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जम्मू-कश्मीर: 4-जी इंटरनेट सेवा कब बहाल होगी? 

जम्मू-कश्मीर: 4-जी इंटरनेट सेवा कब बहाल होगी? 

जम्मू-कश्मीर बीजेपी के महासचिव अशोक कौल ने कहा है कि जब तक कश्मीर में उग्रवाद जारी रहेगा, 4-जी इंटरनेट सेवा बहाल नहीं होगी। तो क्या घाटी में 4-जी सेवा लंबे समय तक नहीं शुरू होगी? बता रहे हैं पत्रकार हारून रेशी। 

क्या जम्मू-कश्मीर में 4-जी इंटरनेट सेवा बहाल होगी? यह सवाल पिछले एक साल से पहेली बना हुआ है। 11 अगस्त को, भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 15 अगस्त के बाद, घाटी और जम्मू के एक- एक ज़िले में 4-जी इंटरनेट सेवा को ‘परीक्षण के रूप में’ बहाल किया जाएगा। लेकिन 15 अगस्त को, जम्मू-कश्मीर में बीजेपी महासचिव अशोक कौल ने बुरी ख़बर सुनाई  कि जब तक कश्मीर में उग्रवाद जारी रहेगा, 4-जी इंटरनेट सेवा बहाल नहीं होगी।

5 अगस्त, 2019

पिछले साल 5 अगस्त को, नई दिल्ली ने एकतरफा रूप से जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जा को समाप्त करने और राज्य का दर्जा छीनने के साथ ही इंटरनेट सेवा, संचार के सभी साधन यहाँ तक कि लैंडलाइन फ़ोन तक काट दिए थे। कई हफ्तों के बाद फ़ोन सेवा बहाल कर दी गई, लेकिन लगभग छह महीने तक इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद रही। जनवरी में, इसे आंशिक रूप से 2-जी गति पर बहाल किया गया था।

पिछले आठ महीनों से, जम्मू- कश्मीर के 70 लाख नागरिकों के पास केवल 2-जी स्पीड इंटरनेट सेवा है। इस प्रकार, यह दुनिया का एकमात्र क्षेत्र बन गया है, जहाँ नागरिकों को सबसे लंबे समय से इंटरनेट से वंचित रखा गया है।

अर्थव्यवस्था पर बुरा असर

इंटरनेट सेवा की अनुपलब्धता का कश्मीर के सभी क्षेत्रों में बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष शेख़ आशिक ने सत्य हिंदी से बात करते हुए कहा, ‘इंटरनेट छह महीने से बंद और 2-जी की गति पर फिर से शुरू होने से न केवल हमारे वाणिज्यिक, चिकित्सा, शैक्षिक और पत्रकारिता क्षेत्रों पर असर पड़ा है, बल्कि हमारे हस्तशिल्प उद्योगों को भी इससे भारी नुकसान हुआ है।’ उन्होंने कहा,

इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण बड़ी संख्या में लोगों, विशेषकर युवाओं को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हस्तशिल्प उद्योग ने निर्यात कार्य बंद कर दिया है और इस ने लाखों कारीगरों को प्रभावित किया है।’


शेख़ आशिक, अध्यक्ष, कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज

आईटी में नौकरी गई

इंटरनेट सेवा बंद होने  से सबसे अधिक नुक़सान सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र को उठाना पड़ा है जो जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल 5 अगस्त को इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद होने के परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनियों के साथ काम करने वाले 1,200 लोगों ने अपनी नौकरी खो दी।

श्रीनगर टेक्नोलॉजी  कंसल्टेंट्स (एसटीसी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, शेख परवेज़ ने कहा, ‘कश्मीर में आईटी सेक्टर को धारा 370 को निरस्त करने के बाद पिछले छह महीनों में इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद होने  के कारण पूरी तरह से पंगु बना दिया गया है और कंपनियों को भारी नुक]सान हुआ। अब 2 -जी स्पीड इंटरनेट सेवा के कारण काम ठीक नहीं चल रहा है।’ 

