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ओबीसी फैक्टरः यूपी में अब कौन दबाव में, सपा या बीजेपी ?

ओबीसी फैक्टरः यूपी में अब कौन दबाव में, सपा या बीजेपी ?

बीजेपी ने सपा के ओबीसी फैक्टर को लेकर अपने सहयोगी दलों अपना दल और निषाद समाज पार्टी को ज्यादा टिकट और महत्व देने का फैसला किया है। जानिए पूरी राजनीति। 

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने आज एक ऐसी घोषणा की, जिसे लेकर संशय नहीं था लेकिन उनके बयान के बाद यह संकेत मिल रहा है कि बीजेपी सपा की राजनीति को मात देने के चक्कर में दबाव में आ गई है। नड्डा ने कहा कि यूपी में निषाद पार्टी और अपना दल से हमारा समझौता हो गया है और हम 403 सीटों पर मिलकर लड़ेंगे। महत्वपूर्ण यह है कि तीनों दलों बीजेपी, अपना दल और निषाद समाज पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा यानी डील क्या हुई, इस पर तीनों मौन हैं।

बीजेपी की कोर कमेटी की दो दिनों से बैठक हो रही थी। इसके बाद पार्टी ने अपनी चुनाव अभियान समिति की बैठक की। जिसके बारे में कहा गया था कि पार्टी इसमें उत्तराखंड, यूपी और गोवा के प्रत्याशियों की सूची जारी की। लेकिन इसके बजाय नड्डा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहले से ही एनडीए गठबंधन का हिस्सा अपना दल और निषाद समाज पार्टी से चुनावी गठजोड़ पर जोर दिया गया। इसके बाद निषाद पार्टी और अपना दल ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अलग-अलग अपनी बात कहकर एनडीए और बीजेपी की तारीफों के पुल बांधे और कहा कि हम मिलकर यूपी की 403 सीटों पर लड़ेंगे। यूपी में बीजेपी और सहयोगी दलों की फिर से सरकार बनेगी।

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अपना दल (सोनेलाल पटेल ग्रुप) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और निषाद समाज पार्टी के संजय निषाद के बयानों से यह तो साफ हो गया कि दोनों दलों को बीजेपी नेतृत्व ने संतुष्ट कर दिया है। क्योंकि जब बीजेपी से ओबीसी नेता छोड़कर सपा में जा रहे थे तो इनके बयान अलग थे लेकिन अब इनके बयान से साफ लग रहा है कि बीजेपी ने इन्हें ठीक ठाक सीटें लड़ने को दे दी हैं। निषाद पार्टी ने 20 सीटें मांगी थीं लेकिन एक दिन पहले संजय निषाद कह रहे थे कि 15 सीटों पर बात बन जाएगी। इसी तरह अपना दल ने भी करीब 15 सीटें मांगी थीं। 

आज के घटनाक्रम से लग रहा है कि बीजेपी अपना रिस्क थोड़ा कम करके इन दोनों दलों को ज्यादा टिकट देकर सपा की ओबीसी राजनीति को काउंटर करना चाहती है। क्योंकि निषाद समाज पार्टी और अपना दल जाहिर है  कि ओबीसी और दलितों को ज्यादा टिकट देंगे। इससे स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी के जाने से बीजेपी को जो नुकसान हुआ है, उसका मुकाबला इन दलों के ओबीसी और दलित प्रत्याशियों से कराया जाएगा। हालांकि इसके सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं।  

यूपी में सिर्फ ओबीसी फैक्टर ही काम नहीं कर रहा है, बल्कि जनता में तमाम मुद्दों पर योगी सरकार को लेकर बन रही राय भी शामिल है।

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दो दिनों तक चली बीजेपी कोर कमेटी की बैठक से यह भी साबित हुआ कि बीजेपी ने अब यूपी की बागडोर एक तरह से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सौंप दी है। वही सारे फैसले ले रहे हैं या उनमें शामिल होते हैं। मुख्यमंत्री योगी को खासतौर पर राजनीतिक फैसलों में शामिल नहीं किया जा रहा है। उन्हें बस अवगत कराया जाता है। इसे भी एक तरह से ओबीसी नुकसान की भरपाई की तरह ही देखा जा रहा है। 

उधर, सपा में हाल ही में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में तमाम जिलों के ओबीसी नेता सक्रिय हो गए हैं। सूत्रों का कहना है कि तमाम जिलों से स्वामी प्रसाद मौर्य ने टिकटार्थियों की सूची सपा प्रमुख अखिलेश यादव को सौंपी है। इन पर सभी को तो नहीं लेकिन कुछ नामों पर विचार करने का भरोसा स्वामी प्रसाद मौर्य को दिया गया है। सपा ने ओबीसी को लेकर अपना जो एक्शन प्लान बनाया था, वो उसी रास्ते पर बढ़ रही है। 

 

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