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सौ साल के सिनेमा में एक भी फिल्म को ऑस्कर नहीं

सौ साल के सिनेमा में एक भी फिल्म को ऑस्कर नहीं

भारत में सिनेमा उद्योग बहुत बड़ा है, लेकिन केवल मुंबई से चलने वाले वॉलिबुड को ही पूरे सिनेमा उद्योग का प्रतिनिधि मान लिया जाता है। जबकि हर भाषा का अपना एक सिनेमा उद्योग है। सोमवार को मिले ऑस्कर का बॉलिवुड से कोई लेना देना नहीं है।

हालिबुड फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा अवॉर्ड है ऑस्कर, जिसे दुनियाभर के फिल्म जगत का भी सबसे बड़ा अवॉर्ड माना जाता है। इस उद्योग से जुडे लोगों की चाहत होती है कि कम से कम एक बार उनके काम को एक बार इस अवॉर्ड से नवाजा जाए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाने वाले इस अवॉर्ड का महत्व ही इतना है कि हर कोई इसे पाना चाहता है।

सोमवार का दिन भारतीय सिनेमा के लिए बड़ी खुशियां लेकर आया जब उसे दो अकादमीअवॉर्ड एक साथ मिले। पहला अवॉर्ड शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को और दूसरा आरआरआर फिल्म के गाने नाटू-नाटू को मिला। उम्मीद है कि भारतीय सिनेमा आगे और भी सफलताएं हासिल करेगा।

भारत में सिनेमा उद्योग बहुत बड़ा है, लेकिन केवल मुंबई से चलने वाले वॉलिबुड को ही पूरे सिनेमा उद्योग का प्रतिनिधि मान लिया जाता है। जबकि हर भाषा का अपना एक सिनेमा उद्योग है।

भारत में सिनेमा उद्योग बहुत बड़ा है, लेकिन केवल मुंबई से चलने वाले वॉलिबुड को ही पूरे सिनेमा उद्योग का प्रतिनिधि मान लिया जाता है। जबकि हर भाषा का अपना एक सिनेमा उद्योग है। सोमवार को मिले ऑस्कर का बॉलिबुड से कोई लेना देना नहीं है।

इस सबके बीच जो सबसे कसक वाली बात है वह यह कि भारत की किसी भी फिल्म को अबतक ऑस्कर नहीं मिला है। जबकि अकादमी अवार्ड में एक्टिंग, निर्देशन और कहानी के अवार्ड को काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी भी फिल्म के निर्माण का यह वह पहलू है जिससे निर्धारित होता है कि फिल्म कैसी है।

इतने बडे़ फिल्म उद्योग से अब तक केवल तीन फिल्में मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे औऱ लगान ही अकादमी अवॉर्ड के नामांकन तक पहुंची हैं। इसमें मदर इंडिया को 60 साल से , दूसरी सलाम बॉम्बे को 40 साल और तीसरी लगान को 22 साल हो गये, जिन्होंने अंतिम पांच में जगह बनाई।  इनमें से मदर इंडिया ही है जो केवल अवॉर्ड के नजदीक तक पहुंच पाई और एक वोट पाकर विनर बनने से रह गई। यह भारतीय सिनेमा उद्योग की कड़वी सच्चाई को बताने के लिए काफ़ी है कि यहां सिनेमा के नाम पर बन क्या रहा है। और जो बन रहा है वह वास्तविक रुप से सिनेमा कहलाने के कितना लायक है।

बॉलिवुड के सो कॉल्ड चमकते सितारे अक्षय कुमार का एक जुमला है कि दर्शक सिनेमा हॉल तक केवल एंटरटेनमेंट के लिए आता है, और हम उसी हिसाब से फिल्में बनाते हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री भारत ने भी इन अवार्डस में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रखी है। वह भी काफी पहले से। भारत की तरफ से पहला ऑस्कर मिला था भानू अथैया को, जिन्होंने ‘गांधी’ फिल्म की कॉस्टयूम डिजाइन किया था।

उसके बाद करीब 25 साल बाद फिर से अकादमी अवॉर्ड में भारत की एंट्री हुई। इस बार की एंट्री भी काफ़ी धमाकेदार रही और दो ऑस्कर एक साथ मिले। इस बार जो ऑस्कर मिला वह था फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गाने ‘जय हो’ के लिए, जिसे मशहूर गीतकार गुलज़ार ने लिखा था और एआर रहमान ने कंपोज किया था। इस गाने के साउंड और सेट डिजाइनर को भी अवार्ड मिला। इस गाने ने भारत को दो ऑस्कर एक साथ दिलाए।

उसके बाद 2023 में भारत को फिर से दो ऑस्कर मिले, पहला अवॉर्ड जो मिला था एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को, दूसरा अवार्ड मिला आरआरआर फिल्म के गाने नाटू-नाटू को। यह पहली बार है जब भारत को फिल्म की दो अलग-अलग विधाओं में कोई अवार्ड दिया गया है। इस सफलता के मायने बड़े हैं।

भारतीय सिनेमा हजारों निर्माता और निर्देशक रहे हैं लेकिन सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक को आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन निर्देशकों में से माना जाता है। इस बात की गवाही वही अकादमी अवार्ड है जो उन्हें लाइफ टाइमअचीवमेंट के तौर पर मिला।  

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