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बालियान से मुलाकात के बाद पलटे नरेश टिकैत, कहा- किसी को नहीं दिया समर्थन

बालियान से मुलाकात के बाद पलटे नरेश टिकैत, कहा- किसी को नहीं दिया समर्थन

आख़िर किसान नेता नरेश टिकैत सपा-रालोद को समर्थन देने के बयान से क्यों पलट गए? इसके पीछे क्या वजह हो सकती है?

समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन को समर्थन देने के अपने बयान से भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत पलट गए हैं। नरेश टिकैत ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्होंने किसी भी दल को समर्थन नहीं दिया है। 

सोमवार को नरेश टिकैत की केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान से भी मुलाकात हुई है। उसके बाद ही नरेश टिकैत ने यह यू-टर्न लिया है।

बता दें कि कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ कहा था कि उनका संगठन सियासत से दूर रहेगा और अगर कोई किसान संगठन किसी राजनीतिक दल का समर्थन करता है तो वह ऐसा व्यक्तिगत हैसियत से करेगा और संयुक्त किसान मोर्चा का इससे कोई लेना-देना नहीं होगा। 

नरेश टिकैत ने पत्रकारों से कहा कि उनके पास सभी राजनीतिक दलों के लोग आते हैं। उन्होंने कहा कि हम किसी राजनीतिक दल की सभा में नहीं जाएंगे। 

इस बारे में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि नरेश टिकैत ने किसी भी दल का समर्थन नहीं किया है। नरेश टिकैत राकेश टिकैत के बड़े भाई हैं। 

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन करने वाले 32 किसान संगठनों में से 22 किसान संगठनों ने पंजाब में संयुक्त समाज मोर्चा नाम से पार्टी बनाई है और उनकी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी पंजाब के चुनाव में संयुक्त संघर्ष पार्टी बनाकर ताल ठोक रहे हैं। 

 - Satya Hindi

नरेश टिकैत और संजीव बालियान।

जैसे ही नरेश टिकैत के द्वारा सपा-रालोद गठबंधन को समर्थन देने की बात सामने आई, इससे बीजेपी के खेमे में भी हलचल मच गई। क्योंकि टिकैत परिवार का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर असर माना जाता है। 

इसलिए केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान तुरंत नरेश टिकैत से मिलने पहुंचे और उन्हें मनाने की कोशिश की। टिकैत बंधु बीते चुनावों में बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका बीजेपी के लिए बीते विधानसभा चुनाव और 2 लोकसभा चुनाव में अच्छे नतीजे देने वाला रहा है। लेकिन इस बार किसान आंदोलन के चलते उसके सामने हालात मुश्किल हो रहे थे। कृषि कानून वापस होने के बाद बीजेपी नाराज किसानों को मनाने की पूरी कोशिश कर रही है।

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर हुए आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की बड़ी भूमिका थी और यहां के किसानों ने तब बीजेपी के नेताओं का खुलकर विरोध भी किया था।

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