पार्क में नमाज़ पर पाबंदी, यूपी सरकार की नयी ‘राज’नीति!
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में मुसलमान कामगारों को लगातार हतोत्साहित किया जा रहा है। कभी उन्हें खुले में नमाज़ पढ़ने से रोक दिया जाता है तो कभी इसे लेकर बेवजह का विवाद खड़ा करने की कोशिश की जाती है। समझना मुश्किल है कि किस क़ायदे के तहत ऐसा किया जा सकता है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हरियाणा, यूपी के कुछ हिस्से आते हैं और इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है।
नोएडा के पुलिस अधीक्षक अजय पाल का कहना है कि ‘कुछ लोगों ने सेक्टर 58 के पार्क में नमाज़ पढ़ने की अनुमति माँगी थी। सिटी मजिस्ट्रेट की ओर से अनुमति न मिलने के बाद भी लोग वहाँ इकट्ठा हो रहे थे। इलाक़े की कंपनियों को इस बारे में बता दिया गया है। यह सूचना किसी धर्म विशेष के लिए नहीं है।’ यह शास्त्रीय जवाब है जबकि हम जानते हैं कि काँवड़ यात्रियों पर यूपी पुलिस हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा करती है।
Ajay Pal,SSP,Noida: Few people had asked for permission for religious prayers in a park in Sec 58. In spite of no permission granted from city magistrate office people congregated.The companies in the area were informed about it.The info is not specific to any particular religion pic.twitter.com/qxv2ryoyqs
— ANI UP (@ANINewsUP) December 25, 2018
कुछ महीने पहले फ़रीदाबाद में इस पर विवाद हुआ, फिर गुड़गाँव में भीड़ द्वारा मुसलमानों को पार्क में नमाज़ पढ़ने से रोका गया और अब नोएडा में तो ख़ुद पुलिस ने बाक़ायदा नोटिस देकर कंपनियों से कहा है कि यदि उनके कर्मचारी खुले में नमाज़ पढ़ते पाए गए तो कंपनियों पर कार्रवाई होगी।
नोएडा में काम कर रही तमाम बड़ी कंपनियाँ इस फ़रमान से सकते में हैं। मल्टीनेशनल कंपनी अडोबी इंटरनेशनल, सैमसंग से लेकर भारतीय कंपनियाँ एचसीएल, एल्सटाम, मिंडा हफ आदि इसे लेकर परेशानी में आ पड़ी हैं कि वे कर्मचारियों की फ़ैक्टरी या दफ़्तर के बाहर की किसी गतिविधि को कैसे नियंत्रित कर सकती हैं
गुड़गाँव में हुआ था विवाद
इसी साल के अगस्त महीने में गुड़गाँव के बसई गाँव में एक ख़ाली पड़े प्लॉट पर नमाज़ पढ़ने वालों से कुछ लोग झगड़ा करने आ गए। पुलिस ने किसी तरह बीच-बचाव तो किया पर नमाज़ियों को आइंदा उस प्लॉट पर नमाज़ पढ़ने से रोक दिया। नमाज़ी दूसरे प्लॉट के मालिक से बातचीत कर वहाँ नमाज़ पढ़ने लगे तो कुछ लोग वहाँ भी उन्हें रोकने आ गए, विवाद हुआ और दंगा होते-होते बचा। पुलिस ने नमाज पढ़ने से रोकने वालों को तो कुछ नहीं कहा, नमाज़ियों को ही फिर कहीं और खिसकने को कह दिया। कई महीनों पहले फ़रीदाबाद में बिलकुल इसी तरह का विवाद हुआ था।
दरअसल, बीजेपी के शासन वाली राज्य सरकारों पर आरोप है कि वे किसी न किसी रूप में हिंदू-मुस्लिम विवाद के मसलों को चर्चा में बनाए रखना चाहती हैं। इससे, तबाह होते छोटे व मध्यम व्यापार और क़ानून व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दों पर मिल रही असफलता पर बहस ही नहीं होगी। साथ ही सांप्रदायिक आधार पर निरंतर बाँटे जा रहे समाज को इन्हीं मामलों में व्यस्त रखा जा सकेगा जिससे यह बँटवारा और ज़्यादा होता रहे।
लेखिका अरुंधती राय की मानें तो यह संघ का फ़ासीवादी एजेंडा है कि मुसलमानों को रोज़गार के मौक़ों से दूर कर दिया जाए। जिससे परेशान होकर वे दूसरे दर्ज़े के नागरिक बन जाएँ। पहले पशुओं के गोश्त, हड्डी, खाल के व्यापार से लाखों मुसलमानों को गोकशी के नाम पर डराकर बेरोज़गार कर दिया गया और अब दिल्ली के चारों तरफ़ के औद्योगिक इलाक़ों से उन्हें इस तरीके से हटाने/सीमित करने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।
यह भी सही है कि रूस के क़ब्ज़े वाले अफ़ग़ानिस्तान से उसे हटाने के लिए अमरीकी-सऊदी-पाकिस्तानी गठजोड़ ने दुनिया भर में इस्लाम को मानने वाली आबादी में पहचान की सुरक्षा का जो फ़र्ज़ी संकट खड़ा किया और कट्टर इस्लाम का जो परचम दुनिया भर में फ़हरवाया, उसका प्रतिफल इस्लाम को मानने वालों समेत सारी दुनिया भोग रही है। इस्लाम की पूजा पद्धति का प्रकटीकरण इसी का एक स्वरूप है।
दुनिया के हर हवाई अड्डे पर आपको नमाज़ पढ़ते लोग मिल जाएँगे। जुमे की नमाज़ के लिए दुनिया के हर हिस्से में मुस्लिम पुरुषों (मूलत: सुन्नी समुदाय ) की लगभग शत-प्रतिशत उपस्थिति दूसरे धर्मावलंबियों, नास्तिकों और समाजशास्त्रियों के लिए बढ़ते कौतूहल/अध्ययन का कारण है। दक्षिणपंथ ने दुनिया भर में इसे इस्लामोफ़ोबिया बढ़ाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर उससे सहमति न रखने वालों को चित करना शुरू कर दिया है, भारत संभवत: इसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला है।
पश्चिम के तमाम देशों में बुरक़े, हिजाब आदि पर प्रतिबंध राजनैतिक मुद्दे बन चुके हैं। कई देशों में सरकारें इन पर प्रतिबंधी क़ानून तक बना चुकी हैं। हमारे देश में भी छिटपुट हरकतें होती ही रहती हैं। एक युवती को हिजाब पहने होने के कारण परीक्षा में भाग लेने से रोक देने का विवाद अभी बहस में ही है।
आम चुनाव के वक़्त ऐसी किसी भी घटना पर विपक्षी दलों का कोई असावधान क़दम उन्हें सांप्रदायिक राजनीति के उस जाल में उलझा सकता है जो संभावित नतीजे ही बदल दे। इसलिए किसी बड़े राजनयिक हस्तक्षेप की उम्मीद बेमानी है! समाजी और धार्मिक अगुवाओं को ही इसका सामना करना होगा, समझना होगा और समझाना होगा।