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बीजेपी ने बनाया नया संसदीय बोर्ड, गडकरी, शिवराज सिंह चौहान बाहर

बीजेपी ने बनाया नया संसदीय बोर्ड, गडकरी, शिवराज सिंह चौहान बाहर

संघ के भरोसेमंद और बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले मंत्रियों में अव्वल आने वाले गडकरी को आखिर संसदीय बोर्ड में जगह क्यों नहीं दी गई?  

बीजेपी ने बुधवार को नए संसदीय बोर्ड का एलान कर दिया है। बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। इसके साथ ही नई चुनाव समिति का भी एलान किया गया है। चुनाव समिति में भी गडकरी और चौहान को जगह नहीं दी गई है। 

संसदीय बोर्ड में कुल 11 सदस्य हैं जिनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, बीजेपी सांसद के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष का नाम है। 

लेकिन हैरानी की बात यही है कि नितिन गडकरी को पार्टी ने संसदीय बोर्ड में जगह क्यों नहीं दी है। 

केंद्रीय चुनाव समिति में जगत प्रकाश नड्डा, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के. लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया, भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर, बीएल संतोष और वनथी श्रीनिवास को जगह दी गई है।

 - Satya Hindi

मुखर रहे हैं गडकरी

मोदी सरकार में नितिन गडकरी सबसे भरोसेमंद और काम करने वाले मंत्रियों में शुमार किए जाते हैं। लेकिन यही गडकरी समय-समय पर अपनी सरकार को आईना दिखाने से भी नहीं चूकते हैं। 

गडकरी ने कुछ दिन पहले कहा था कि देश की राजनीति इस कदर खराब हो गई है कि कभी-कभी उनका मन करता है कि वह राजनीति से संन्यास ले लें। गडकरी ने कहा था कि मौजूदा हालातों की राजनीति में और महात्मा गांधी के समय की राजनीति में बहुत अंतर आ गया है। 

गडकरी ने कहा था कि जिस समय देश आजाद हुआ था उस समय की राजनीति में देश, विकास और समाज के लिए बातें होती थी लेकिन अगर हम आज की राजनीति के स्तर को देखें तो चिंता होती है कि हम कहां पहुंच गए हैं। आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता में बने रहने के लिए ही हो रही है। 

मोदी पर निशाना?

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले गडकरी ने कथित तौर पर कहा था कि नेतृत्व को हार की ज़िम्मेदारी भी स्वीकार करनी चाहिए। तब उनके बयान का यही अर्थ निकाला गया था कि उन्होंने 2018 में कुछ राज्यों में बीजेपी की हार के लिए इशारों-इशारों में नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को कटघरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन इस पर बवाल बढ़ने के बाद गडकरी ने सफ़ाई दी थी और कहा था कि उनकी कही बातों का बिलकुल ग़लत अर्थ निकाला गया। 

गडकरी ने तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ की थी। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भी तारीफ की थी। 

अगस्त, 2018 में गडकरी ने यह कह कर राजनीतिक भूचाल ला दिया था कि नौकरियों के मौके कम हो रहे हैं। 

जनवरी, 2019 में गडकरी ने कहा था, 'सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। इसलिए सपने वही दिखाओ, जो पूरे हो सकें। मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं। मैं जो बोलता हूं, वह 100% डंके की चोट पर पूरा होता है।'

निश्चित रूप से गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर करने का फैसले की जमकर चर्चा सियासी गलियारों में आने वाले दिनों में होगी। संघ के भरोसेमंद और बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले मंत्रियों में अव्वल आने वाले गडकरी को आखिर संसदीय बोर्ड में जगह क्यों नहीं दी गई, इस बारे में तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं।  

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