दूसरे कार्यकाल में चीन को विदेश नीति की धुरी बनाएँगे मोदी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में चीन से आर्थिक रिश्ते और मजबूत करने पर ज़ोर देंगे, यह अब साफ़ हो चुका है। भारत सरकार की यह रणनीति ऐसे समय सामने आ रही है जब अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध चरम पर है। मोदी ने कार्यभार संभालने के एक पखवाड़े के अंदर ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की और दोतरफा आर्थिक रिश्तों को और मजबूत बनाने के लिए कदम उठाने पर बात की।
शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ सम्मेलन में भाग लेने किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक गए मोदी ने जिनपिंग से मुलाक़ात की। दोनों नेताओं की शीर्ष बैठक के अलावा दोनों देशों के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बात भी हुई।
ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी और तसवीरें साझा कीं। उन्होंने ट्वीट किया, ‘राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बेहद लाभप्रद बातचीत हुई। हमारी बातचीत में भारत-चीन रिश्ते के सभी पहलुओं पर चर्चा हुई। दोनों देश आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिशें करते रहेंगे।’
Had an extremely fruitful meeting with President Xi Jinping. Our talks included the full spectrum of India-China relations.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 13, 2019
We shall continue working together to improve economic and cultural ties between our nations. pic.twitter.com/JIPNS502I3
दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच हुई बैठक की सबसे ख़ास बात यह है कि आर्थिक मुद्दों के अलावा आतंकवाद पर भी बातचीत हुई। समझा जाता है कि मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से कहा कि पाकिस्तान अब भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देता है और वहां उससे जुड़े प्रशिक्षण केंद्र अब भी चल रहे हैं। विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति से कहा कि विश्वास का माहौल बनाने के लिए पाकिस्तान को ठोस कदम उठाना चाहिए, पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
इस बातचीत में अज़हर मसूद पर भी बात हुई। बता दें कि अज़हर मसूद को संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में चीन ही अड़चन बना हुआ था। लेकिन इस बार अमेरिका के दबाव में आकर चीन इस पर सहमत हो गया कि वह कम से कम विरोध नहीं करेगा।
मोदी ने शी जिनपिंग को भारत आने का न्योता दिया, जिसे उन्होंने मान लिया। दोनों देशों के नेताओं के बीच शीर्ष बातचीत भारत में अगले ही महीने हो सकती है।
पुतिन से मुलाक़ात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से भी बिश्केक में मुलाक़ात की। इसके अलावा दोनों देशों के प्रतिनिधि मंडल के बीच भी बातचीत हुई। समझा जाता है कि इसमें सुरक्षा के विषय पर बातचीत हुई और देशों देशों के बीच इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई।समझा जाता है कि मोदी ईरानी नेताओं से भी वहीं मुलाक़ात करेंगे। ईरान के साथ बातचीत अहम इसलिए है कि अब भारत उससे कच्चा तेल नहीं खरीद सकेगा। बदले माहौल में दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने के रास्ते तलाशे जाएँगे।
चीन पर ज़्यादा ध्यान क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में भी चीन को लेकर भारत सरकार की नीतियाँ काफ़ी सकारात्मक थी और उत्साह से भरी हुई थी। चीनी राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया था और उसके बाद आर्थिक रिश्ते और मजबूत हुए थे। सिर्फ़ डोकलाम में चीनी फ़ौज के घुस आने से दोनों देशों के बीच कड़वाहट आ गई थी। बाद में नरेंद्र मोदी चीन गए थे और वहाँ उन्होंने शी जिनपिंग से मुलाक़ात की थी। चीन भी भारत से नज़दीकी चाहता है। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि उसने अपने पक्के दोस्त पाकिस्तान की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में अज़हर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित होने दिया, उसका विरोध नहीं किया।इसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति की कुछ दूसरी अहम बातों के ज़रिए समझा जा सकता है। हाल फिलहाल अमेरिका ने भारत को जीएसपी यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रीफरेसेंज से बाहर कर दिया, यानी विकासशील देश होने की वजह से भारतीय आयात को मिलने वाली छूट अब अमेरिका नहीं देगा। इससे वहाँ भारतीय उत्पादों का टिकना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिका का कहना है कि उसने ऐसा इसलिए किया है कि भारत उसे व्यापार में बराबरी का मौका नहीं देता है।
इसके कुछ दिन पहले ही चीन और अमेरिका ने एक-दूसरे के उत्पादों पर आयात शुल्क में ज़बरदस्त बढोतरी कर दी। इससे 65 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों का चीन में घुसना मुश्किल हो जाएगा। चीन को भी अरबों डॉलर का नुक़सान होगा। यह मामला अभी सुलझा नहीं है और दोनों देशों के बीच बातचीत होनी है। उसका क्या नतीजा होगा, कहना मुश्किल है। सवाल यह उठता है कि क्या भारत और चीन इस मौके का फ़ायदा उठा कर एक दूसरे के नज़दीक आ रहे हैं। इस सवाल का जवाब अभी साफ़ नहीं है। पर यह साफ़ है कि मोदी चीन पर अधिक ध्यान देने की नीति पर चल रहे हैं। वह चाहेंगे कि चीन से रिश्ते मजबूत किया जाए ताकि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता बनी रहे।