शारदा सिन्हा: लोक संगीत की अविस्मरणीय आवाज़
शारदा सिन्हा, भोजपुरी और मैथिली लोक संगीत की अविस्मरणीय आवाज़, आज हमारे बीच नहीं हैं। उनके निधन ने संगीत की एक ऐसी धारा को खो दिया है, जिसका रिक्त स्थान शायद कभी भरा न जा सके। उनका संगीत न केवल सुरों की गूँज था, बल्कि एक संस्कृति की पहचान, एक समाज की आत्मा थी। शारदा जी का संगीत हमारे लोक जीवन, उसकी संवेदनाओं और उसकी पहचान को दुनिया तक पहुँचाने का अद्वितीय माध्यम था। वे भोजपुरी और मैथिली गीतों की देवी मानी जाती थीं, और उनकी आवाज़ में वह शक्ति थी जो सीधे दिलों को छू जाती थी।
उनके गीतों का जादू इतना प्रभावशाली था कि उनके बिना भोजपुरी समाज की छवि अधूरी लगने लगी थी। फौजी पतियों के लिए "पनिया के जहाज से पलटनिया" जैसे उनके गीत न केवल भोजपुरी लोक संगीत के प्रतिनिधि बन गए, बल्कि उन गीतों में निहित प्रेम, पीड़ा और संघर्ष की संवेदनाएँ आज भी हर घर में गूँजती हैं। यह गीत न केवल एक सामाजिक सन्देश था, बल्कि यह उस समय की व्यथा और प्रेम को सरलता और मासूमियत के साथ व्यक्त करता था। शारदा जी की आवाज़ ने उस गीत को अमर कर दिया।
लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान शायद "छठ के गीत" के रूप में रहा, जो खासकर बिहार और उत्तर भारत में छठ पूजा के दौरान अनिवार्य रूप से गाए जाते हैं। "हर हर महादेव" से लेकर "उगीं हो सुरुज देव” तक उनके छठ गीतों की कोई सानी नहीं।
शारदा सिन्हा के कुछ लोकप्रिय छठ गीतों को याद करती हूँ तो सबसे पहले उनके ये गीत सबको याद आएंगे।
- कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…
- केलवा के पात पर उगेलन सुरुजमल झांके झुके…
- उग हो सूरज देव…
- उगिहें सूरज गोसईयां हो…
- छठी मईया व्रत तोहार…
- रुनकी झुनकी बेटी मांगीला, पढ़ल पंडितवा दामाद…
छठ पूजा के अवसर पर शारदा सिन्हा के ये लोकप्रिय गीत इस पुण्य पर्व में रंग भर देते हैं। उनका ‘हो दीनानाथ’, जो ‘छठी मैया’ एल्बम का है, छठ पर्व पर खूब सुना जाता है। और विधि का विधान देखिए, छठ गीतों की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा को छठी मइया ने इस छठ महापर्व पर अपने पास बुला लिया।
उनके करोड़ों श्रोताओं और प्रशंसकों को अब शारदा जी के गीतों के बिना छठ पर्व अधूरा सा लगेगा। शारदा सिन्हा का संगीत छठ पूजा के रिवाजों, उसकी आस्था और उसकी श्रद्धा का अभिन्न हिस्सा बन चुका था। उनके गीतों ने छठ पूजा को एक सांस्कृतिक विरासत के रूप में जीवित रखा और उसे नई पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे गीत नहीं थे, बल्कि छठ की पूजा का जीवित रूप थे—सामाजिक जुड़ाव और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक।
उनकी गायकी में एक ऐसी विशेषता थी कि चाहे वह शास्त्रीय संगीत का स्वरूप हो या लोक गीतों की सहजता, उन्होंने दोनों को बखूबी मिलाया और एक नया आयाम दिया।
शारदा जी का संगीत न केवल उनके समय की पहचान बन गया था, बल्कि आज भी उनके गीत हम सबके बीच जीवित हैं। उन्होंने लोक संगीत को सिर्फ एक मंच तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे घर-घर में पहुँचाया। आज भी उनकी गाई हुई आवाज़ें हर साल छठ पूजा के समय घरों में गूँजती हैं। उनके बिना, वह त्योहार अधूरा सा लगता है।
मेरे लिए, शारदा जी का साथ और आशीर्वाद एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुभव था। मेरा उनसे परिचय उस समय हुआ था जब मैंने 1987 में कॉलेज ज्वाइन किया था। संगीत के लेक्चरर के लिए मेरे इंटरव्यू को शारदा जी ने लिया था, और उस मुलाकात के बाद से ही उन्होंने मेरे प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और स्नेह दिखाया। उनकी सादगी, विनम्रता और कला के प्रति समर्पण ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। वह मेरी प्रेरणा बन गयीं। और मुझे छोटी बहन मानने लगीं। मेरे सैकड़ों संगीत कार्यक्रम साथ-साथ हुए। दिल्ली, मुंबई से लेकर देश के तमाम मंचों पर हमने साथ प्रस्तुतियां दीं।
शारदा जी से मेरी अंतिम मुलाक़ात महज कुछ दिन पहले हुई थी, जब दिवाली से एक दिन पहले 30 अक्टूबर को मैं एम्स अस्पताल में उनसे मिलने गई थी। उनके चेहरे पर जो शांति और संतोष था, वह अद्वितीय था। उस मुलाक़ात में उन्होंने मुझे ढेर सारा आशीर्वाद दिया, जो मेरे लिए जीवन भर का सबसे क़ीमती तोहफा है। आज उनके चले जाने के बाद, उनके आशीर्वाद की वह यादें मेरे साथ हमेशा रहेंगी, जैसे उनके गीत हमारी आत्मा में हमेशा गूंजते रहेंगे।
उनके निधन से न केवल भोजपुरी और मैथिली संगीत जगत को अपूरणीय क्षति हुई है, बल्कि समूचे लोक संगीत ने एक अद्वितीय कलाकार को खो दिया है। शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी से उस संगीत को एक नया आयाम दिया था, जिसे प्रायः हाशिये पर समझा जाता था। आज उनका नहीं होना, एक गहरी खामोशी का एहसास कराता है, जो कभी भर नहीं सकती।
उनकी आवाज़ और उनका संगीत सिर्फ एक धरोहर नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक अस्तित्व का हिस्सा बन चुका है। शारदा सिन्हा का नाम हमेशा लोक संगीत की अविस्मरणीय आवाज़ के रूप में लिया जाएगा। उनका योगदान सिर्फ सुरों में नहीं, बल्कि संस्कृति और समाज के प्रति उनके अद्वितीय समर्पण में था। वह भी अश्लीलता की घोर विरोधी रहीं और मैं भी। हम उनके संगीत को हमेशा याद करेंगे, और उनका आशीर्वाद हमारे साथ हमेशा रहेगा।
शारदा जी, आपके निधन से हम स्तब्ध हैं। गहरे शोक में डूबे हैं। लेकिन आपका संगीत, आपकी आवाज़ हमेशा हमारे साथ रहेगी, जैसे आपका आशीर्वाद हमारी धरोहर रहेगा। भारतीय लोक संगीत में आपके योगदान को हमेशा बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाएगा। अंतिम प्रणाम शारदा दी!
(लेखिका विजया भारती आकाशवाणी-दूरदर्शन की प्रसिद्ध कलाकार, बिहार की सुप्रसिद्ध लोकगायिका, कवयित्री और लोक संस्कृति की मर्मज्ञ हैं।)