‘भारत में लोकतंत्र ज़्यादा ही है’ बयान से क्यों पलटे अमिताभ कांत?
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के एक ताज़ा बयान पर ज़बरदस्त विवाद हुआ है। रिपोर्टिंग की गई कि उन्होंने बयान दिया है- 'भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है'। इस बयान की तीखी आलोचना की ही जा रही थी कि अमिताभ कांत ने ही एक और बयान देकर इस विवाद को और तूल दे दिया। उन्होंने कह दिया कि उन्होंने वह कहा ही नहीं था और उन्होंने आर्थिक मामलों को लेकर बयान दिया था। यानी उनका कहना साफ़ था कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। लेकिन शायद अमिताभ कांत यह भूल गए कि उन्होंने जो कहा था वह वीडियो में रिकॉर्डेड था। इसीलिए फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइटों ने उनके सामने पूरे तथ्य सामने रख दिए।
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब स्वराज्य मैगज़ीन ने ऑनलाइन एक कार्यक्रम किया था। इसमें अमिताभ कांत भी शामिल थे। कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद तक भी सबकुछ सामान्य था। लेकिन विवाद तब हुआ जब ट्विटर यूज़रों ने हिंदुस्तान टाइम्स के उस ट्वीट को रीट्वीट करना शुरू किया जिसमें अमिताभ कांत के हवाले से कहा गया था- 'भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है'। यह बात लोगों को इसलिए चूभ गई कि मोदी सरकार की यह कहकर आलोचना की जाती रही है कि हाल के वर्षों में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाएँ काफ़ी कमज़ोर हुई हैं।
इसी संदर्भ में लोगों ने अमिताभ कांत पर निशाने साधे। यह मुद्दा ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा। ये आलोचनाएँ अमिताभ कांत को इतनी नागवार गुजरीं कि उन्होंने ट्विटर पर सफ़ाई जारी की। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'मैंने जो कहा है वह यह बिल्कुल नहीं है। मैं एमईआईएस स्कीम और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर बोल रहा था।'
This is definitely not what I said. I was speaking about MEIS scheme & resources being spread thin & need for creating global champions in manufacturing sector. https://t.co/6eugmtoinB
— Amitabh Kant (@amitabhk87) December 8, 2020
स्वराज्य मैगज़ीन ने भी इस पर सफ़ाई जारी की। इसने ट्वीट किया, ' अमिताभ कांत से बातचीत पीएलआई और विनिर्माण पर था और राजनीतिक प्रणालियों पर नहीं। ...कुछ शरारती तत्वों ने इसे संदर्भ से पूरी तरह से विकृत और उद्धृत करने का प्रयास किया है।'
Swarajya's interaction with @amitabhk87 was on PLI & manufacturing and not on political systems. His response was in the context of spreading resources too thin & not creating global champions. Some mischievous elements have attempted to distort & quote it totally out of context.
— Swarajya (@SwarajyaMag) December 8, 2020
इस पर भी लोगों ने प्रतिक्रिया दी। जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, 'नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत आलोचना के बाद अपने बयान से पलट गए हैं। इसके बाद गोदी मीडिया में भी स्टोरी डिलीट कर दी गई लेकिन वीडियो डिलीट करना भूल गए।'
CEO of Niti Aayog, Amitabh Kant says: We have too much democracy! Hard reforms like mining & farm reforms can't be pushed through with this. Later while facing flak, he denied having said this! The Godi media withdrew that statement of his, but they forgot to delete this video! pic.twitter.com/JA5EVasErg
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 8, 2020
अमिताभ कांत वाले उस ट्वीट और ख़बर को भी कई जगहों से हटा लिया गया। फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा कि हिंदुस्तान टाइम्स का ट्वीट और लेख पीटीआई की रिपोर्ट के आधार पर था। हिंदुस्तान टाइम्स ने ट्वीट और लेख को डिलीट कर दिया। लेख के लिंक पर अब लिखा आ रहा है, 'न्यूज एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया से छपी यह स्टोरी वापस ले ली गई है।' जबकि ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार, पीटीआई की स्टोरी फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस, इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस जैसी वेबसाइटों पर उपलब्ध है।
ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार, उस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग सुनने पर पता चलता है कि अमिताभ कांत ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार कहा कि 'भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है'। रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार तब कहा जब वह कह रहे थे, 'भारत में हम लोकतांत्रिक कुछ ज़्यादा ही हैं। भारत में पहली बार किसी सरकार ने आकार और पैमाने के मामले में बड़ा विचार किया है और कहा है कि हम वैश्विक चैंपियन बनाना चाहते हैं। किसी में यह कहने की राजनीतिक इच्छाशक्ति और साहस नहीं था कि हम उन पाँच कंपनियों का समर्थन करना चाहते हैं जो वैश्विक चैंपियन बनना चाहती हैं। हर कोई कहता था कि मैं भारत में सभी का समर्थन करना चाहता हूँ, मैं सभी से वोट प्राप्त करना चाहता हूँ।'
इसके बाद वह एक बार फिर कहते हैं, 'भारतीय संदर्भ में कठिन सुधार बहुत मुश्किल हैं। भारत में हम लोकतांत्रिक कुछ ज़्यादा ही हैं।'
दोनों बार जब अमिताभ कांत ज़िक्र करते हैं तो वह इस संदर्भ में बात कर रहे होते हैं कि वैश्विक चैंपियन बनाने में पहले 'काफ़ी ज़्यादा लोकतांत्रिक होना' बाधा थी।