कृषि क़ानून रद्द होने से मोदी की 'महामानव' की छवि को धक्का लगा?
क्या कृषि क़ानूनों को रद्द किए जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को धक्का पहुँचा है? क्या अपराजेय और हर मुद्दे पर एकदम सही समझे जाने वाले प्रधानमंत्री पर उनके ही समर्थकों का यकीन कम हो रहा है? क्या उनके अपने कट्टर समर्थकों और ठोस वोट बैंक को यह संकेत गया है कि नरेंद्र मोदी भी ग़लत हो सकते हैं? क्या उच्च शिखर पर बनाई गई मूर्ति कहीं से दरक गई है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि अपार लोकप्रियता वाले नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक मोटे तौर पर कृषि क़ानूनों पर भी उनके साथ खड़े थे। मध्यवर्ग और खाते-पीते पृष्ठभूमि के मोदी भक्त इस नैरेटिव पर यकीन करते थे कि किसानों का यह आन्दोलन विदेश से मिलने वाले पैसों से चल रहा है जो भारत को कमज़ोर करने के लिए खड़ा किया गया है।
मोटे तौर पर मोटी समर्थक यह मानते थे कि इन कृषि क़ानूनों से मोदी को व्यक्तिगत रूप से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, इससे किसानों को फ़ायदा होगा, लेकिन विपक्ष के चालाक लोग किसानों को बरगलाने में कामयाब हैं।
समर्थक मायूस?
इस वर्ग को तब मायूसी हाथ लगी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने का एलान कर दिया। मोदी भक्तों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि कुछ दिन पहले ही हरियाणा में किसान आन्दोलन पर ज़बरदस्त पुलिस कार्रवाई और उत्तर प्रदेश में केंद्रीय मंत्री की गाड़ी से कुचल कर मारे जाने वाले किसानों के प्रति सहानुभूति का एक शब्द नहीं बोलने वाले प्रधानमंत्री को आखिर क्या हो गया।
लगभग एक साल तक चले किसान आन्दोलन को कुचलते रहने के बाद एक दिन यकायक मोदी का उनके प्रति प्रेम क्यों जाग गया, यह भी समझ से परे है।
मोदी के समर्थक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कल तक 'खालिस्तानी' और 'देशद्रोही' कहे जाने वाले किसानों को प्रधानमंत्री इतनी बड़ी छूट क्यों दे रहे हैं, उनकी बात बगैर किसी शर्त के क्यों मान रहे हैं।
ट्विटर पर टूट पड़े लोग
इसकी एक बानगी ट्विटर पर देखने को मिलती है। जितेंद्र यादव नामक एक यूजर ने ट्वीट कर कहा कि वह बहुत ही निराश हैं और मोदी को वोट नहीं करने का फैसला कर लिया है।
#disappointed weakest PM of world ... Decided not to vote him , cause if any demand of a handful of people not fullfill , they can bend the country PM as per their own convenience . pic.twitter.com/F1kTQd0RvI
— jitender yadav (@jeettweet27) November 19, 2021
कोप्पुला नरसिंहन रेड्डी नामक यूजर ने ट्वीट किया कि 'इससे संपन्न पंजाबी दलालों के आगे छोटे ग़रीब किसानों की हार हुई है।'
राम नरेश मीणा ने कहा कि 'वे इस फ़ैसले से निराश हैं, फिर भी प्रधानमंत्री के साथ हैं।'
I am #disappointed but we are with our PM.
— रामनरेश मीणा (@AjniMina) November 19, 2021
This decision have so many more conclusion and reactions.
Just wait and see. #FarmLaws pic.twitter.com/o7nCOXbJgj
जिहादी राष्ट्र?
और तो और, 'पद्म श्री' कंगना रनौत ने भी कहा है कि यह निर्णय 'दुखद, शर्मनाक और एकदम अनुचित है।' उन्होंने कहा, "यदि संसद में चुने गए लोग नहीं, बल्कि सड़क पर बैठे हुए लोग देश के क़ानून बनाने लगे तो यह जिहादी राष्ट्र है।"
उन्होंने तंज करते हुए लिखा, "उन्हें बधाई, जो ऐसा चाहते हैं।"
यह तो सिर्फ कुछ उदाहरण हैं। कृषि क़ानून रद्द किए जाने से मोदी की छवि को तो धक्का ज़रूर लगा है जो यह मान कर चलते थे कि मोदी ग़लत हो ही नहीं सकते।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि बीजेपी के साइबर सेल और साइबर आर्मी की ओर से लगातार अभियान चला कर मोदी की महामानव की जो छवि बनाई गई थी, जिस पर आबादी का एक बड़ा हिस्सा यकीन करता था, उसे ठेस लगी है।
राहत की सांस!
लेकिन एक दूसरा वर्ग यह भी मानता है कि मोदी के इस फ़ैसले से बीजेपी के कार्यकर्ताओं और पार्टी से जुड़े लोगों के एक बड़े समूह ने राहत की सांस ली है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब-हरियाणा, जहाँ किसान आन्दोलन तेज रहा है, वहाँ के बीजेपी कार्यकर्ता बुरी तरह फँसे हुए थे। ये बीजेपी कार्यकर्ता न तो आम जनता के बीच कृषि क़ानूनों को उचित ठहरा पा रहे थे न ही पार्टी के इस फ़ैसले को ग़लत बता पा रहे थे। वे आम जनता के बीच खुद को अलग-थलग और कटे हुए पा रहे थे।
इसे इससे समझा जा सकता है कि पंजाब-हरियाणा में कई जगह सांसदों को भी जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा। ऐसे लोग मन ही मन खुश हैं।
पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव की पार्टी मशीनरी चलाने वाले और मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक ले आने वाले लोग भी खुश हैं और मन ही मन प्रधानमंत्री को धन्यवाद कह रहे हैं कि अब उनका काम आसान हो गया।
लेकिन ऐसे लोग भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे कि जैसा कि आन्दोलन चलाने वालों का दावा है कि इस दौरान सात सौ से ज़्यादा किसानों की मौत हो गई, उनका क्या होगा। ये लोग उनके परिजनों का सामना कैसे करेंगे और क्या कह कर उन्हें सांत्वना देंगे।
इस फ़ैसले से पार्टी को अगले चुनावों में फ़ायदा होगा या नुक़सान, इसका आकलन कुछ समय बाद ही किया जा सकता है। पर यह तो साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि वह नहीं रही जो अब तक थी और उनके कट्टर समर्थकों को उनसे मायूसी निश्चित तौर पर हुई है। यह बात दीगर है कि वे इसके बाद भी नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी को वोट देते रह सकते हैं, पर मोदी की छवि में टूट-फूट तो हुई है।