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गुजरात में अपराधियों को इतनी छूट क्यों?

गुजरात में अपराधियों को इतनी छूट क्यों?

क्या यातायात नियमों के उल्लंघन की छूट दी जा सकती है? गुजरात के गृह राज्यमंत्री हर्ष संघवी ने ऐलान किया था कि एक हफ़्ते के लिए यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान नहीं काटे जाएंगे।

राजनीति को अपराध और अपराधियों से मुक्त कराने का वादा कर प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात पिछले कुछ समय से हर तरह के अपराधियों का स्वर्ग बना हुआ है। एक तरफ़ हत्या और बलात्कार के सजायाफ्ता अपराधी राज्य सरकार की मेहरबानी से सजा पूरी होने से पहले ही जेल से छूट रहे हैं और उनके समर्थक उनका हार-फूल से उनका स्वागत कर रहे हैं तो कुछ ऐसे ही सजायाफ्ता अपराधियों को अदालत ने जमानत पर छोड़ रखा है। सत्ताधारी पार्टी के नेताओं, प्रशासनिक अफ़सरों और ठेकेदारों की आपराधिक साठगांठ का एक बड़ा मामला मोरबी का पुल ढहने के रूप में सामने आ ही चुका है, जिसमें क़रीब 135 लोग मारे गए हैं। इसके अलावा राज्य सरकार बाकायदा आदेश जारी कर लोगों को कुछ अपराध करने की खुली छूट दे रही है।

गुजरात में आगामी कुछ ही दिनों में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक दल तरह-तरह के लोक-लुभावन वादे कर रहे हैं। कोई पुरानी पेंशन योजना फिर से शुरू करने का वादा कर रहा है तो कोई किसानों को मुआवजा देने और उनके कर्ज माफ़ करने की बात कर रहा है। बिजली और पानी फ्री देने के वादे भी किए जा रहे हैं। इसी सिलसिले में राज्य की भाजपा सरकार ने पिछले दिनों दिवाली के मौक़े पर एक हफ्ते के लिए राज्य के नागरिकों को यातायात संबंधी अपराध करने की अपराध करने की छूट दी।

प्रदेश के गृह राज्यमंत्री हर्ष संघवी ने 20 अक्टूबर को ऐलान किया था कि 21 से 27 अक्टूबर के दौरान यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान नहीं काटे जाएंगे। जब चालान नहीं काटे जाएंगे तो जाहिर है कि मुक़दमा भी नहीं होगा और लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन और गाड़ी जब्त करने और जेल भेजने का तो सवाल ही नहीं उठता है। सवाल है कि कोई भी ज़िम्मेदार सरकार नागरिकों को इस तरह से अपराध करने की छूट कैसे दे सकती है? लेकिन गुजरात में एक हफ्ते तक ऐसा ही हुआ।

ग़ौरतलब है कि यातायात के नियमों का उल्लंघन सिर्फ़ मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ही अपराध नहीं है, जिसमें सरकार छूट दे सकती है, बल्कि यह भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के तहत भी अपराध है। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों- जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 9 अक्टूबर 2019 को अपने एक आदेश में कहा भी है कि यातायात नियमों के उल्लंघन का मामला आईपीसी के तहत भी चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश गुवाहाटी हाई कोर्ट के एक फ़ैसले को पलटते हुए दिया था।

गुवाहाटी हाई कोर्ट ने एक मामले में अपने फ़ैसले में कहा था कि यातायात नियमों के उल्लंघन के मामले में आईपीसी की धारा नहीं लगाई जा सकती। दोषी को मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ही सजा दी जा सकती है। इस फ़ैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यातायात नियमों के उल्लंघन का स्तर अलग-अलग होता है औेर अपराध की गंभीरता को देखते हुए दोषी व्यक्ति के ख़िलाफ़ आईपीसी और मोटर व्हीकल एकट दोनों के तहत मुक़दमा चल सकता है। वैसे भी आईपीसी की धारा 279 के तहत ग़ैर ज़िम्मेदार तरीक़े से या ख़तरनाक तरीक़े से गाड़ी चलाना अपराध है, जिसमें छह महीने तक की सजा का प्रावधान है।

गुजरात सरकार ने नागरिकों को एक हफ्ते तक अपराध करने की छूट दी। कोई भी ज़िम्मेदार सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। छोटे अपराध के लिए इस तरह छूट देने के चलन के आधार पर आगे चल कर सरकार बड़े अपराध करने की भी छूट देने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

किसी दिन यह घोषणा भी हो सकती है कि अमुक दिन चोरी करने पर किसी को नहीं पकड़ा जाएगा या अमुक दिन किसी को पीट देने पर और अमुक दिन हत्या या बलात्कार करने पर कोई सजा नहीं होगी!

हॉलीवुड की एक फ़िल्म है 'द पर्ज’। इस शृंखला की पांच फ़िल्में बनी हैं। पहली फ़िल्म 2013 में आई थी। फ़िल्म में एक शहर की कहानी है, जहाँ नागरिकों को साल में एक रात ऐसी मिलती है, जब वे अपने विरोधी या दुश्मन के साथ जैसा चाहे वैसा बरताव कर सकते हैं। वे उसकी हत्या भी कर सकते हैं। यह छूट एक रात के लिए मिलती है, लेकिन लोग पूरे साल भर इसकी तैयारी करते हैं। वे दुश्मन की पहचान करते हैं, हथियार इकट्ठा करते हैं और हमले की योजना बनाते हैं। यातायात के नियमों का उल्लंघन कर अपराध करने की छूट देना 'द पर्ज’ का पहला चरण कहा जा सकता है।

इससे पहले गुजरात सरकार साल 2002 में हुए सांप्रदायिक नरसंहार के सजायाफ्ता अपराधियों को राहत देने का सिलसिला भी शुरू कर चुकी है। कुछ ही दिनों पहले उसने उस दौर के बहुचर्चित बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 अपराधियों को उनकी सजा पूरी होने से पहले ही माफी देकर जेल से रिहा कर दिया था। यही नहीं, जेल से बाहर आए इन अपराधियों का तिलक लगाकर और फूल माला पहना कर स्वागत किया था और उनकी आरती उतारी गई थी। इससे भी पहले 2002 के सबसे लोमहर्षक नरोदा पाटिया कांड में आजन्म कारावास की सजा प्राप्त मुख्य अपराधी बाबू बजरंगी मार्च 2019 से जमानत पर जेल से बाहर है। उसे स्वास्थ्यगत कारणों से सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली हुई है। इसी मामले में चार अन्य सजायाफ्ता लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही जमानत दे रखी है।

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