क्या शिवराज के निशाने पर नेशनल हेराल्ड भर है?
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के निशाने पर भी क्या नेशनल हेराल्ड है? नेशनल हेराल्ड के बाद क्या प्रदेश के कुछ अन्य बड़े पत्र समूहों और मीडिया हाउसेस को भी शिवराज सिंह चौहान सरकार निशाने पर लेगी? इन सवालों की गूंज मध्य प्रदेश के मीडिया हलकों में हो रही है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से पूछताछ के बाद बवाल मचा हुआ है। कांग्रेस देशव्यापी आंदोलन-प्रदर्शन कर रही है।
ईडी की पूछताछ और कांग्रेस के विरोध के बीच मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी ‘बड़ा दांव’ खेल दिया है। कांग्रेस के धाकड़ नेताओं में शुमार रहे अर्जुन सिंह (अब इस दुनिया में नहीं हैं) के मुख्यमंत्रित्वकाल में भोपाल और इंदौर के प्रेस कॉम्प्लेक्स में कौड़ियों के दाम में नेशनल हेराल्ड को 40 साल पहले आवंटित की गई जमीनों की फाइलों को शिवराज सिंह सरकार खोलने जा रही है।
प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने नेशनल हेराल्ड को किए गए जमीनों के आवंटन और जमीन के कथित दुरूपयोग की जांच एक आईएएस अफसर से कराने की घोषणा की है।
भूपेन्द्र सिंह ने कहा, ‘नेशनल हेराल्ड के भोपाल और इंदौर के परिसरों को सील किया जायेगा। जमीन के लैंडयूज को चेंज करने वाले अफसरों की जांच भी होगी। आईएएस अफसर को एक महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिये जायेंगे।’
बता दें, नेशनल हेराल्ड और नवजीवन (कांग्रेस के अंग्रेजी और हिन्दी भाषा वाले पुराने मुखपत्रों) को चलाने वाले एसोसिएट जनरल लिमिटेड (एजेएल) को भोपाल तथा इंदौर के प्रेस कॉम्प्लेक्स में जमीनों का आवंटन किया गया था।
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल के पहले दौर में 1981 में भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स में 1 एकड़ 14 डेसिमल जमीन और इंदौर प्रेस कॉम्प्लेक्स में 1983 में करीब आधा एकड़ जमीन का अलॉटमेंट नेशनल हेराल्ड को एक लाख रुपये प्रति एकड़ मूल्य पर किया था। दोनों ही जमीनें 30 सालों की लीज पर दी गई थीं।
भोपाल विकास प्राधिकरण द्वारा भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स में आवंटित की गई जमीन की लीज की अवधि साल 2011 में समाप्त हो चुकी है। जबकि इंदौर में 2013 में यह अवधि खत्म हुई है।
जमीनों का आवंटन अखबार के प्रकाशन और उससे जुड़ी हुई गतिविधियों के लिये था। अकेले एजेएल नहीं भोपाल और इंदौर के प्रेस कॉम्प्लेक्सों में सौ के लगभग ‘पत्र समूहों’ को मामूली दरों पर 5 हजार वर्गफुट से लेकर एक एकड़ और इससे भी ज्यादा क्षेत्रफल वाले भूखंडों का आवंटन किया गया था।
तत्कालीन सरकार के फैसले से बहुतेरे ‘अखबार मालिकों’ को लाभ मिला था। सरकारी फायदों (विज्ञापन और अन्य सुविधाओं के लिये) पुर्जे-पन्ने निकालने वाले भी अर्जुन सिंह की ‘कृपा से’ रातों-रात नाम मात्र की दरों में लाखों की बेशकीमती और मौके की जगह की जमीनों के मालिक हो गये थे। बाद में धीरे-धीरे जमीनें बेच दी गई थीं। सूबे के कई बड़े और नामी-गिरामी अखबारों के मालिक इन जमीनों का कॉर्मिशयल उपयोग करने लगे थे। जो भी आज भी बदस्तूर जारी हैं।
प्रेस कॉम्प्लेक्स में केवल अखबार और इससे जुड़ी गतिविधियों के नियमों को दरकिनार करते हुए अलॉट जमीनों पर भव्य ऑफिस कॉम्प्लेक्स और मल्टी स्टोरी बिल्डिंगों का निर्माण कर बेच डाला गया। बहुतेरे चतुर सुजान अखबार मालिकों ने बहुमंजिला भव्य कॉम्प्लेक्सों को किराये पर दिया हुआ है।
एजेएल को भोपाल में अलॉट की गई जमीन पर भी भव्यतम बहुमंजिला कॉम्प्लेक्स बनाकर बेच डाला गया है। कई मंजिला कॉम्प्लेक्स में दर्जनों भव्य शो रूम और बड़ी संख्या में कार्यालय चल रहे हैं।
