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जानिए, किस धर्म में हैं औसत रूप से ज़्यादा सेक्सुअल पार्टनर

जानिए, किस धर्म में हैं औसत रूप से ज़्यादा सेक्सुअल पार्टनर

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस ने सेक्सुअल पार्टनर पर जो आँकड़ा जारी किया है उससे धार्मिक आधार पर निशाना बनाने वालों को झटका लग सकता है। जानिए, किस धर्म में लोगों के औसत रूप से कितने सेक्सुअल पार्टनर हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस ने कम कंडोम का उपयोग, एचआईवी, एड्स के जोखिम जैसे स्वास्थ्य मुद्दों को लेकर सेक्सुअल पार्टनर पर सर्वे किया है। इस सर्वे में कई चौंकाने वाले आँकड़े आए हैं। कई जगहों पर शहरों से ज़्यादा गांवों में सेक्सुअल पार्टनर हैं तो कई राज्यों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के सेक्सुअल पार्टनर ज़्यादा हैं। इसी में धर्म के आधार पर जो आँकड़े सामने आए हैं उससे कई तरह की ग़लतफहमियाँ दूर होती हैं।

एनएफ़एचएस के सर्वे में कहा गया है कि हिंदू पुरुषों के जीवनकाल में सबसे अधिक (2.2) सेक्सुअल पार्टनर थे। उसके बाद सिख और ईसाई में। सबसे कम जैन धर्म में। तो सवाल है कि मुसलिमों में सेक्सुअल पार्टनर को लेकर कैसी स्थिति है जिन पर अक्सर बहु-विवाह को लेकर निशाना साधा जाता है?

एनएचएफ़एस के आँकड़ों के अनुसार पूरी ज़िंदगी में हिंदू महिलाओं के सेक्सुअल पार्टनर 1.8 हैं जबकि पुरुषों के 2.2 सेक्सुअल पार्टनर हैं। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, सिख महिलाओं के 1.7, पुरुषों के 1.9; ईसाई महिलाओं के 1.4, पुरुषों के 1.9; मुसलिम महिलाओं के 1.4, पुरुषों के 1.7, बौद्ध महिलाओं के 1.0, पुरुषों के 1.7 और जैन महिलाओं के 1.4 और पुरुषों के 1.1 सेक्सुअल पार्टनर रहे। 

हिंदुओं में भी ओबीसी जाति, अनुसूचित जाति व जनजाति का अलग-अलग आँकड़ा सामने आया है। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जनजाति में महिलाओं के 1.9 और पुरुषों के 2.4 सेक्सुअल पार्टनर हैं, जबकि ओबीसी महिलाओं के 1.8 व पुरुषों के 2.2 और अनुसूचित जाति महिलाओं के 1.8 और पुरुषों के 2.1 हैं। 

 - Satya Hindi

सोर्स: एनएफ़एचएस

ये आँकड़े एनएफएचएस के माध्यम से 2019-21 में जुटाए गए। दो लाख से ज़्यादा महिलाओं और पुरुषों की प्रतिक्रिया के आधार पर इस आँकड़े को तैयार किया गया है।

भले ही गांवों में लोगों को और ख़ासकर महिलाओं को रूढ़िवादी माना जाता है, लेकिन सेक्सुअल पार्टनर यानी यौन साथी के मामले में कई राज्यों में ग्रामीण क्षेत्र शहरों से कहीं आगे हैं।

पूरे देश की बात की जाए तो काफी ज़्यादा रूढ़िवादी माने जाने वाले राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो स्थिति चौंकाने वाली है।

एनएफ़एचएस के आँकड़े में कहा गया है कि शहरी महिलाओं के सेक्सुअल पार्टनर (1.5) की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के अपने जीवनकाल में औसतन 1.8 से अधिक सेक्सुअल पार्टनर थे। इसका मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में औसत रूप से महिलाओं के दो पुरुष पार्टनर थे। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के सेक्सुअल पार्टनर भी क़रीब इतने ही थे। 

एनएफ़एचएस के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली में महिलाएँ जहाँ अपने जीवनकाल में 1.1 और गोवा में 1.0 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं वहीं, रूढ़िवादी व ग्रामीण क्षेत्र वाले राज्य राजस्थान में महिलाएँ 3.1 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं। इसका मतलब है कि दिल्ली में जहाँ एक महिला औसत रूप से एक से कुछ ज़्यादा सेक्सुअल पार्टनर रखती है वहीं राजस्थान में तीन से कुछ ज़्यादा। इसी तरह मध्य प्रदेश में महिलाएँ 2.5, उत्तर प्रदेश में 2.2, तमिलनाडु में 2.4, असम में 2.1, हरियाणा में 1.8 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं। 

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