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जानिए, 9 साल में बने ट्विन टावर के विध्वंस के लिए कैसी थी तैयारी

जानिए, 9 साल में बने ट्विन टावर के विध्वंस के लिए कैसी थी तैयारी

वर्षों से नोएडा में जो गगनचुंबी ट्विन टावर दूर से ही दिख जाते थे, वे अब नहीं दिख पाएँगे। जानिए किन वजहों से और कैसे इसे ध्वस्त किया गया।

नोएडा के सुपरटेक ट्विन टावर को आज दोपहर ढाई बजे ध्वस्त कर दिया गया। 9 सेकंड में 32 मंजिल व 29 मंजिल के दोनों टावर मलबे में बदल गए। इसके लिए करीब 3700 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। इन टावरों को बनाने में क़रीब नौ साल लगे थे।

इस विध्वंस से पहले किसी भी प्रतिकूल हालात से बचने के लिए कई नियामक और रखरखाव कार्य किए गए थे। इन टावरों के ढहाए जाने से एक दिन पहले यानी शनिवार को ही हाउसिंग कॉम्प्लेक्स और आसपास के भवनों के निवासियों को प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कह दिया गया था।

नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे के पास सेक्टर 93 ए में स्थित इन दोनों टावरों में 40-40 मंजिलें प्रस्तावित थीं। इनमें 32 और 29 मंजिलें बन चुकी थीं। फ़्लैट बनाने का काम करने वाली सुपरटेक ने इन दोनों टावरों में क़रीब 900 फ़्लैट बनाए थे। लेकिन इन फ्लैटों को लोगों को सौंपे जाने से पहले ही दोनों टावर क़ानूनी पचड़े में फँस गए। और इसी क़ानूनी उलझनों के कारण इन्हें विध्वंस करने का आदेश दिया गया है।

विध्वंस से पहले यह निर्देश जारी

  • ट्विन टावरों से सटी 6 सोसायटियों के निवासियों को तोड़ने की प्रक्रिया के दौरान छतों पर जाने की मनाही थी।
  • क्लीयरेंस ऑपरेशन के बाद 15 से 20 मिनट तक विस्फोट के कारण धूल हवा में रहेगी।
  • 10 एंटी-स्मॉग गन लगाए गए और उन्हें रेजिंग प्रक्रिया के दौरान छोड़ा गया।
  • दमकल की गाड़ियां से धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव।
  • किसी भी आपात स्थिति में एंबुलेंस को स्टैंडबाय पर रखा गया।
  • 26 अगस्त से 31 अगस्त तक शहर के आसमान में ड्रोन के इस्तेमाल पर रोक।
  • विस्फोट वाले क्षेत्र के ऊपर एक समुद्री मील के दायरे में विध्वंस के समय उड़ानों की अनुमति नहीं थी। 

बता दें कि दशकों से चली आ रही कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोनों इमारतों को गिराने का आदेश दिया है। इसने डेवलपर्स को दोनों संरचनाओं की निकटता और क़ानून के उल्लंघन के कारण इमारत को ध्वस्त करने को कहा है।

क़रीब नौ साल में बने इन दोनों टावरों को ध्वस्त करने का आदेश तो हो गया है, लेकिन क्या यह इतना आसान है?

यह सवाल इसलिए कि इन टावरों के आसपास कई कॉम्पलेक्स हैं, 60 फीट वाली मुख्य सड़क है, पार्क है और पेड़ पौधे भी हैं। इन टावरों के सबसे क़रीब सिर्फ़ 9 मीटर की दूरी पर ही दूसरा कॉम्पलेक्स है। इतनी भीड़भाड़ वाली जगह पर क्या बिना किसी नुक़सान के इसको ढहाना संभव है? आप यह जानकर चौंक जाएँगे कि यह बिल्कुल संभव हो गया।

आम तौर पर ऐसी स्थिति में गगनचुंबी इमारतों को ध्वस्त करने का तरीका इंप्लोजन यानी अंतर्मुखी विस्फोट है। घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में इमारतों के विध्वंस के लिए सबसे आम तरीक़ा इमारत में कई प्वाइंट पर विस्फोटक लगाने का है। इसमें दीवारों में छेद करके छोटे-छोटे विस्फोटक लगाए जाते हैं। सावधानी से किए गए एक साथ विस्फोट के बाद इमारत का मलबा इमारत के अंदरुनी हिस्से में ही गिरता है। कुछ मिनटों या सेकंडों में पूरी इमारत परिसर में ही ध्वस्त हो जाती है।

भारत में इससे पहले भी ऐसी ही एक गगनचुंबी इमारत पिछले साल ढहाई गई थी। केरल के मराडु का यह मामला था। इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने ही निर्देश दिया था। वह टावर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी कर बनाया गया था। उस टावर में 18 मंजिलें थीं। इसको ढहाने के लिए 960 छेद किए गए थे और उसमें 15 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ था। जब विस्फोट किया गया था तो बिल्डिंग के अहाते में ही पूरा हिस्सा ध्वस्त हो गया था। आसपास की इमारतें, आंगनबाड़ी केंद्र, पेड़-पौधे और दूसरी किसी भी चीज को नुक़सान नहीं पहुँचा था। 

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