पर्यटन बदहाल

एक अन्य उदाहरण श्रीनगर के अशफाक बट हैं। अशफाक एक प्रसिद्ध ट्रैवल एजेंसी, वैली हॉलीडे के निदेशक हैं। लेकिन उनका व्यापार पूरे देश में फैला हुआ है। अशफाक की कंपनी के कई घरेलू और विदेशी, विशेष रूप से चीनी, टूर और ट्रैवल एजेंसियों के साथ व्यापार समझौते हैं।

उनका  मुख्यालय दिल्ली में है। वे कहते हैं ‘दुर्भाग्य से, मैं पिछले साल 5 अगस्त को श्रीनगर में था। 4 और  5 अगस्त  की रात को सभी संचार काट दिए गए थे। कर्फ्यू लगा दिया गया था। उसके बाद कई हफ्तों तक मैंने खुद को असहाय पाया। मैं अपने ग्राहकों के साथ संवाद करने में असमर्थ था। हम अपने घरों तक ही सीमित थे। यह स्थिति कई दिनों तक जारी रही और इसके कारण मेरे व्यवसाय को एक बड़ा झटका लगा।’ 

अशफाक कहते हैं कि इंटरनेट उनके व्यवसाय के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि ऑक्सीजन एक जीव  के लिए। उन्होंने कहा,

‘पर्यटकों को आकर्षित करने और उन्हें आमंत्रित करने, उनके संपर्क में रहने, उनके लिए हवाई जहाज का टिकट बुक करने, ठहरने की व्यवस्था करने और यात्रा के लिए वाहनों की बुकिंग आदि के लिए इंटरनेट बेहद ज़रूरी है।’


अशफाक बट, व्यवसायी

उन्होंने कहा कि पिछले एक साल से कश्मीर में इंटरनेट सेवा पूरी तरह से या आंशिक रूप से बंद होने से उनके व्यापार को जितना नुक़सान पहुँचा उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है। क्योंकि अब कोरोना वायरस ने रही सही कसर पूरी कर दी।

स्टार्ट अप्स कैसे स्टार्ट हों?

सरकार ने कश्मीर में बढ़ती बेरोज़गारी को रोकने के लिए कुछ साल पहले कई व्यापार और औद्योगिक योजनाओं की शुरुआत की थी। इन योजनाओं के तहत, शिक्षित युवा लड़कों और लड़कियों ने नई और कुछ अनूठी वाणिज्यिक और औद्योगिक परियोजनाएं शुरू कीं।

इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण, इन स्टार्ट-अप्स को गंभीर नुक़सान पहुंचा है। यह सब उस समय हुआ जब बड़ी संख्या में कश्मीरी युवा पहले से ही बेरोज़गार थे।

बेरोज़गारी

2016 की आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू- कश्मीर में 18 से 29 वर्ष (24.6%) के बीच बड़ी संख्या में युवा बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि सरकार ने बेरोज़गारी को कम करने के बजाय अब इंटरनेट सेवा को निलंबित करके इसे बढ़ा दिया है।

प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष जीएन वार ने सत्य हिंदी से बात करते हुए कहा, ‘इंटरनेट वर्तमान में शिक्षा का सबसे बड़ा स्रोत है और हमारे बच्चे पिछले एक साल से इससे वंचित हैं। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि परिणामस्वरूप उन्हें कितना नुकसान हुआ होगा।

ऑनलाइन क्लास नहीं

वर्तमान में, कोविड-19 के कारण, दुनिया भर में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया है। लेकिन दुर्भाग्य से, 2 जी इंटरनेट सेवा के कारण, हमारे अधिकांश बच्चे भी ऑनलाइन शिक्षा से लाभ उठाने में असमर्थ हैं। देश के अन्य राज्यों में शिक्षकों को वेबिनार के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा में प्रशिक्षित किया जा रहा है। क्या हम ऐसा कर सकते हैं?’ 

