+
पैगंबर पर टिप्पणी: कीचड़ में अभी सिर्फ पाँव धँसे हैं

पैगंबर पर टिप्पणी: कीचड़ में अभी सिर्फ पाँव धँसे हैं

पैगंबर साहब पर नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में देश की किरकिरी क्यों हो रही है? क्यों छोटे-छोटे देश भी अब आँखें दिखा रहे हैं?

यह वाकया 1994 का है। सिंगापुर की यात्रा पर गये पीवी नरसिम्हा राव वहाँ के पीएम के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। जिन लोगों की पैदाइश या याददाश्त 2014 के बाद की है, उनके लिए बता देना ज़रूरी है, प्रेस कॉन्फ्रेंस सामान्य परंपरा रही है, जो बताती है कि लोकतंत्र ज़िंदा है।

तो प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी और दुनिया भर के पत्रकार सवाल पूछ रहे थे। अचानक एक आदमी उठा और उसने अपना परिचय दिया- मैं सिंगापुर की पाकिस्तानी एंबेसी का फर्स्ट सेक्रेटरी हूँ और मेरा सवाल कश्मीर पर है।

नरसिम्हा राव ने पूरा सवाल ध्यान से सुना और जवाब दिया- आप जो कुछ कह रहे हैं, वह तथ्यात्मक रूप से ग़लत है लेकिन इससे ज़्यादा बड़ी बात ये है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के अपने तौर-तरीक़े और मर्यादाएँ हैं। सरकार के स्तर पर पाकिस्तान से हमारी बातचीत होती रहती है। मुझे समझ में नहीं आया कि आप इस तरह कहाँ से टपक पड़े?

हॉल में जोरदार ठहाका लगा और सिंगापुर के पीएम ने कहा- नेक्स्ट क्वेश्चन प्लीज एंड रिमेम्बर आई डोंट वांट एनी पाकिस्तानी।

पाकिस्तानी मीडिया ने उस राजनायिक को नेशनल हीरो बनाया लेकिन सड़क छाप हरकत के लिए पूरी दुनिया में पाकिस्तान की थू-थू हुई।

यह सब सुनकर जिन्हें बहुत आनंद आ रहा है, उन्हें यह जानकर और भी आनंद आएगा कि परिश्रम की पराकाष्ठा करके हमने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वो हैसियत हासिल कर ली है, जो पाकिस्तान की हुआ करती थी।

सुब्रमण्यम स्वामी की उटपटांग बयानबाजी के बाद मालदीव ने भारतीय राजदूत को तलब किया था, यह घटना बहुत से लोगों को याद होगी। मालदीव वही देश है, जहाँ हुए तख्ता-पलट को भारत ने छह घंटे के भीतर ख़त्म किया था। अब आप मालदीव जाकर देखिये सड़क से वहाँ की संसद तक हर जगह भारत विरोधी बातें सुनने को मिलेंगी।

नेपाल लगातार आँखें दिखा रहा है। बांग्लादेश यह ज्ञान दे रहा है कि लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का सम्मान किस तरह किया जाता है। 

खाड़ी के देशों के साथ भारत के शुरू से अत्यंत मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। इस देश के लाखों परिवार गल्फ से आनेवाले पैसे पर निर्भर हैं। इन देशों से कभी भारत विरोधी आवाज़ सुनने को नहीं मिली है।

बाबरी मसजिद तोड़े जाने के बाद जब पूरे दक्षिण एशिया में दंगे हो रहे थे, तब खाड़ी देशों ने वहाँ रहने वाले लाखों भारतीयों की जान-माल की हिफाज़त की थी और कहीं से भी एक घटना तक सुनने को नहीं मिली थी। इन्हीं खाड़ी देशों में आज भारत सरकार की थू-थू हो रही है। ईरान, कुवैत और क़तर जैसे देशों ने राजदूत को तलब किया है। कई और जगहों से विरोध प्रदर्शनों की ख़बरे हैं। आखिर ये सब क्यों हो रहा है?

ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत का मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान यह मानता है कि एक के बाद एक करके चुनाव जीतते चले जाना ही असली काम है और इसके अलावा कुछ और करने की ज़रूरत नहीं है। सांप्रादायिक उग्रता के प्रसार से समाज का ध्रुवीकरण होगा तो चुनाव में फायदा होगा लेकिन देश का क्या होगा?

बीजेपी की सरकारें पहले भी आई थीं। अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे-  विदेश नीति और अर्थनीति पर यह देश हमेशा से एकजुट रहा है। वाजपेयी ये क्यों कहते थे? वे जानते थे कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का जो एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है, उसे बनाने में पुरखे राजनेताओं ने अथक श्रम लगाया है।

ज़िम्मेदार सरकारें जानती हैं कि एक सभ्य और लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत की छवि अगर धूमिल होती है तो इसका असर अर्थव्यवस्था और दुनिया के हर कोने में रहने वाले करोड़ों आप्रावासी भारतीयों पर पड़ेगा। लेकिन क्या इन बातों की कोई चिंता है? 

बीजेपी के नये-नवेले पोस्टर ब्वाय तेजस्वी सूर्या ने कुछ साल पहले इस्लामिक देशों की महिलाओं के यौन जीवन से संबंधित एक बेहद अभद्र टिप्पणी की थी। इसे लेकर ज़बरदस्त नाराज़गी देखने को मिली थी।

पैगंबर मुहम्मद के बारे में बीजेपी के प्रवक्ताओं की ताजा बयानबाजी का नतीजा यह है कि भारत के पीएम की तस्वीर को खाड़ी देशों में जूतों का हार पहनाया जा रहा है। यह भी सत्तर साल में पहली बार हुआ है। ठीक है कि बीजेपी ने दोनों प्रवक्ताओं को सजा दी है लेकिन पकड़े जाने पर पपलुओं को पहचानने से इनकार करना तो संघ की पुरानी परंपरा है। क्या बीजेपी और सरकार की नीति में कोई आमूल बदलाव आएगा?

आठ साल में यह बात पूरी तरह और बारंबार साबित हो गई है कि मोदी सरकार गवर्नेंस के नाम पर महाशून्य है। कुछ आता-जाता नहीं है। 

राजनीतिक फायदे के लिए वह किसी भी हद तक जाएगी। कश्मीरी पंडितों से लेकर दुनिया भर में रहने वाले भारतीयों का इस्तेमाल करेगी और नतीजा जो होगा उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। दलदल में अभी सिर्फ पाँव धँसे हैं, निकलने का कोई रास्ता नहीं है और पूरे शरीर का धँसना अवश्यंभावी है।

(राकेश कायस्थ की फ़ेसबुक वाल से)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें