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'मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' फिल्म पर नॉर्वेजियन दूतावास ने जताई आपत्ति 

'मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' फिल्म पर नॉर्वेजियन दूतावास ने जताई आपत्ति 

नॉर्वे के चाइल्ड वेलफेयर ने एक बयान में कहा कि उनका काम "लाभ से प्रेरित नहीं है।" उसने फिल्म में किए गए उस कथित दावे का, "जितने अधिक बच्चे फॉस्टर सिस्टम में डाले जाते हैं, उतना ही अधिक पैसा कमा सकते हैं।" 

रानी मुखर्जी अभिनीत एक फिल्म आई है 'मिसेस चटर्जी वर्सेज नॉर्वे' जो एक अप्रवासी भारतीय जोड़े के साथ घटी सच्ची घटना पर आधारित है। फिल्म की कहानी में एक परिवार अपने बच्चों की कस्टडी पाने के लिए नॉर्वे की सरकार से लड़ता है।

अब इस फिल्म पर नॉर्वे की तरफ से प्रतिक्रिया आई है। भारत में नार्वे के राजदूत ने एक बयान जारी कर इस पर आपत्ति जताई। दूतावास की तरफ से जारी बयान में फिल्म को 'काल्पनिक कृति' बताया गया और कहा कि इसमें तथ्यात्मक गलतियां हैं। 

नॉर्वे में रह रहे भारतीय जोड़े से 2011 में उनके दो बच्चों को संस्कृति में अंतर के बताते हुए उन्हें नॉर्वेजियन फॉस्टर सिस्टम ने अपनी देखभाल में ले लिया था।

नॉर्वेजियन दूतावास ने अपने बयान में कहा, "बताए गए सांस्कृतिक अंतर के आधार पर बच्चों को उनके परिवारों से कभी दूर नहीं किया जाएगा। हाथ से खाना  या फिर बच्चों का अपने माता-पिता के साथ एक ही बिस्तर पर सोना, बच्चों के लिए हानिकारक नहीं माना जाता है। सांस्कृतिक अंतर के बावजूद भी नॉर्वे में यह असामान्य नहीं है।" दूतावास ने जोर दिया कि, "कुछ सामान्य तथ्यों को ठीक करना चाहिए।" 

दूतावास ने अपने बयान में कहा कि, "बच्चों को फॉस्टर सिस्टम में रखने का प्रमुख कारण उनकी उपेक्षा, उनके साथ किसी भी प्रकार की हिंसा या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार का शिकार होना मुख्य कारण होता है।"

नार्वेजियन राजदूत हैंस जैकब फ्रायडेनलंड ने जोर देकर कहा कि नॉर्वे एक लोकतांत्रिक, बहुसांस्कृतिक समाज है।

उन्होंने ट्विटर पर अपना बयान साझा करते हुए कहा कि, "नॉर्वे में हम विभिन्न फैमिली सिस्टम और सांस्कृतिक प्रथाओं को महत्व देते हैं और उनका सम्मान करते हैं, भले ही वे हमारी आदतों से अलग ही क्यों न हों। बच्चों के पालन-पोषण में शारीरिक दंड के अलावा किसी भी प्रकार की हिंसा बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है"

नॉर्वे के चाइल्ड वेलफेयर ने एक बयान में कहा कि उनका काम "लाभ से प्रेरित नहीं है।" उसने फिल्म में किए गए उस कथित दावे का, "जितने अधिक बच्चे फॉस्टर सिस्टम में डाले जाते हैं, उतना ही अधिक पैसा कमा सकते हैं।" चाउल्ड वेलफेयर की तरफ से कहा गया कि, "वैकल्पिक देखभाल, जिम्मेदारी का मामला है, और यह पैसा बनाने वाली संस्था नहीं है" 

नॉर्वे के राजदूत ने कहा कि बच्चों को फॉस्टर सिस्टम में तभी रखा जाता है, जब वे किसी प्रकार की उपेक्षा का सामना करते हैं या "हिंसा या अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। 

फिल्म में दिखाया गया है कि सागरिका चटर्जी (जिन पर फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे बनी है) के बच्चों को उनके पास से ले जाते हुए नॉर्वे सरकार ने उनपर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने बच्चों को अपने हाथों से खाना खिलाया था। उन पर पर अपने बच्चों की पिटाई करने, उन्हें खेलने के लिए पर्याप्त जगह नहीं देने और उन्हें "अनुपयुक्त" कपड़े और खिलौने देने का भी आरोप लगाया गया था।

दोनों देशों के बीच एक कूटनीतिक विवाद के बाद नॉर्वे के अधिकारियों ने बच्चों की कस्टडी उनके चाचा को सौंप दी थी जिससे उन्हें भारत वापस लाने में मदद मिली थी। इस दौरान सागरिका की  शादी टूट गई और उन्हें अपने बच्चों की कस्टड़ी के कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।

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