दिलचस्प यह है कि साल 2003 से 2018 तक लगातार 15 साल सत्ता में रही भाजपा सरकार को इस पूरे गोरखधंधे और अनियमितताओं की जानकारी थी। मगर वह चुप्पी साधे रही।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के दूसरे दौर में भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीनों को खुर्द-बुर्द करने और भूमि का दुरूपयोग करने की शिकायतों की जांच भोपाल संभाग के कमिश्नर रहे सीनियर आईएएस अफसर (बाद में सीएम शिवराज सिंह के पीएस भी रहे और एससीएस रैंक से 2021 में रिटायर हुए) मनोज श्रीवास्तव ने की थी।
राजस्व मामलों के बेहद जानकार माने जाने वाले मनोज श्रीवास्तव ने जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया था कि अधिकांश अलॉटीज जमीन का दुरूपयोग कर रहे हैं। आवंटन की शर्तों का खुला और गंभीर उल्लंघन हो रहा है। गलत तरीकों से जमीन बेच डाली गई है। खुले आम जमीन का कॉमर्शियल उपयोग हो रहा है।
श्रीवास्तव द्वारा 2012 में दी गई विस्फोटक रिपोर्ट को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। कोई एक्शन नहीं हुआ। इसके बाद वे आवंटी भी ‘शेर’ हो गये जो कानून के डंडे से भय खाते थे। नियम विरूद्ध अनेक नये निर्माण इसके बाद हुए।
‘बीडीए को सभी ने नजर अंदाज किया’
भोपाल विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने लीज न भरने, आवंटन शर्तों-नियमों का उल्लंघन करने और अन्य अवहेलनाओं को लेकर सैकड़ों नोटिस दिये। कइयों की लीज भी निरस्त की। मगर नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
आवंटन नियमों का खुला उल्लंघन और जमीन का दुरूपयोग करने वाले जोड़तोड़ और कोर्ट-कचहरी के जरिये आज भी भोपाल प्रेस कॉम्प्लेक्स की जमीन पर काबिज़ हैं। इंदौर में प्रेस कॉम्प्लेक्स में ऐसी ही अनियमितताओं से आईडीए (इंदौर विकास प्राधिकरण) भी नहीं निपट पा रहा है।
दरअसल, सबकुछ ‘ऊपर’ से होता है। जो इशारा ‘ऊपर’ से मिलता है, उसी के अनुरूप मशीनरी काम करती है।
बहरहाल, नेशनल हेराल्ड से जुड़े भोपाल-इंदौर मामलों की वर्षों पुरानी फाइलों को खोले जाने के प्रदेश सरकार के फैसले को दो तरीकों से देखा जा रहा है।
पहला - मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने ‘लोहा गर्म पाकर’ अपने सूबे में ‘ऐसी चोट’ की है, जिससे दिल्ली वाले अपनों के सामने उनके नंबर बढ़ जायेंगे।
दूसरा - मुमकिन है कि नेशनल हेराल्ड मामले की आड़ में शिवराज सरकार और सत्तारूढ़ दल भाजपा आगे उन मीडिया समूहों/पत्र समूहों को भी निशाने पर लेगी, जिन्होंने सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ी हुई है। यह भी माना जा रहा है कि उन समूहों पर भी सरकार का नजला गिर सकता है जो अब कमजोर हो गये हैं। सरकार के किसी भी तरह से काम के नहीं रहे हैं और बोझ बने हुए हैं।
‘लोकतंत्र से खेलने वाले चौथे स्तंभ को क्यों बख्शेंगे’
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव ने भोपाल-इंदौर के नेशनल हेराल्ड जमीन मामले की जांच के फैसले को लेकर ‘सत्य हिन्दी’ को दी गई प्रतिक्रिया में कहा, ‘कांग्रेस न तो मोदी जी से डरती है और ना ही शिवराज से। मध्य प्रदेश सरकार जो चाहे वह जांच करवा ले। भाजपा और उसके नेता देश के सामने एक्सपोज हो गये हैं।’
यादव ने आगे कहा, ‘लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वाले ये लोग, सच उजागर करने वाले चौथे स्तंभ को आखिर क्यों बख्शेंगे? दुःख और दर्द यह है कि मीडिया अघोषित आपातकाल/सैंसरशिप की इनकी शैली को समझ ही नहीं पा रहा है!’
कांग्रेस नेता यादव ने कहा, ‘कमरतोड़ महंगाई, जबरदस्त बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी, भारी भ्रष्टाचार, ध्वस्त कानून-व्यवस्था, भूख से मौतें, धर्मनिरपेक्षता के टूटते ताने-बाने और हर तरफ अराजकता से समूचा देश परेशान है। जनता त्रस्त हो चुकी है। बहुत दिन इन्हें झेलेगी नहीं।’