जानिए पेगासस वाले एनएसओ ने कैसे बढ़ाया साइबर-साम्राज्य
पेगासस स्पाइवेयर दुनिया भर में चर्चा में है। इस पर लग रहे जासूसी के आरोपों के बाद इसे मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाला और लोकतंत्र के लिए घातक तक क़रार दिया जा रहा है। ऐसा क्यों है? इजरायली कंपनी एनएसओ पेगासस स्पाइवेयर को क्या इसके लिए तैयार किया है? आख़िर इसकी शुरुआत किस मक़सद से हुई थी और यह अब क्या कर रही है?
आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि एनएसओ को गठित करने वाले तीन संस्थापकों में से दो ने पहले मोबाइल फ़ोन ऑपरेटरों की सहायता के लिए एक सामान्य उपकरण 'कम्युनिटेक' की शुरुआत की थी। इसकी मदद से मोबाइल ऑपरेटर उस उपकरण का नियंत्रण अपने हाथों में ले लेते थे ताकि तकनीकी सहायता मुहैया कर सकें। लेकिन बाद में इन दोनों ने एक तकनीकी विशेषज्ञ के साथ मिलकर ऐसी कंपनी एनएसओ बना दी जो आज दुनिया भर में सुर्खियों में है। इस पर तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं। जानिए इसकी शुरुआत कैसे हुई-
पेगासस प्रोजेक्ट को तैयार करने वाले 'फोरबिडेन स्टोरीज' ने इस एनएसओ ग्रुप का पूरा ब्यौरा दिया है कि आख़िर वह कंपनी कैसे अस्तित्व में आई। उसके अनुसार दो दोस्तों शैलेव हुलियो और ओमरी लवी ने कंपनी की शुरुआत की थी। उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में प्लेसमेंट स्टार्टअप MediaAnd शुरू किया था। 2008 की मंदी से स्टार्टअप पर बुरी मार पड़ी लेकिन इससे पहले ही 2007 में हुलियो और लवी ने एप्पल के iPhone के लॉन्च में एक अवसर देखा था। इसके आने के बाद लोगों ने फ़ोन का वाइस कॉल व मैसेज के अलावा दूसरा काम भी लेना शुरू कर दिया था। तभी शैलेव हुलियो और ओमरी लवी ने मोबाइल ऑपरेटरों को तकनीकी सहयोग मुहैया कराने के लिए 'कम्युनिटेक' को शुरू किया था।
बाद में जैसे-जैसे मोबाइल का इस्तेमाल बढ़ता गया शैलेव हुलियो और ओमरी लवी के लिए भी मौक़े बढ़ते गए। इस बीच मोबाइल में एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सर्विस का चलन आया। एन्क्रिप्शन की वजह से इंटेलिजेंस एजेंसियों को दिक्कतें आने लगीं क्योंकि इसके मैसेज को बिना इन्क्रिप्शन-की के पढ़ना नामुमकीन सा होने लगा। 'फोरबिडेन स्टोरीज' ने लिखा है कि हुलियो और लवी ने इंटेलिजेंस एजेंसियों का यह काम आसान कर दिया।
'फोरबिडेन स्टोरीज' की रिपोर्ट के अनुसार अनजाने में ही हुलियो और लवी ने उनके लिए समस्या का समाधान कर दिया था। उससे एजेंसियाँ फोन को पायरेट कर सकती थीं, एन्क्रिप्शन को बाइपास कर उन्हें उनकी ज़रूरत की सभी जानकारियाँ और बहुत कुछ मिल सकती थीं।
रिपोर्ट के अनुसार इस काम के लिए ज़्यादा इंटेलिजेंस एजेंसियों के संपर्क किए जाने पर दोनों के लिए चुनौतियाँ बढ़ती गईं। हुलियो और लवी साइबर इंटेलिजेंस के बारे में ज़्यादा नहीं जानते थे इसलिए उन्होंने इसमें एक और सहयोगी को शामिल किया। उन्होंने मोसाद के एक पूर्व खुफिया संचालक और सुरक्षा विशेषज्ञ निव कार्मि को जोड़ा और तीनों ने मिलकर 2010 में औपचारिक तौर पर एनएसओ समूह बनाया। तीनों- निव कार्मि, शैलेव हुलियो और ओमरी लवी के पहले नामों से 'एनएसओ' नाम की कंपनी शुरू हुई। निव कार्मि ने तकनीक को संभाला और हुलियो व लावी ने व्यवसाय संभाला।
एनएसओ का मौजूदा स्वरूप इसके बाद ही आता है। 'फोरबिडेन स्टोरीज' की रिपोर्ट के अनुसार एनएसओ ने कथित तौर पर इंटेलिजेंस एजेंसियों और पुलिस के लिए जासूसी के लिए पेगासस तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इस नैरेटिव को खड़ा किया कि सरकारी एजेंसियाँ इसका इस्तेमाल आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी आदि से निपटने के लिए करेंगी। रिपोर्ट के अनुसार पहला कोई ज्ञात देश ग्राहक मेक्सिको बना जिसने मादक पदार्थों की तस्करी से लड़ने के लिए साइबर-जासूसी उपकरणों से लैस किया। फोरबिडेन स्टोरीज ने लिखा है कि 2016 और 2017 के बीच मैक्सिकों की एजेंसियों द्वारा 15,000 से अधिक नंबरों का चयन निशाना बनाने के लिए किया गया था। रिपोर्ट है कि मेक्सिको को यह काफ़ी पसंद आया।
एनएसओ धीरे-धीरे इतना मज़बूत हो गया कि यूरोपीय कंपनियाँ हैकिंग टीम और फिनफिशर को भी पीछे छोड़ दिया। लेकिन उस समय तक पेगासस ई-मेल और एसएमएस में लिंक जैसे अटैक वैक्टर का उपयोग कर रहा था। इसमें उपकरण के यूज़र द्वारा उस लिंक पर क्लिक करने के बाद ही उससे जासूसी की जा सकती थी या उसकी निगरानी की जा सकती थी। लेकिन इसमें तब क्रांतिकारी बदलाव आया जब किसी उपकरण को उपयोगकर्ता के बिना किसी क्लिक के ही उस उपकरण तक हैकर पहुँच सकता था।
अब किसी मोबाइल की जासूसी किए जाने के लिए किसी लिंक पर कोई क्लिक की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। वाट्सऐप वॉयस कॉल के मिस्ड कॉल या आई मैसेज से उपकरण में एक कोड डाल कर जासूसी की जा सकती है।
एनएसओ और पेगासस का मामला पहली बार 2018 में सामने आया। कनाडा की द सिटीजन लैब की 2018 की रिपोर्ट में 45 देशों में संदिग्ध पेगासस के मामले पाए गए। अक्टूबर 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के संबंध में एनएसओ ग्रुप विवादों में रहा था। अब जो ताज़ा रिपोर्ट आई है वह 'फोरबिडेन स्टोरीज' की पड़ताल पर आधारित है और इसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने फ़ोरेंसिक जाँच और तकनीकी सहायता में मदद की है। इस रिपोर्ट को 17 मीडिया संस्थानों ने छापा है जिसमें कहा गया है कि पेगासस की सूची में 50 हज़ार नाम शामिल हैं। इसमें से 300 से ज़्यादा फोन नंबर तो भारतीयों से जुड़े हैं जिन्हें पेगासस से निशाना बनाया गया है।