जुबैर और प्रतीक सिन्हा को नहीं मिला नोबेल पुरस्कार
साल 2022 के नोबेल पुरस्कारों का एलान कर दिया गया है। भारत की ओर से ऑल्ट न्यूज़ के संपादक प्रतीक सिन्हा और सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर का नाम भी नोबेल पुरस्कार जीतने वाले दावेदारों में शामिल था। लेकिन इन्हें यह पुरस्कार नहीं मिल सका। यह पुरस्कार मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की को दिया गया है। वह उन राजनीतिक कैदियों में से एक हैं जो बेलारूस की जेल में बंद हैं।
बियालियात्स्की को शुक्रवार को रूसी मानवाधिकार संगठन मैमोरियल और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज के साथ इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
24 दिन जेल में रहे थे जुबैर
मोहम्मद जुबैर इस साल जुलाई में 24 दिनों तक जेल में रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ 'आपत्तिजनक ट्वीट' के लिए दर्ज छह एफआईआर में उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया था। जुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, सीतापुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और हाथरस में कुल मिलाकर 6 एफआईआर दर्ज की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच के लिए बनी एसआईटी को भंग कर दिया था। बता दें कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने जुबैर के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच के लिए एसआईटी गठित की थी। दिल्ली पुलिस ने अदालत से कहा था कि ज़ुबैर की कंपनी को पाकिस्तान, सीरिया और अन्य खाड़ी देशों से चंदा मिलता है। पुलिस ने उनके खिलाफ आपराधिक साजिश रचने और सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए थे।
बीते साल यह पुरस्कार फिलीपींस की महिला पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दिमित्री मोरातोव को दिया गया था।
साल 2020 के नोबेल के लिए अमेरिकी कवि लुइस ग्लिक को चुना गया था और तब साहित्य के नोबेल पुरस्कार में नौ साल बाद कविता की वापसी हुई थी। उससे पहले साल 2011 में स्वीडन के कवि तोमास ट्रांसत्रोमर को उस समय नोबेल दिया गया था, जब वे लकवे से पीड़ित थे। साल 2019 में यह पुरस्कार भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को मिला था। उनके साथ उनकी पत्नी एस्थर डफ़्लो और माइकेल क्रेमर को भी इस पुरस्कार के लिए चुना गया था।
कैसे मिलता है नोबेल पुरस्कार?
नोबेल पुरस्कार हासिल करने वालों की दौड़ में कुल 343 दावेदार थे। इनमें से 251 लोग थे जबकि 92 संगठन शामिल थे। नॉर्वेजियन नोबेल समिति नोबेल पुरस्कार के लिए दावेदारों में से विजेता का चयन करती है। पुरस्कार देने वाली वेबसाइट के मुताबिक, नोबेल समिति नोबेल शांति पुरस्कार विजेता का चयन बहुमत के आधार पर करती है। समिति के द्वारा लिया गया फैसला अंतिम होता है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।
BREAKING NEWS:
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 7, 2022
The Norwegian Nobel Committee has decided to award the 2022 #NobelPeacePrize to human rights advocate Ales Bialiatski from Belarus, the Russian human rights organisation Memorial and the Ukrainian human rights organisation Center for Civil Liberties. #NobelPrize pic.twitter.com/9YBdkJpDLU
कौन हैं एलेस बियालियात्स्की?
एलेस बियालियात्स्की उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने बेलारूस में 1980 के दशक में लोकतंत्र की स्थापना का आंदोलन शुरू किया था और इसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
एलेस बियालियात्स्की का जन्म 25 सितंबर, 1962 को सोवियत संघ के वर्तसिलास में हुआ था। बीबीसी के मुताबिक, बेलारूस में जब अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने प्रदर्शनकारियों की आवाज को दबाना शुरू किया तो एलेस बियालियात्स्की ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने बेलारूस में मानवाधिकार केंद्र की भी स्थापना की।
एलेस बियालियात्स्की लेखकों और पत्रकारों के साथ भी जुड़े रहे। बियालियात्स्की और उनके संगठन को इससे पहले भी कई बार पुरस्कार मिल चुके हैं।
रूसी मानवाधिकार संगठन मैमोरियल की स्थापना 1987 में की गई थी और नोबेल पुरस्कार विजेता रहे आंद्रेई सखारोव ने शुरुआती सालों में इसका नेतृत्व किया था। बीबीसी के मुताबिक, मैमोरियल ने रूस और सोवियत संघ के विघटन के बाद बने देशों में हुए मानवाधिकारों के हनन के मामलों की पड़ताल की थी। इसकी ओर से 1991 में मानवाधिकारों के मामलों के लिए एक अलग संस्थान की भी स्थापना की गई थी। संगठन की ओर से राजनीतिक कैदियों और उनके परिवारों को कानूनी और अन्य तरह की सहायता दी जाती है।
मैमोरियल को साल 2021 में रूस के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बंद कर दिया गया था और इससे पहले इसे विदेशी एजेंट घोषित कर दिया था।
सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज
सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज ने कीव में मानवाधिकारों और लोकतंत्र को आगे बढ़ाने का काम किया। सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज ने यूक्रेन की सिविल सोसाइटी को मजबूत करने के लिए स्टैंड लिया और सरकार पर दबाव डाला कि वह यूक्रेन को पूरी तरह लोकतांत्रिक देश बनाए।
इस सेंटर की स्थापना साल 2007 में यूक्रेन में मानवाधिकारों का समर्थन करने के लिए की गई थी। इस संगठन ने कीव स्कूल ऑफ ह्यूमन राइट्स का भी गठन किया था।