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यूपी: शामली की महापंचायत के लिए नहीं दी इजाजत, डर गई योगी सरकार?

यूपी: शामली की महापंचायत के लिए नहीं दी इजाजत, डर गई योगी सरकार?

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही महापंचायतों में उमड़ रही जबरदस्त भीड़ से शायद योगी सरकार डर गई है। 

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो रही महापंचायतों में उमड़ रही जबरदस्त भीड़ से शायद योगी सरकार डर गई है। शामली के जिला प्रशासन की ओर से 5 फ़रवरी को होने वाली किसान महापंचायत की अनुमति नहीं दी गई है। इसके अलावा 3 अप्रैल तक किसी भी बड़ी सभा को करने पर भी जिला प्रशासन ने रोक लगा दी है। 

जिला प्रशासन की इस कार्रवाई से नाराज़ भारतीय किसान यूनियन, राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और महापंचायत के आयोजकों ने कहा है कि वे कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ इस महापंचायत को हर हाल में आयोजित करेंगे। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महापंचायतों का दौर राकेश टिकैत के भावुक होने के बाद शुरू हुआ। टिकैत जिस रात को भावुक हुए थे, उस रात से ही पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश उबलने लगा था। कई गांवों से ट्रैक्टर-ट्रालियों में लोग ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे थे। उसके अगले दिन मुज़फ्फरनगर में पहली किसान महापंचायत हुई थी। मुज़फ्फरनगर के बाद मथुरा, बाग़पत और बिजनौर में महापंचायत हो चुकी हैं। इन महापंचायतों में उमड़ी भीड़ से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीजेपी नेता और योगी सरकार परेशान दिखाई देती है। 

किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो- 

आरएलडी ने लगाया जोर

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आरएलडी पूरा जोर लगा रही है। तमाम महापंचायतों में पूर्व सांसद और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी शिरकत कर रहे हैं। टिकैत के भावुक होने के बाद जो लोग सबसे पहले उनसे मिलने ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुंचे, उनमें जयंत चौधरी प्रमुख थे। जयंत देश के पूर्व प्रधानमंत्री और जाटों के सबसे बड़े नेता रहे चौधरी चरण सिंह के पोते हैं। 

जयंत के पिता चौधरी अजित सिंह का भी राजनीतिक आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही रहा है और यहां जाट समुदाय इनके साथ खड़ा रहा है। हालांकि इस इलाके में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बाद दोनों को हार का सामना करना पड़ा लेकिन किसान आंदोलन ने जाटों को आरएलडी के पक्ष में एकजुट किया है। 

आरएलडी ने कहा है कि वह भारतीय किसान यूनियन के साथ मिलकर कृषि क़ानूनों के विरोध में उत्तर प्रदेश में 5 फ़रवरी से लेकर 18 फ़रवरी तक लगातार बैठकें करेगी। आरएलडी जानती है कि अपनी राजनीतिक ताक़त को वापस पाने का यह एक सुनहरा मौक़ा है।

एकजुट हो रहा जाट समुदाय

इन महापंचायतों की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय इकट्ठा हो रहा है। किसानों के सबसे बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत यहीं से थे। चूंकि वह जाट समुदाय से आते थे, इसलिए जाटों की बड़ी आबादी उनके हुक्के की गुड़गुड़ाहट पर इकट्ठा हो जाती थी। उनकी विरासत को संभाल रहे उनके बेटे राकेश और नरेश टिकैत किसान आंदोलन में खासे सक्रिय हैं। 

इनमें भी राकेश टिकैत के पक्ष में जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उबाल आया है, उससे साफ पता चलता है कि उनके भावुक होने का असर जाटों के बीच हुआ है। 

जींद, राजस्थान में भी महापंचायत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा के जींद और राजस्थान के दौसा और मेहंदीपुर बालाजी में हो चुकी किसान महापंचायतों में बड़ी संख्या में किसान जुटे हैं और यह निश्चित रूप से मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाला है। 

इन सभी जगहों पर हुई महापंचायतों में किसानों ने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आर-पार की लड़ाई लड़ने का आह्वान किया है। किसानों ने मोदी सरकार को चेतावनी दी है कि वह इन क़ानूनों को तुरंत वापस ले वरना किसान दिल्ली के तमाम बॉर्डर्स की ओर कूच करेंगे। उत्तराखंड के तराई वाले इलाक़ों में भी किसान आंदोलन बहुत मजबूत हो चुका है। 

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