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5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का क्या है मोदी फ़ॉर्मूला?

5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का क्या है मोदी फ़ॉर्मूला?

नरेंद्र मोदी ने 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था भारत को बनाने का जो सपना देखा है, वह पूरा हो सकता है। पर कैसे?

गणितज्ञ ब्रह्मांड को समझने के लिए अनंत काल से अंकों का इस्तेमाल करते आए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन के कायनात में लक्ष्यों का बीजगणित उपलब्धि के उपकरण और सफलता हासिल करने के तरीकों को तय करता है। पर यदि गणना करने का तरीका काम न करे और वह ध्यान न दे तो सबसे अच्छा गणितज्ञ भी अंतिम समय में नाकाम हो सकता है। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंकों के ऐसे जादूगर हैं जिनके जीतने का आकलन हर चुनाव में बीजेपी को मिले वोटों से मेल खाता है। 

मोदी फ़ॉर्मूला

उनका फ़ॉर्मूला तय है, पहले अंक तय करो और उसके बाद उसे हासिल करने का तरीका पता करो। विपक्ष मोदी के सपनों की परियोजनाओं को समझने में नाकाम रहा, जिसका नतीजा यह हुआ कि वह देश के तीन-चौथाई इलाक़ों में ख़त्म हो गया।

महिलाओं को रसोई गैस सिलिंडर देना हो, किसानों को कर्ज़ देना हो, सबको घर बना कर देना हो या डिजिटलाइजेशन करना हो, प्रधानमंत्री ने सुनिश्चित किया कि इस मामले से जुड़े सभी हिस्सेदार बेहतर प्रदर्शन करें या नष्ट हो जाएँ।

प्रशासन तंत्र की ख़ामी

मोदी के लिए बड़ा सोचना उनके आश्चर्यजनक मस्तिष्क का छोटा हिस्सा भर है। उनके विशाल प्रशासन तंत्र की ख़ामी यह है कि वह इन परियोजनाओं को लागू करने में नाकाम रहा। मोदी चौकन्ने थे, जब उन्होंने कहा, ‘भारत को 2024 तक 5 खरब डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने चुनौती भरा है, लेकिन यदि सारे लोग मिल कर काम करें तो इसे हासिल किया जा सकता है।’

उन्होंने अपनी पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से कहा कि वह राष्ट्र के नाम एक साहसिक घोषणा करें। और उन्होंने पलक झपकाए बग़ैर ऐसा कर दिया।

2014 में 1.85 खरब डॉलर से अब 2.7 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था हम बन चुके हैं। हम बड़ी आसानी से अगले कुछ वर्षों में 5 खरब डॉलर तक पहुँच सकते हैं।


निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री

ये शब्द आलोचकों को यह याद दिलाते हैं कि कांग्रेस और उनके सहयोगियों ने 6 दशकों में अर्थव्यवस्था में जितना जोड़ा, मोदी के नेतृत्व में बीजेपी उसका ढ़ाई गुणा और जोड़ेगी। 

कपोल कल्पना नहीं

हालाँकि सीतारमण ने इसका रोड मैप बाद में बनाने पर छोड़ दिया, 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था मोदी के लिए कपोल कल्पना नहीं है। उन्होंने बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करना सिर्फ़ सरकार का काम नहीं है, उनमें से हरेक की ज़िम्मेदारी है। 21वीं सदी के ढाँचागत सुविधाओं की परियोजनाएँ शुरू ही होने वाली हैं, जिससे गाँव और शहर का संतुलन बन सकेगा, गाँव में भंडारण की क्षमता बनाई जाएगी, शहरों का आधुनिकीकरण होगा, राजमार्ग-हवाई अड्डे, जल मार्ग बनाए जाएँगे। सूचना प्रौद्योगिकी और ब्रॉड बैंड पर ज़ोर दिया जाएगा और 1.25 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें गाँवों में बनाई जाएँगी।  

चुनौतियाँ

मोदी के सामने चुनौती यह है कि वह महंगाई और मुद्रा विनिमय दरों को निशाना बनाएँ और अर्थव्यवस्था को सही अर्थों में विस्तार दें।

यह बहुत साफ़ है कि जीडीपी में वृद्धि प्रौद्योगिकी पर चलने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के राजस्व बढ़ाने से नहीं, रोज़गार पैदा करने से होती है।

भारत की मौजूदा सकल घरेलू उत्पाद 2.61 खरब डॉलर है। विश्व अर्थव्यवस्था में 1980 में यह 13वें स्थान पर था, जल्द ही इसके ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर पाँचवे स्थान पर आने की संभावना है। यदि जीडीपी वृद्धि की दर रफ़्तार पकड़ती है तो यह लक्ष्य 2023 तक हासिल किया जा सकता है। 

