नीतीश पॉलिटिक्सः आनंद मोहन रिहा होंगे, बीजेपी अब क्या करेगी
बिहार की राजनीति में फिर उथल-पुथल मचने वाली है। हत्या अपराधी और विवादास्पद पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है। एक तरफ नीतीश के इस राजनीतिक कदम पर सवाल उठ रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी को समझ नहीं आ रहा है कि वो उच्च जाति के आनंद मोहन की रिहाई का विरोध करे या चुप रहे।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बीते 10 अप्रैल को बिहार सरकार ने बिहार पुलिस जेल नियमावली, 2012 में संशोधन करके उम्रकैद की सजा के प्रावधान से कुछ शब्दों को हटा दिया था। इसके 10 दिन बाद राज्य सरकार के कानून विभाग ने कल सोमवार को आनंद मोहन तथा 26 अन्य लोगों की रिहाई का रास्ता साफ कर दिया। रिहा किये जा रहे लोगों में वे लोग हैं जो हत्या जैसे अन्य जघन्य अपराधों के लिए 14 साल की उम्रकैद की सजा पूरी कर चुके हैं।
राज्य के कानून विभाग का यह आदेश राज्य सजा माफी परिषद द्वारा राज्य की विभिन्न जेलों में बंद सभी 27 कैदियों की रिहाई को मंजूरी देने के संबंध में था। इससे आनंद मोहन की रिहाई का भी रास्ता साफ हो गया। आनंद मोहन फिलहाल अपने परिवार में हो रही एक शादी शामिल होने के लिए परोल पर बाहर हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि 69 साल के आनंद मोहन को 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में 2007 में दोषी ठहराया गया था। इसके अलावा बाहुबली छोटन शुक्ला की हत्या के खिलाफ वैशाली में एक विरोध मार्च का नेतृत्व कर रही भीड़ को उकसाने के लिए भी दोषी ठहराया गया था। विरोध मार्च के लिए कृष्णैया रास्ता खुलवा रहे थे, उसी समय भीड़ ने उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। लेकिन मुख्य आरोपी आनंद मोहन को बनाया गया था।
बिहार पुलिस जेल मैनुअल, 2012 में संशोधन से पहले, 14 साल की सजा पूरी करने वाले दोषियों को उनके द्वारा किए गए अपराधों की गंभीर प्रकृति के कारण आजीवन कारावास की सजा पूरी करने वाले के रूप में नहीं माना जाता था। इन दोषियों को आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए कम से कम 20 साल जेल में बिताने पड़ते थे।
बिहार के कानून विभाग के सचिव रमेश चंद्र मालवीय ने 24 अप्रैल को अपने संक्षिप्त आदेश में कहा, 'राज्य सरकार ने 20 अप्रैल को राज्य सजा माफी परिषद की बैठक की सिफारिश पर 14 साल की सजा पूरी कर चुके लोगों को रिहा करने का फैसला किया है।'
हालांकि, कानून विभाग के आदेश में किसी अन्य विशिष्ट कारणों के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है। रिहा किए जा रहे 27 दोषियों में से कई को स्थानीय पुलिस के साथ अपनी नियमित उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कहा गया है, लेकिन आनंद मोहन के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई है।
इस साल 10 अप्रैल को राज्य के गृह विभाग ने बिहार पुलिस जेल नियमावली नियम संख्या 481 (1) (ए) में संशोधन करते हुए सिर्फ पांच शब्दों को हटा दिया था। "अ सिविल सर्वेंट ऑन ड्यूटी", इन शब्दों के हटाए जाने से आनंद मोहन और अन्य की रिहाई का रास्ता आसान कर दिया।
नियम 481 (आई) (ए) कहता है: "प्रत्येक दोषी कैदी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और धारा 433 ए सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत आता है, छूट सहित 20 साल के कारावास से गुजरने के बाद ही समय से पहले रिहाई के लिए विचार करने के लिए पात्र होगा।
गृह विभाग के एक अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 75 वर्ष से अधिक आयु के कम से कम आधा दर्जन लोगों को इससे फायदा होगा। इनमें से एक की उम्र 93 साल है। उन्हें रिहा करने का विचार ज्यादातर कैदियों की खराब स्वास्थ्य के कारण तथा युवाओं को नए सिरे जीवन शुरू करने के लिए दूसरा मौका देना भी मकसद है।