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भाजपा से मुकाबले के लिए नीतीश की अनोखी पहल, रथ को किया रवाना 

भाजपा से मुकाबले के लिए नीतीश की अनोखी पहल, रथ को किया रवाना 

मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में अपने आवास से भीम संसद जागृति रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया है। 

बिहार में जाति गणना के आंकड़े जारी होने के बाद नीतीश सरकार अब इस मुद्दों को लोकसभा चुनाव में भी बड़ मुद्दा बनाने के मूड में है। इसी कड़ी में मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में अपने आवास से भीम संसद जागृति रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया है। 

बिहार सरकार के मुताबिक यह रथ पूरे बिहार में घूम-घूम कर लोगों को महात्मा गांधी और डॉ भीमराव अंबेडकर के आदर्शों, विचारों और उनके द्वारा किए गए कार्यों से लोगों को अवगत करायेगा।  

वहीं राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस रथ के माध्यम से बिहार सरकार जाति गणना और उसके बाद आए प्राप्त आंकड़ों को लेकर लोगों को जागरुक करना चाहती है। इसके लिए जरुरी है कि भाजपा के एजेंडे की काट के तौर पर महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर के विचारों को बढ़ाया जाए।

खासतौर से युवा पीढ़ी को महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर के विचारों से जोड़ने की कोशिश नीतीश कुमार कई वर्षों से कर रहे हैं। इसके पीछे उनका मानना है कि ऐसा कर वे अपनी विरोधी भाजपा के उग्र हिंदुत्व का मुकाबला कर सकते हैं। इसी लिए इस रथ की थीम 'संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ देश बचाओ' है।  

माना यह भी जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए विपक्षी इंडिया गठबंधन जाति और आरक्षण आरक्षण के मुद्दे को हवा दे रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार की तरह ही दूसरे राज्यों में भी जातीय गणना कराने की घोषणा कर दी है। 

विपक्ष आगामी लोकसभा चुनाव को देश भर में जाति गणना और ओबीसी आरक्षण के मुद्दें पर लड़ना चाहता है। इसके बिहार में माहौल बनना शुरु हो चुका है। भीम संसद जागृति रथ इसी मकसद को पूरा करने में मदद कर सकता है। 

पटना में 5 नवंबर को भीम संसद का होगा आयोजन

भीम संसद का आयोजन 5 नवंबर को पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान में आयोजित किया जाएगा। बताया जा रहा है कि इस रथ के जरिये लोगों को इस भीम संसद में शिरकत करने की अपील की जायेगी।  इस संसद में काफी संख्य में विभिन्न विपक्षी दलों के नेता शामिल हो सकते हैं। इस भीम संसद के लिए करीब एक लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। 

इस कार्यक्रम में जाति गणना के बाद उठने वाले सवालों जैसे आरक्षण का दायरा बढ़ाये जाने आदि को लेकर राजनैतिक घोषणाएं की जा सकती हैं। इसके जरिए नीतीश अपनी शक्ति का भी प्रदर्शन करेंगे। भले ही कार्यक्रम पटना में हो लेकिन नीतीश कुमार की कोशिश होगी कि इसका संदेश देश भर में जाए।

इस भीम संसद जागृति रथ के जरिये नीतीश कुमार की नजर राज्य के दलित वोट बैंक को भी अपने करीब लाने की है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस रथ की रवानगी के समय भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी, एससी-एसटी कल्याण मंत्री रत्नेश सदा,मद्य निषेध मंत्री मंत्री सुनील कुमार समेत नीतीश सरकार के प्रमुख दलित चेहरे मौजूद थे। 

अब भाजपा के खिलाफ वैचारिक लड़ाई तेज होगी

जाति गणना करवाने के बाद नीतीश इन दिनों ओबीसी, मुस्लिम और दलित वोट बैंक में अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश कुमार की कोशिश है कि ओबीसी और दलितों को भाजपा के पाले में जाने से रोका जाए। 

नीतीश जानते हैं कि इसे रोकना है तो विचारधारा के स्तर पर भी लड़ाई लड़नी होगी। यही कारण है कि नीतीश कुमार को महात्मा गांधी और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचार भाजपा से जंग में हथियार के तौर पर दिख रहे हैं। 

बिहार में नीतीश कुमार आम जनता के बीच जाति, आरक्षण,संविधान आदि के सवालों को ले जाना चाहते हैं। वह बौद्धिक जगत के बीच चलने वाली डिबेट को आम जनता के बीच ले जाना चाहते हैं। अगर उनकी रणनीति सफल हुई तो वैचारिक स्तर पर भाजपा को बड़ा नुकसान होगा। 

कैंसर का इलाज सिरदर्द की दवा खाने से नहीं होगा

जाति गणना के विरोधियों पर 9 अक्टूबर को हमला बोलते हुए लालू यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि कैंसर का इलाज सिरदर्द की दवा खाने से नहीं होगा। इसके विरोधियों की उन्होंने जमकर आलोचना की है। 

उन्होंने लिखा है कि जातिगत जनगणना के विरुद्ध जो भी लोग है वो इंसानियत, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बराबरी तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्व के ख़िलाफ है। 

ऐसे लोगों में रत्तीभर भी न्यायिक चरित्र नहीं होता है। किसी भी प्रकार की असमानता एवं गैरबराबरी के ऐसे समर्थक अन्यायी प्रवृत्ति के होते है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल और केवल जन्मजात जातीय श्रेष्ठता के आधार एवं दंभ पर दूसरों का हक खाकर अपनी कथित श्रेष्ठता को बरकरार रखना चाहते है। 

एक अन्य ट्विट में उन्होंने लिखा है कि क्या कोई भी संवेदशील  व्यक्ति यह मान सकता है सारे मनुष्य बराबर नहीं हैं? साथ बैठने-उठने, खाने-पीने, पढ़ने-लिखने, काम करने से किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? यह व्यवस्था प्राकृतिक नहीं है। जाति यथार्थ है तभी तो वैवाहिक विज्ञापनों में आप सबसे अधिक शिक्षित और संभ्रांत वर्गों के ही इस्तेहार देखते हैं। 

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