तियार करने के लिए दबाव डाल रहा था, मगर उसे अब जाकर इसमें सफलता मिल पाई है।
ओआईसी के कांटैक्ट ग्रुप विदेश मंत्रियों की आपातकालीन बैठक में विदेश मंत्रियों ने मानवाधिकारों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र के पिछले दो प्रस्तावों का स्वागत किया है। यही नहीं, उसने भारत से पाँच माँगें भी की हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में जनमत संग्रह करवाना, कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन को रोकने, सूबे की आबादी में किसी तरह के संरचनात्मक बदलाव न होने देने, संयुक्त राष्ट्र के संगठनों द्वारा मानवाधिकारों की स्वतंत्र रूप से जाँच-पड़ताल करने देने और मानवाधिकारों की स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जाँच बैठाने के लिए सहमत होना शामिल हैं।
ये सभी माँगें मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाली हैं और पूरी तरह से पाकिस्तानी एजेंडे पर आधारित हैं। ज़ाहिर है कि अगर पाकिस्तान का एजेंडा ओआईसी का एजेंडा बन रहा है और तमाम इसलामिक देश उसका समर्थन करते हैं तो इससे एक बड़ा दबाव पैदा हो सकता है। ओआईसी के 57 देश सदस्य हैं और इनमें से 53 मुसलिम बहुल देश हैं। इन देशों की कुल आबादी एक अरब अस्सी करोड़ है।
कुछ समय पहले तक अनुच्छेद 370 पर ओआईसी स्टैंड लेने से बच रहा था। इस मुद्दे पर उसके अंदर मतभेद भी उभर आए थे, इसीलिए पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद संगठन ने इस बाबत कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था। उस समय सऊदी अरब इस रुकावट की सबसे बड़ी वजह था।
सऊदी अरब की सहमति के बिना ओआईसी से कुछ करवाना संभव नहीं होता। उस समय उसने यहाँ तक कह दिया था कि यह भारत का आंतरिक मामला है। ऐसा भारत के साथ उसके संबंधों की वज़ह से हुआ था और इसे सरकार ने एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर प्रचारित भी किया था। और यह सही भी थी क्योंकि उस समय ओआईसी अगर कोई कड़ा रूख़ ले लेता तो उसका बहुत बड़ा असर पड़ता। कम से कम पाकिस्तान के हौसले तो बुलंद हो ही जाते।
इसके बाद पाकिस्तान ने उन देशों के साथ दबाव बनाना शुरू कर दिया था जो उससे सहमति रखते थे। इनमें तुर्की, मलेशिया और ईरान प्रमुख थे। इनके साथ मिलकर उसने कुआलालंपुर में एकजुट होने की योजना भी बना डाली थी, मगर माना जाता है कि सऊदी अरब के दबाव की वज़ह से उसे रोकना पड़ा।
सऊदी अरब का रवैया
हो सकता है कि सऊदी अरब को उम्मीद रही हो कि कुछ समय बाद कश्मीर में सब सामान्य हो जाएगा यानी पाँच अगस्त को लगाया गया लॉकडाउन हटा लिया जाएगा और कश्मीरियों का दमन रुक जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं जिससे संगठन के अंदर नाराज़गी बढ़ती गई।
अब अनुच्छेद 370 पर ओआईसी का रूख़ अगर बदला है तो इसमें पाकिस्तान के दबाव से ज़्यादा भूमिका उन दूसरे क़दमों की है जो भारत सरकार ने बाद में उठाए। अव्वल तो सबसे बड़ी वज़ह कश्मीर के हालात में सुधार न होना है ही। लगभग साल होने का आ रहा है मगर वहाँ कश्मीरियों को पुलिस और सुरक्षा बलों की मेहरबानी पर ही जीना पड़ रहा है। उन्हें किसी तरह की आज़ादी नहीं मिल रही। मीडिया को तो पूरी तरह से कुचल दिया गया है।
फिर भारत सरकार ने जिस तरह से नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू किया और उसके विरोध को कुचला उसने भी इसलामी देशों को उद्वेलित कर दिया था।
शाहीन बाग़ दुनिया भर में विरोध की मिसाल बन गया था, मगर केंद्र सरकार ने उसके और दूसरी तमाम जगहों पर हुए आंदोलनों के प्रति सख़्त रूख़ अपनाया था।
जामिया मिल्लिया इसलामिया, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय, लखनऊ, कानपुर आदि तमाम जगहों पर सरकारों ने आंदोलनकारियों पर जमकर बल प्रयोग किया और उनके ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे बनाकर उनका उत्पीड़न करने का सिलसिला शुरू किया जो अभी तक जारी है।
दिल्ली के दंगे
इसकी अगली कड़ी में दिल्ली के दंगे जुड़ गए। दिल्ली दंगों को सरकार द्वारा सुनियोजित दंगों के तौर पर देखा गया। इसके पर्याप्त प्रमाण भी मिले कि पुलिस इन दंगों मे मुसलिम विरोधी भीड़ का साथ दे रही थी। दंगों के बाद पुलिस ने एक ही समुदाय के लोगों को आरोपी बनाकर गिरफ़्तार करना भी शुरू कर दिया। इसके बहाने सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों को भी दंगों का आरोपी बनाने का सिलसिला भी शुरू हो गया।
कोरोना के दौरान जिस तरह से सत्तारूढ़ दल और सरकार ने मिलकर इसलामोफोबिया पैदा किया उसने मुसलिम देशों और ख़ास तौर पर खाड़ी के देशों मे तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। तब्लीग़ी जमात का मसला तो था ही, मगर मुसलमानों के बहिष्कार की ख़बरों ने भी दुनिया भर में यह प्रचारित कर दिया कि भारत में मुसलमानों को सताया जा रहा है।
इतनी सारी घटनाओं के बाद सऊदी अरब पर भी दबाव पड़ना लाज़िमी हो गया था। यही वजह है कि अनुच्छेद 370 पर ओआईसी ने अब जाकर आवाज़ उठाई है।
पाकिस्तान ओआईसी के रुख़ में आए इस परिवर्तन के बाद ज़ाहिर है कि और भी सक्रिय हो जाएगा और चाहेगा कि ज़्यादा से ज़्यादा मुसलिम देश खुलकर भारत की आलोचना करें और उस पर दबाव बनाएँ। वह संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के दरवाज़े भी खटखटाएगा।
ऐसे में चौतरफ़ा समस्याओं से घिरी मोदी सरकार क्या कर पाती है यह देखना होगा। इतना तो साफ़ है कि उसकी परेशानियाँ बढ़ गई हैं और चुनौती भारी है।