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एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में 'इंडिया' की जगह 'भारत' करने की सिफारिश

एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में 'इंडिया' की जगह 'भारत' करने की सिफारिश

देश का नाम India और भारत रखने के विवाद के बीच ही अब एनसीईआरटी में इसको लेकर बदलाव किया जा रहा है। जानिए, आख़िर इंडिया और भारत का मुद्दा क्यों।

एनसीईआरटी की किताबों में अब जल्द ही 'India' यानी 'इंडिया' शब्द देखने को नहीं मिलेगा! एनसीईआरटी यानी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के पैनल ने सुझाव दिया है कि सभी पाठ्यपुस्तकों में 'इंडिया' को 'भारत' लिखा जाना चाहिए। इससे एक बार फिर से यह विवाद चर्चा में आ गया है कि क्या देश का नाम इंडिया की जगह पर भारत ही किया जाएगा।

एनसीईआरटी के पैनल ने पाठ्यपुस्तकों में इंडिया की जगह 'भारत' लिखने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। इस प्रस्ताव को इसके सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है। पैनल के सदस्यों में से एक सीआई इस्साक के मुताबिक, यह सुझाव सामाजिक विज्ञान समिति द्वारा दिया गया है और इसे अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू किया जाएगा। इस्साक एक इतिहासकार और पद्मश्री पुरस्कार विजेता हैं।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार एनसीईआरटी समिति ने पाठ्यपुस्तकों में 'हिंदू जीत' को उजागर करने की सिफारिश भी की है। इसने पाठ्यपुस्तकों में 'प्राचीन इतिहास' के स्थान पर 'शास्त्रीय इतिहास' को शामिल करने की भी सिफारिश की है। इस्साक ने कहा कि इतिहास को अब प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक में विभाजित नहीं किया जाएगा जैसा कि अंग्रेजों ने किया था। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारत को वैज्ञानिक प्रगति और ज्ञान से अनभिज्ञ अंधकार में दिखाया था। समिति ने सभी विषयों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली को शामिल करने की भी सिफारिश की है।

इस बीच एनसीईआरटी ने कक्षा 3-12 के लिए नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए 19 सदस्यीय समिति भी बनाई। इस समिति के कुछ सदस्य फील्ड मेडलिस्ट मंजुल भार्गव, पीएम के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय, आरएसएस से जुड़े संस्कृत भारती के संस्थापक सदस्य चामू कृष्ण शास्त्री, परोपकारी सुधा मूर्ति और गायक शंकर महादेव हैं।

बहरहाल, पाठ्यपुस्तकों में इंडिया की जगह भारत किए जाने की सिफारिश तब की गई है जब इस पर बहस चल रही है कि क्या देश का नाम बदलकर 'भारत' रखा जाएगा। यह बहस इसी साल तब शुरू हुई जब केंद्र ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा आयोजित जी20 रात्रिभोज के निमंत्रण को 'प्रेजिडेंट ऑफ़ इंडिया' के बजाय 'भारत के राष्ट्रपति' के नाम से भेजा। यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर नामकरण में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक था। 

सितंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'भारत' नेमप्लेट को मेज पर रखा गया था जब वह दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत मंडपम में जी20 लीडर्स शिखर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।

तब यह राजनीतिक विवाद का मुद्दा बन गया था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था, 'तो ये ख़बर वाकई सच है। राष्ट्रपति भवन ने 9 सितंबर को जी20 रात्रिभोज के लिए सामान्य 'President of India' की जगह 'President of Bharat' के नाम पर निमंत्रण भेजा है। अब, संविधान में अनुच्छेद 1 में पढ़ा जाएगा: 'भारत, जो India था, राज्यों का एक संघ होगा।' लेकिन अब इस 'राज्यों के संघ' पर भी हमला हो रहा है।

तब रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 1 में भारत को लेकर दी गई जिस परिभाषा में 'इंडिया, दैट इज भारत' के जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसमें से सरकार 'इंडिया' शब्द को निकाल कर सिर्फ 'भारत' शब्द को ही रहने देने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

वैसे भी मोदी सरकार गुलामी की मानिसकता और गुलामी से जुड़े हर प्रतीक को हटाने के मिशन में जुटी है। वह आज़ादी के पूर्व के समय की निशानियों को मिटाने की बात लगातार करती रही है।

हाल ही में आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान लोगों से इंडिया की जगह भारत नाम इस्तेमाल करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था, 'इस देश का नाम सदियों से भारत है, इंडिया नहीं। इसलिए हमें इसका पुराना नाम ही इस्तेमाल करना चाहिए।' उन्होंने कहा था कि भाषा कोई भी हो, नाम एक ही रहता है। भागवत ने कहा, 'हमारा देश भारत है और हमें सभी व्यवहारिक क्षेत्रों में इंडिया शब्द का इस्तेमाल बंद करके भारत शब्द का इस्तेमाल शुरू करना होगा, तभी बदलाव आएगा। हमें अपने देश को भारत कहना होगा और दूसरों को भी यही समझाना होगा।'

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