मोदी नहीं तो कौन होगा अगला प्रधानमंत्री?
लोकसभा चुनाव के छह चरणों के बाद यह क़यास जोर-शोर से लगने शुरू हो गए हैं कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दावा कर रहे हैं कि इस बार बीजेपी 300 से ज़्यादा सीट जीतेगी। लेकिन दूसरी तरफ़ तमाम टीवी चैनल और अख़बारों के सर्वे एनडीए के बहुमत से काफ़ी दूर रहने की आशंका जता रहे हैं। ऐसे में देश में उत्सुकता बढ़ती जा रही है।चुनावी नतीजे आने के बाद कई तरह की परिस्थितियाँ बनने की संभावनाएँ हैं। ये परिस्थितियाँ ही तय करेंगी कि देश में अगली सरकार एनडीए की बनेगी, यूपीए की बनेगी या फिर चुनाव के बाद वजूद में आने वाला क्षेत्रीय दलों का संभावित नया गठबंधन सत्ता में आएगा।
ज़्यादातर चुनावी सर्वेक्षण इस बात की संभावना जता रहे हैं कि इस बार सत्ता की चाबी क्षेत्रीय दलों के हाथों में आ सकती है। कई क्षेत्रीय दलों के नेता ख़ुद प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
23 मई को अगर एनडीए 300 से ज़्यादा सीटें हासिल करता है तो मोदी आसानी से दुबारा प्रधानमंत्री बन जाएँगे। लेकिन अगर एनडीए बहुमत के आंकड़े से 20-30 सीटों से पिछड़ता भी है तो भी इतनी सीटों का जुगाड़ करके मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बन सकते हैं और इस बात की संभावना भी ज़्यादा है। लेकिन अगर एनडीए बहुमत के आंकड़े से 50 सीटों से ज़्यादा दूर रहता है तब यह संख्याबल जुटाना एनडीए के लिए मुमकिन नहीं होगा।एक संभावना यह है कि अगर कांग्रेस 140-150 सीटें जीतती है और उसके सहयोगी 30-40 सीट तो, इस तरह यूपीए के पास 170 -190 सीटें हो जाएँगी। इन परिस्थितियों में कांग्रेस सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है।
कांग्रेस की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी के नाम पर क्षेत्रीय दलों में सहमति नहीं बनेगी तो कांग्रेस किसी अन्य वरिष्ठ नेता का नाम आगे कर सकती है। इस बार दक्षिण भारत से किसी नेता को प्रधानमंत्री बनाए जाने की माँग उठ रही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की तरफ़ से पी. चिदंबरम का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे आ सकता है।
देश के मौजूदा हालात में एक ऐसे प्रधानमंत्री की ज़रूरत महसूस की जा रही है जिसे देश की अर्थव्यवस्था की बेहतर समझ हो। इस हिसाब से पी. चिदंबरम का नाम सबसे उपयुक्त लगता है।
मायावती के मुक़ाबले मीरा कुमार
उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी-आरएलडी का गठबंधन चुनाव के बाद शायद ही कांग्रेस को समर्थन दे। अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती का नाम आगे करके वैसे भी दलित कार्ड खेल दिया है। अखिलेश के दलित कार्ड की काट के लिए कांग्रेस मायावती के मुक़ाबले मीरा कुमार का नाम आगे कर सकती है।कांग्रेस का मानना है कि मीरा कुमार के नाम पर कोई क्षेत्रीय दल विरोध नहीं कर पायेगा। मीरा कुमार का प्रोफ़ाइल भी बेहतर है। मीरा कुमार कई बार केंद्र में मंत्री रह चुकी हैं, लोकसभा की स्पीकर रह चुकी हैं और राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ चुकी हैं।
एक संभावना यह भी है कि कांग्रेस अगर 120-130 सीटों पर सिमट जाती है और सहयोगी दल 30-40 सीटें हासिल करते हैं तो इस स्थिति में यूपीए के पास 150-170 सीटें होंगी। इन परिस्थितियों में कांग्रेस अपने सहयोगी दल के किसी नेता को यूपीए का नेता बनाकर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना सकती है। यूपीए में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी दो पार्टियाँ हैं। आरजेडी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)।
आरजेडी के नेता लालू प्रसाद यादव जेल में हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास एनसीपी के नेता शरद पवार के रूप में एक ऐसा नाम है जिसे कांग्रेस यूपीए संसदीय दल का नेता चुन कर प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है।