इसी तरह, उचित इंटरनेट सेवा की अनुपलब्धता के कारण, चिकित्सा क्षेत्र में गंभीर समस्याएं हैं। कोविड-19 के प्रसार के साथ, इंटरनेट दुनिया भर के रोगियों और डॉक्टरों के बीच संचार का एक प्रभावी साधन रहा है।

चिकित्सा

कश्मीर शायद एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ इंटरनेट की कम गति के कारण, मरीज वीडियो कॉल पर डॉक्टरों से संवाद करने में सक्षम नहीं हैं और डॉक्टर खुद अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। कुछ महीने पहले, श्रीनगर में एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान महाराजा हरि सिंह अस्पताल में तैनात प्रमुख फिजिशियन डॉ सलीम इकबाल (प्रोफेसर ऑफ़ सर्जरी, सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर ) ने खुले तौर पर एक सामाजिक नेटवर्किंग साइट पर अपनी निराशा व्यक्त की। 

उन्होंने लिखा है कि वह 2-जी स्पीड की उपलब्ध इंटरनेट स्पीड पर 24 एमबी की एक महत्वपूर्ण फ़ाइल भी डाउनलोड नहीं कर पाते हैं जबकि फ़ाइल में कोरोना वायरस के लिए दिशानिर्देश थे, जो गहन देखभाल इकाई प्रशासकों को भेजे गए हैं। 

डॉ सलीम ने कहा कि वायरस से संक्रमित देशों में डॉक्टरों ने मरीजों के लक्षण देखे हैं और अब वे इंटरनेट के माध्यम से दुनिया भर के अन्य चिकित्सकों के साथ अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, इंटरनेट पर प्रतिबंधों के कारण, हमें यह जानकारी आसानी से नहीं मिल पा रही है। 

इंटरनेट मौलिक अधिकार

क़ानूनी रूप से इंटरनेट सेवा को नागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया गया है। चार साल पहले, 2016 में, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने इंटरनेट सेवा को नागरिकों का ‘मौलिक अधिकार’ घोषित किया था।

अदालत ने स्पष्ट किया था कि इंटरनेट का उपयोग ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार से संबंधित है, और कोई भी सरकार इस अधिकार से नागरिकों को वंचित नहीं कर सकती है।

इस साल 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में दोहराया कि इंटरनेट का उपयोग करना एक नागरिक का  मौलिक अधिकार है और सरकार अनिश्चित काल तक इंटरनेट पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती है। 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

इतना ही नहीं, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में दिशानिर्देशों को निर्धारित करते हुए आगे कहा कि देश के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, इंटरनेट के माध्यम से लोगों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति वास्तव में उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी है। 

यह केवल भारत के नागरिकों के अधिकारों का मामला नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में इंटरनेट सेवा की व्याख्या नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में की गई है। 2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों में  इंटरनेट सेवाओं को जोड़ा।

हैरानी की बात है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध सरकार द्वारा 135 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के तहत लगाया गया है।

विशेषज्ञों की राय

ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा 1885 में एकीकृत भारत में नागरिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर टेलीग्राफ संदेश भेजने से रोकने के लिए क़ानून बनाया गया था। अब इसी क़ानून का सहारा लेकर स्वतंत्र भारत में जम्मू और कश्मीर के लोगों को इंटरनेट तक पहुँच से वंचित रखा जा रहा है। हालाँकि, कानूनी विशेषज्ञों ने इस पर भिन्न विचार प्रकट किए हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि टेलीग्राफ़ अधिनियम के तहत आधुनिक तकनीक के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।  

11 अगस्त को, जब भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार जम्मू-कश्मीर के एक- एक ज़िले में परीक्षण के रूप में 4-जी इंटरनेट सेवा बहाल करेगी, उन्होंने यह भी कहा, ‘खतरों और राष्ट्रीय सुरक्षा’ के मद्देनज़र, पूरे जम्मू और कश्मीर में 4 जी इंटरनेट सेवा को पूरी तरह से बहाल नहीं किया जा सकता है। आलोचकों का कहना है कि सरकार ने वास्तव में स्वीकार किया है कि घाटी में शांति बहाल नहीं हुई है। 

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल 5 अगस्त को, भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ‘ए’ को निरस्त करते हुए और जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा छीनते हुए यह दावा किया गया था कि इस फैसले से न केवल जम्मू-कश्मीर में  शांति आएगी, बल्कि विकास भी होगा। एक नया युग शुरू होगा।

आज, एक साल बाद, सवाल पूछा जाना चाहिए की शांति और विकास कहां है? इस से भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसे समय में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से संक्रमित है, क्या 70 लाख  लोगों को इंटरनेट सेवा से वंचित करना एक स्वीकार्य निर्णय है?  

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