असंवेदनशील अफ़सरशाही

मोदी ने 2014 में ‘मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट’ का दावा किया था। पर केंद्र और राज्य सरकारों का आकार बढ़ता गया और उसके कामकाज में कोई सुधार नहीं दिखा। मंत्रियों के खर्च काफ़ी बढ़ गए।

आयोग, कमेटी, विशेषज्ञ पैनल, सचिव स्तर के अफ़सरों की तादाद 25 प्रतिशत बढ़ गई। इनमें से ज़्यादातर लोगों का कार्यकाल बढ़ा दिया गया या उन्हें राज्य और केंद्र में सलाहकार के रूप में खपा दिया गया।

उनकी भूमिका को नहीं मापा जा सकता, इसलिए वे सुरक्षित रह कर बेमतलब के नोट लिखने और ख़ुद की बनाई समस्याओं के हल निकालने में मशगूल हैं। 

ढाई करोड़ सरकारी कर्मचारी

भारत में हर 25 नागरिक पर एक सरकारी कर्मचारी है। इसमें रक्षा और सार्वजनिक उपक्रमों के लोग शामिल नहीं हैं। जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत इनके वेतन और भत्ते वगैरह में चला जाता है। मोदी ने इन्हें मझधार में छोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, पर उन्हें जल्द ही उन लोगों से छुटकारा पा लेना चाहिए जो किसी काम के नहीं हैं और महाराष्ट्र जितना बड़ा है, उतनी जगह को घेरे हुए हैं। 

जर्जर ढाँचागत व्यवस्था

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ढाँचागत सुविधाओं की 357 परियोजनाएँ, हरेक पर 150 करोड़ रुपये या उससे ज़्यादा खर्च होना था, उन पर होने वाला खर्च 3.39 लाख करोड़ रुपए बढ़ चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘1,362 परियोजनाओं पर कुल 17,03,840 करोड़ रुपये खर्च होना था, पर अब उन पर 20,43,024 करोड़ रुपए खर्च हो सकता है।’ 

अधिकतर सड़क और बिजलीघर परियोजनाएँ हैं, इसके लिए बहुत बड़े निवेश की ज़रूरत है। पर निगरानी और ज़िम्मेदारी तय किए बग़ैर इस विशाल निवेश से लाभ नहीं मिलेगा। सरकार को 25 प्रतिशत अतिरिक्त पैसे खर्च करने होंगे।

पर्यावरण

वातावरण को साफ़ करने और नागरिकों को स्वच्छ हवा देने से तेल के लिए विदेशों पर निर्भरता कम हो जाएगी, फ़िलहाल भारत को 84 प्रतिशत तेल आयात करना होता है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान तेल आयात पर 111.9 अरब डॉलर खर्च करना पड़ा था। बिजली से चलने वाली गाड़ियों की ओर मुड़ना ही पड़ेगा। 

जीना आसान करना

दुखी नागरिक पूंजी निर्माण में कम योगदान कर पाता है। आराम से जीने का इनडेक्स 79 चीजों से बना है, जिनमें सामाजिक, आर्थिक, भौतिक और संस्थागत इंडिकेटर हैं। घर, पानी सप्लाई, साफ़ सफ़ाई जैसी चीजों को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। अर्थव्यवस्था और रोज़गार को 5 प्रतिशत वजन दिया गया है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह न्याय, सबको समान अवसर, निडर होकर रहने, साफ़ पानी, साफ़ वातावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा की अच्छी सुविधाएँ मुहैया कराए। देश के ज़्यादातर गाँवों में पीने का साफ़ पानी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं हैं। इससे मृत्यु दर भी ज़्यादा है। कई हवाई अड्डे, हवाई जहाज़ होने के बावजूद 70 प्रतिशत लोगों को भरोसेमंद सार्वजनिक परिवहन  व्यवस्था नहीं मिल रही है।

प्रौद्योगिक-श्रमिक संघर्ष

अधिक प्रौद्योगिकी ने नौकरियाँ कम कर दी हैं। इसका असर 10 प्रतिशत युवाओं पर पड़ा है। पाँच अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा श्रम-आधारित परियोजनाओं की होनी चाहिए। मोदी को 2019 में सबका साथ मिला और वे इसके हक़दार भी हैं। उनका नया आर्थिक सपना सचमुच सबका विकास करे ताकि सबके द्वारा बनाए गए केक में सबको हिस्सा मिले। 

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