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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की फ़ैक्ट फाइन्डिंग टीम जाएगी हैदराबाद

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की फ़ैक्ट फाइन्डिंग टीम जाएगी हैदराबाद

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हैदराबाद में बलात्कार-हत्या के 4 अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत का स्वत: संज्ञान लिया है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हैदराबाद में बलात्कार-हत्या के 4 अभियुक्तों की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत का स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने अपने महानिदेशक (जाँच) को आदेश दिया है कि वह एसएसपी की अगुआई में तथ्यों का पता लगाने वाली टीम (फैक्ट फाइन्डिंग टीम) का गठन करें और उस टीम को घटनास्थल पर भेजें। यह टीम जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपे। 

आयोग ने कहा कि उसका मानना है कि इस मामले की सावधानीपूर्वक जाँच होनी चाहिए। आयोग ने देश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों और उनके ख़िलाफ़ यौन हिंसा पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने को कहा है।

आयोग ने कहा, इस घटना से साफ़ है कि पुलिस वाले पूरी तरह सजग नहीं थे और और इस वजह से ही यह वारदात हुई। यह भी कहा गया कि मारे गए लोग पुलिस कस्टडी में थे, वे दोषी थे या नहीं, इस पर किसी अदालत ने अब तक फ़ैसला नहीं दिया था। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने यह भी कहा कि यह कथित मुठभेड़ चिंता की बात है। आयोग ने कहा कि हड़बड़ी की स्थिति में पुलिस को क्या और कैसे करना चाहिए, इसका कोई स्टैंडर्ड प्रोसीजर ऑफ़ ऑपरेशन नहीं है। आयोग ने कहा कि क़ानून लागू करने वाली एजेन्सियों को हर हाल में मानवाधिकारों का पालन करना चाहिए। 

हैदराबाद में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में बलात्कार और हत्या के चार अभियुक्तों की मौत के बाद इससे जुड़े सवाल भी उठ रहे हैं। पहला सवाल तो यही है कि यह मुठभेड़ आखिर हुई कैसे पुलिस की अपनी कहानी है, अपना तर्क है, जिसमें कई छेद हैं, जिन पर यक़ीन करना वाकई मुश्किल है।

इन अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 375 (बलात्कार) और 372 (अपहरण) के आरोप लगाए गए थे। इन मामलों की सुनवाई के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया गया था। 

पुलिस की बातों से ही कई सवाल खड़े होते हैं, और उनकी कार्यशैली पर सवाल उठते हैं। रात के अंधेरे में मैका-ए-वारदात पर अभियुक्तों को ले जाना और वारदात के दृश्य की कल्पना करना ही शक पैदा करता है। रात के अंधेरे में उस जगह को पहचानने में दिक्क़त होती और पूरी वारदात को दुहराने जैसा काम करने में दिक्क़त होती।  

पुलिस ने अभियुक्तों के इशारों से कैसे समझ लिया कि वे उन पर हमला करने वाले हैंअभियुक्त पुलिस कस्टडी में थे। अभियुक्तों के पास हथियार नहीं थे तो पुलिस को उनसे क्या ख़तरा था निहत्थों से पुलिस को क्या ख़तरा था कि उन्होंने आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाईंज़ाहिर है, पुलिस के पास फ़िलहाल इन सवालों के जवाब नहीं हैं। 

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