आज से एक साल पहले 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस साल 31 अगस्त से तीन दिन पहले आज यानी 28 अगस्त को यह ध्वस्त कर दिया गया। 32 मंजिल और 29 मंजिल के दोनों टावरों को गिराने के लिए 3700 किलो विस्फोटक लगाए गए। इन विस्फोटकों को टावरों में 2600 से ज़्यादा छेद करके भरा गया था। क़रीब 9 सेकंड में टावर ध्वस्त हो गए।
लेकिन क्या आपको पता है कि इन टावरों को ध्वस्त क्यों किया गया? आख़िर करोड़ों रुपये की लागत से बनाए गए गगनचुंबी इमारत को ध्वस्त करने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश क्यों दिया?
दरअसल, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ट्विन टावरों को ध्वस्त करने का फ़ैसला निर्माण से संबंधित क़ानूनों के उल्लंघन पर दिया था। ये टावर्स एपेक्स और सेयेन नाम से थे। इनमें 915 फ़्लैट थे और 21 दुकानें थीं। इनमें से 633 फ़्लैट बुक भी हो चुके थे।
अप्रैल, 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इन दोनों टावरों को गिराने का और फ़्लैट खरीदने वालों को उनका पैसा लौटाने का आदेश दिया था। इस तरह से शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को ही बरकरार रखा। ये दोनों टावर्स एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने उन टावरों के निर्माण को अवैध बताया। उसने कहा कि ऐसा नोएडा अथॉरिटी और बिल्डर्स के बीच बने नापाक गठबंधन की वजह से हुआ। पिछले साल अदालत ने कहा था, 'बहुत तेज़ी से अवैध निर्माण होता जा रहा है। निर्माण के दौरान सुरक्षा मानकों का, टावरों के बीच कम से कम तय दूरी, फ़ायर सेफ़्टी के नियमों, गार्डन एरिया का भी उल्लंघन होता है।' हालाँकि सुपरटेक बार-बार दलील देती रही कि उसने कोई भी ग़ैर-क़ानूनी काम नहीं किया है।
अदालत ने नोएडा अथॉरिटी से कहा था कि आपकी आंख और नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा है, यह ताक़त का दुरुपयोग है और नोएडा अथॉरिटी इस बात का भी जवाब दे कि उसने इस ग्रीन एरिया में इतने बड़े निर्माण कार्यों की अनुमति कैसे दे दी।
बता दें कि जब 'सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट' हाउसिंग सोसाइटी को मूल रूप से मंजूरी दी गई थी, तो भवन योजना में 14 टावर और नौ मंजिलें दिखाई गई थीं। बाद में योजना को संशोधित किया गया और बिल्डर को प्रत्येक टावर में 40 मंजिल बनाने की अनुमति दी गई। जिस क्षेत्र में टावरों का निर्माण किया गया था, उसे मूल योजना के अनुसार एक बगीचा बनाया जाना था।
इसके बाद सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट सोसायटी के निवासियों ने 2012 में निर्माण को अवैध बताते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि सुपरटेक समूह ने अधिक फ्लैट बेचने और अपने लाभ मार्जिन को बढ़ाने के लिए मानदंडों का उल्लंघन किया। इलाहाबाद कोर्ट ने टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। बाद में इस मामला को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया।
पिछले अगस्त में कोर्ट ने टावरों को गिराने के लिए तीन महीने का समय दिया था, लेकिन तकनीकी दिक्कतों के चलते इसमें एक साल का समय लग गया।