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ओडिशाः सातवें चरण में नवीन पटनायक कितनी सीटें संभाल पाएंगे

ओडिशाः सातवें चरण में नवीन पटनायक कितनी सीटें संभाल पाएंगे

ओडिशा में सातवें चरण का चुनाव बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक की प्रतिष्ठा से जुड़ा मुकाबला माना जा रहा है। लेकिन सरकार विरोधी लहर भी हावी है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी आखिरी ताकत झोंकने बुधवार को रैली करने आ रहे हैं। दरअसल, लोकसभा की 6 और विधानसभा की 42 सीटें तटीय क्षेत्रों में हैं। हाल के वर्षों में यहां भाजपा ने अपनी उपस्थिति किसी न किसी बहाने दर्ज कराई है। जानिए चुनावी राजनीतिः

ओडिशा में अंतिम चरण मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के लिए काफी मुश्किलभरा साबित होने वाला है। मयूरभंज, बालासोर, भद्रक, जाजपुर, केंद्रपाड़ा और जगतसिंहपुर लोकसभा सीटें और 42 विधानसभा सीटें की सीटों पर इस बार करीबी मुकाबला देखने को मिल सकता है। विधानसभा की सभी 42 सीटें इन्हीं 6 लोकसभा सीटों में आती हैं। यानी जो भी पार्टी विधानसभा जीतेगी, वही लोकसभा की सीटें भी निकाल पाएगी।

आखिरी चरण में 1 जून को होने वाले मतदान में लोकसभा चुनाव के लिए 66 उम्मीदवार 42 विधानसभा सीटों के लिए 394 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजेडी सिर्फ नवीन पटनायक के चेहरे और काम पर निर्भर है। दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस के पास राष्ट्रीय नेताओं की कमी नहीं है, जिनकी रैलियां यहां हो चुकी हैं या होने वाली है। मोदी बुधवार को ओडिशा आ रहे हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना और प्रताप सारंगी, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा और बीजू जनता दल (बीजेडी) के वरिष्ठ नेता राजश्री मल्लिक ने अपनी-अपनी सीटों पर जबरदस्त प्रचार अभियान चलाया। लेकिन भाजपा का प्रचार काफी प्रभावशाली दिख रहा है। इन सभी लोगों पर अपनी सीटें बचाने का दबाव है। इसी तरह विधानसभा चुनाव में, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल, पूर्व ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निरंजन पटनायक, राज्य के मंत्री अतनु सब्यसाची नायक, प्रताप देब और प्रीतिरंजन घदाई और ओडिशा विधानसभा की अध्यक्ष प्रमिला मलिक भी जोर लगा रही हैं। लोकसभा के मुकाबले चंद विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की स्थिति बेहतर लग रही है।

2019 में राज्य में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक था। यह चरण नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी के लिए महत्वपूर्ण है। बीजेडी को 2019 के चुनावों में बड़ी जीत हासिल की थी और राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत भी मिला था। 25 वर्षों से सत्ता में रहने के बाद नवीन पटनायक इस बार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं। अपने सहयोगी वी.के. पांडियन के साथ कोई चुनाव क्षेत्रों में दौरा करके अभियान को गति देने की कोशिश की है।

बालासोर लोकसभा सीट पर तिकोना मुकाबला होने की उम्मीद है। कांग्रेस के श्रीकांत जेना, भाजपा के प्रताप सारंगी और बीजेडी की लेखाश्री सामंतसिंघर ने आरोप-प्रत्यारोप में कोई कमी नहीं छोड़ी है। मयूरभंज लोकसभा में चुनावी लड़ाई बीजेपी के लिए काफी मुश्किल वाली होने की उम्मीद है। भाजपा को अपनी 2019 की सफलता को दोहराने के लिए काफी मशक्कत करना पड़ रहा है। हालांकि 2019 में भाजपा ने मयूरभंज लोकसभा सीट और इसके छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं।

बीजू जनता दल केंद्रपाड़ा लोकसभा सीट को भाजपा के हाथों खोने के मूड में नहीं है। क्योंकि बीजेडी को विरासत में मिली हुई यह सीट है। केंद्रपाड़ा ने पूर्व सीएम बीजू पटनायक, रबी रे और श्रीकांत कुमार जेना जैसे लोगों को चुना है, जो इस यहां से चुनाव जीतने के बाद या तो केंद्रीय मंत्री या लोकसभा अध्यक्ष बन गए हैं। यहां बीजेडी की हार नवीन पटनायक के रुतबे के लिहाज से एक बड़ा नुकसान होगा।

केंद्रपाड़ा में उम्मीदवार आमतौर पर मायने नहीं रखते। मतदाता कौन सी पार्टी अधिक पसंद है, इस आधार पर वोट करते हैं। अब तक वो पार्टी बीजेडी को चुनते रहे हैं। हालाँकि बीजेडी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बहुत साफ दिखाई दे रही है। खासतौर पर केंद्रपाड़ा के ग्रामीण इलाकों में विकास की कमी, पानी की कमी और लंबे समय से चली आ रही मांगों की पूर्ति न होना बीजेडी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वे भाजपा को वोट दे देंगे। उनके पास कांग्रेस का भी विकल्प है। 

ऐसे ही हालात भद्रक, जाजपुर, और जगतसिंहपुर लोकसभा सीटों पर भी हैं। बीजेडी की रैलियों में 2019 के मुकाबले भीड़ भी कम आ रही है। भाजपा ने पूरा चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा है। हालांकि नवीन पटनायक की कमजोरियों पर भी मोदी और अमित शाह ने हमले किए लेकिन जनता ने अपने मुद्दों पर ज्यादा गौर किया है।

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