शरद पवार पहले से ही क्षेत्रीय दलों के बीच समन्वय बैठाने का काम कर रहे हैं। शरद पवार ही वह नेता हैं जिन्होंने पहले से कहा है कि केंद्र से मोदी सरकार को हटाने के लिए सभी क्षेत्रीय दल पूरी ताक़त लगाएँ और प्रधानमंत्री कौन होगा, इसका फ़ैसला चुनाव नतीजे आने के बाद करें। उनके इस तर्क से ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव तक सहमत रहे हैं। ऐसे में अगर पवार का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे आता है तो उन्हें ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, के. चंद्रशेखर राव, जगन मोहन रेड्डी, अखिलेश यादव और मायावती को अपने समर्थन में लाने की चुनौती होगी। अगर कांग्रेस शरद पवार के पीछे खड़ी होती है तो उन्हें क्षेत्रीय दलों को अपने पीछे लाने में दिक़्क़त नहीं होगी।
सबसे जटिल परिस्थितियाँ तब होंगी जब ग़ैर-कांग्रेस और ग़ैर-बीजेपी दल एकजुट होकर अपनी सरकार बनाने की कोशिश करें। इसकी अगुवाई अखिलेश यादव और मायावती कर सकते हैं। इसके संकेत अखिलेश और मायावती, दोनों पहले ही दे चुके हैं।
मोटे अंदाजे के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन को 50 सीटें मिलने की संभावना है। अखिलेश यादव, मायावती का नाम पहले ही प्रधानमंत्री पद के लिए आगे कर चुके हैं। लेकिन अभी तक मायावती के नाम पर किसी दल ने सहमति नहीं दी है। मायावती के समर्थन में ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, के. चंद्रशेखर राव और जगनमोहन रेड्डी जैसे नेताओं को लाना अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती होगी।
कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाए रखने की वकालत करने वाले नेताओं में ममता बनर्जी और मायावती के बीच प्रधानमंत्री पद को लेकर ज़बरदस्त रस्साकशी हो सकती है। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल से अकेले मायावती के मुक़ाबले ज़्यादा सीटें जीत सकती हैं।
ममता को चुन सकता है फ़ेडरल फ़्रंट
प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए फ़िलहाल मायावती को अखिलेश और अजित सिंह के अलावा किसी तीसरे दल का समर्थन हासिल नहीं है। जबकि ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव, चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर फ़ेडरल फ़्रंट के नाम पर एक अलग गठबंधन बनाने की चर्चा कर चुकी हैं। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी फ़ेडरल फ़्रंट के पक्ष में हैं।फ़ेडरल फ़्रंट में शामिल दलों के गठबंधन के सांसदों की संख्या एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के सांसदों से ज़्यादा होगी। ऐसे में फ़ेडरल फ़्रंट ममता बनर्जी को अपना नेता चुन सकता है। इस परिस्थिति में प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती और ममता बनर्जी के बीच मुक़ाबला होगा। इसका फायदा कांग्रेस मीरा कुमार का नाम आगे करके उठा सकती है।
प्रणब को पीएम बना सकता है संघ
एक परिस्थिति ऐसी भी बन सकती है जिसमें एनडीए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हो लेकिन बीजेपी हर हालत में सत्ता में बने रहना चाहे। ऐसे में चर्चा चल रही है कि संघ परिवार की तरफ़ से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का नाम आगे किया जा सकता है। पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी के लिए प्रधानमंत्री बनने में कोई संवैधानिक बाधा नहीं है। प्रणब मुखर्जी पिछले साल संघ के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे, तब से ही ऐसी अटकलें लग रही हैं।
बीजेपी की नज़र पश्चिम बंगाल की सत्ता पर है। ऐसे में संघ परिवार और बीजेपी मिलकर यह दाँव खेल सकते हैं। प्रधानमंत्री बनना प्रणब मुखर्जी का भी सपना रहा है। मुखर्जी का नाम आगे आने पर ममता बनर्जी के लिए ख़ासी दिक़्क़त हो सकती है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश में दिलचस्प राजनीतिक परिस्थितियाँ बन रही हैं। सत्ता के समीकरण बेहद उलझे हुए हैं। इतना तय है कि अगर केंद्र में मोदी सरकार की वापसी नहीं हुई तो कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच सरकार बनाने को लेकर जमकर जोर-आज़माइश होगी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में कई बड़े नाम होंगे। इनमें एक-दूसरे को पछाड़कर आगे निकलने की होड़ बड़ी दिलचस्प होगी।