गडकरी ने फिर की नेहरू की तारीफ़, बीजेपी नेतृत्व को नसीहत?
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय लोकतंत्र के आदर्श पुरूष थे। गडकरी ने कहा कि सत्तारूढ़ दल और विपक्ष में बैठे लोगों को आत्मपरीक्षण करना चाहिए और गरिमा के साथ काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेहरू हमेशा वाजपेयी जी का सम्मान करते थे और कहते थे कि विपक्ष ज़रूरी है।
हिंदी न्यूज़ चैनल ‘न्यूज़ नेशन’ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में गडकरी ने कहा कि वाजपेयी और नेहरू, दोनों कहते थे कि मैं अपनी लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन करूंगा। उन्होंने यह भी कहा कि एक सफल लोकतांत्रिक देश में मजबूत विपक्ष ज़रूरी है।
गडकरी ने ये बात संसद के हालिया मानसून सत्र में हुए शोर-शराबे और हंगामे को लेकर कही। मानसून सत्र में किसान आंदोलन, पेगासस जासूसी मामले को लेकर ख़ासा शोर हुआ था।
निशाने पर रहे नेहरू
गडकरी का नेहरू को भारतीय लोकतंत्र का आदर्श पुरूष बताना थोड़ा इसलिए अख़रता है क्योंकि वह जिस पार्टी से आते हैं, उसके कई लोग बीते सात सालों से लगातार नेहरू को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। सोशल मीडिया ऐसी तमाम फर्जी ख़बरों से भरा हुआ है, जिनमें नेहरू के ख़िलाफ़ उल-जुलूल बातें लिखी हुई हैं। मोदी सरकार के कई नेताओं द्वारा देश की हर मुसीबत का ठीकरा नेहरू के सिर पर फोड़ा जाता रहा है। गडकरी पहले भी नेहरू की तारीफ़ कर चुके हैं। ऐसे में सवाल यह है कि गडकरी ने नेहरू की फिर से तारीफ़ क्यों की।
सुर्खियों में रहे थे गडकरी
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले गडकरी अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहे थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, 'सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। इसलिए सपने वही दिखाओ, जो पूरे हो सकें। मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं। मैं जो बोलता हूं, वह 100% डंके की चोट पर पूरा होता है।'
तब माना गया था कि उन्होंने यह हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर किया है क्योंकि विपक्षी दलों ने हर साल दो करोड़ रोज़गार, विदेशों से काला धन लाने, सस्ते पेट्रोल-डीजल सहित कई वादों को लेकर सरकार को घेरा हुआ था।
अक्टूबर, 2018 में 'कलर्स मराठी' के एक टॉक शो में गडकरी ने कहा था, “चुनाव से पहले पार्टी को जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी, लिहाज़ा, हमने लंबे-चौड़े वादे कर दिए, अब हम सत्ता में आ गए तो लोग पूछते हैं उन वादों का क्या हुआ, हम बस हंस कर आगे बढ़ जाते हैं।”
गडकरी के इस बयान पर भी ख़ूब हंगामा हुआ था। राहुल गांधी समेत तमाम विपक्ष ने गडकरी के बयान को लेकर सरकार को घेरा था। गडकरी के इन बयानों के बाद पूछा जाने लगा था कि वह मोदी सरकार पर हमले क्यों कर रहे हैं, उनकी मंशा क्या है।
'नेतृत्व नाकामियों की ज़िम्मेदारी ले'
इसके बाद दिसंबर, 2018 में बीजेपी तीन राज्यों में चुनाव हार गई थी। ये राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ थे। नतीजे आने के कुछ ही दिन बाद गडकरी ने एक और विस्फोटक बयान दे दिया था। गडकरी ने कहा था, 'नेतृत्व को हार और नाकामियों की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिए।'
तब सवाल उठा था कि गडकरी के लगातार इतने बयानों के बावजूद कड़े अनुशासन की बात करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या बीजेपी ने गडकरी पर लगाम लगाने की कोई कोशिश नहीं की। इसके राजनीतिक अर्थ निकाले गए थे कि क्या संघ के इशारे पर गडकरी ने इस तरह के बयान दिए हैं।
संघ के क़रीबी हैं गडकरी
गडकरी संघ के बेहद क़रीबी माने जाते हैं। वह संघ की कृपा से ही 2009 में पार्टी अध्यक्ष बने थे। फिर वह एकमात्र मंत्री हैं जिनके काम की तारीफ़ उनके विरोधी भी करते हैं। उनकी अगुवाई में सड़कों का काम काफ़ी बेहतर हुआ है।
ऐसे में इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश हो रही है कि क्या गडकरी ने नेहरू की तारीफ़ वाला यह बयान अचानक ही दिया या फिर इसके पीछे कोई वजह है।
गडकरी की उपेक्षा हुई?
महाराष्ट्र में नवंबर, 2019 में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तो गडकरी के नज़दीकी माने जाने वाले तीन मंत्रियों को टिकट नहीं दिया गया और 9 विधायकों के भी टिकट काटे गए थे। गडकरी को चुनाव प्रचार से भी दूर रखने की चर्चा हुई थी। कहा गया था कि मोदी-शाह की जोड़ी ने गडकरी को चुनौती देने के लिए देवेंद्र फडणवीस को आगे बढ़ाया था।