म्यांमार: गोलियाँ बरसाती पुलिस से नन की गुहार- ...मेरी जान ले लो
म्यांमार में तख्तापलट हो गया है, दमन चक्र चल रहा है, प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसाई जा रही हैं, और इस बीच एक तसवीर म्यांमार की पूरी कहानी कहती जान पड़ती है। एक नन घुटनों पर झुके हाथ फैलाए बीच सड़क पर हैं। सामने हथियारों से लैस पुलिस है। नन के पीछे लोकतंत्र के समर्थक प्रदर्शनकारी। वह बंदूकें ताने हुए सैनिकों से कहती हैं कि 'बच्चों को छोड़ दें और बदले में मेरी जान ले लें।'
उस नन की दिलेरी ने लोगों के दिल को जीत लिया। यह तसवीर वायरल हो गई। बौद्धों की बहुलता वाले देश में एक कैथोलिक नन की यह तसवीर झकझोरती है। नन का नम ऐन रोज नू त्वांग है। वह सफेद रोब और काले हैबिट में हाथ फैलाये बैठ गईं। न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी से मंगलवार को उन्होंने कहा, 'मैं घुटनों पर झुक गई... उनसे प्रार्थना की कि वे बच्चों को गोली नहीं मारें और उनका उत्पीड़न नहीं करें। इसके बदले वे मुझे गोली मार दें, मेरी हत्या कर दें।'
सिस्टर ऐन रोज के शब्द म्यांमार में दहशत की स्थिति को बयां करते हैं। जब से लोकतंत्र समर्थक सड़कों पर उतरे हैं तब से वहाँ ऐसी ही बेरहम बल का प्रयोग किया जा रहा है। बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं। इसकी शुरुआत एक फ़रवरी को तब हुई जब म्यांमार में फिर से सैन्य तख्तापलट हो गया। देश की नेता आंग सान सू ची और सत्ताधारी पार्टी के दूसरे नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। तब सेना ने कहा कि उसने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया है और आपातकाल लगा दिया है। कई दिनों से सरकार और शक्तिशाली सेना के बीच तनाव चला आ रहा है। सेना हाल में हुए चुनावों में धांधली का आरोप लगा रही है और इसके बाद से ही तनाव नये स्तर तक बढ़ गया था।
जब से सैन्य तख्तापलट हुआ है तब से प्रदर्शनकारी लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और सेना उनके ख़िलाफ़ आँसू गैस, पानी की बौछारें, रबर बुलेट और बंदूकों की फायरिंग का भी इस्तेमाल कर रही है।
मायईत्कयीना में भी सोमवार को लोगों ने प्रदर्शन शुरू किया तो पुलिस प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रही थी। इसी समय सिस्टर ऐन रोज घुटनों पर झुककर उनसे वापस जाने की गुहार लगाती हुई दिखती हैं। उसी दौरान पुलिस प्रदर्शनकारियों पर फ़ायरिंग कर रही थी।
ऐन रोज ने कहा, 'पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पीछा कर रही थी और मैं बच्चों के लिए चिंतित थी।' क्षण भर बाद ही वह पुलिस से संयम बरतने की भीख मांग रही थीं, पुलिस ने उनके पीछे प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी थी।
उन्होंने कहा, 'बच्चे घबरा गए और दौड़कर सामने आए... मैं कुछ नहीं कर सकी लेकिन मैं भगवान से बच्चों को बचाने और उनकी मदद करने के लिए प्रार्थना कर रही थी।'
'द गार्डियन' की रिपोर्ट के अनुसार रोज ने पहले देखा कि एक आदमी सिर में गोली लगने से उनके सामने ही गिर गया - फिर उन्हें महसूस हुआ कि आँसू गैस के गोले बरसने लगे। उन्होंने कहा, 'मुझे लगा जैसे दुनिया तबाह हो गई। मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि मैं उनसे भीख माँग रही थी।'
सोमवार को सिस्टर ऐन रोज की सुरक्षा बलों के साथ पहली बार आमना-सामना नहीं हुआ था। 28 फ़रवरी को उन्होंने वैसी ही दया की भीख मांगी थी। वह धीरे-धीरे पुलिस बल की ओर बढ़ी थीं, अपने घुटनों पर बैठी थीं और उन्हें रुकने के लिए विनती की थी।
उन्होंने कहा, 'मैंने ख़ुद को 28 फ़रवरी को ही पहले ही मृत समझ लिया है।' उन्होंने कहा कि उसी दिन से उन्होंने सशस्त्र पुलिस के सामने खड़े होने का फ़ैसला किया।
उन्होंने कहा, 'मैं कुछ भी किए बिना सिर्फ़ चुपचाप खड़ा नहीं रह सकती या देखती नहीं रह सकती हूँ। वह भी मेरी आँखों से सामने यह सब देखते हुए जबकि म्यांमार कराह रहा है।'
एक स्थानीय बचाव दल ने एएफ़पी से पुष्टि की कि सोमवार की झड़प के दौरान दो लोगों की मौक़े पर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। म्यांमार में अब तक क़रीब 50 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है।
बता दें कि तख्तापलट के साथ ही आंग सान सू ची और सत्ताधारी पार्टी के दूसरे नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित आंग सान सू ची 2015 में ज़बर्दस्त जीत के बाद ही सत्ता में आई थीं। इससे पहले उन्हें घर में दशकों तक नज़रबंद रखा गया। वह लोकतंत्र की लड़ाई लड़ती रहीं और इसी वजह से वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहीं। उन्हें नागरिकों के अधिकार की पैरवी करने वाली नेता के तौर पर जाना जाता रहा है। हालाँकि हाल में रोहिंग्या मामले में उनकी तीखी आलोचना की गई है।
म्यांमार के लिए फौजी हस्तक्षेप और दमन कोई नई बात नहीं है। बीसवीं सदी के साठ के दशक से ही बर्मी फौजी शासकों को झेल रहे हैं और उनसे संघर्ष भी कर रहे हैं।
1948 में आज़ाद हुए म्यांमार में दस साल बाद ही फौजी हस्तक्षेप हुआ, लेकिन अच्छी बात यह रही कि वह दो वर्षों बाद समाप्त भी हो गया। 1960 में हुए चुनाव के बाद नागरिक सरकार फिर से बन गई।
म्यामांर का दुर्भाग्य 1962 में शुरू हुआ जब सैन्य तख्ता पलट के ज़रिए ने विन ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और फिर यह फौजी तानाशाह 26 वर्षों तक देश को अपने बूटों तले कुचलता रहा। 1988 में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन शुरू हुआ जिसके बाद से विन को सत्ता से हटना पड़ा। एक परिषद का गठन करके सेना ने 1990 में इस उम्मीद से चुनाव करवाए कि जीत उसकी होगी, लेकिन उल्टा हो गया। आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की शानदार जीत हुई। सेना ने उसे सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया और अगले 22 साल तक वह काबिज़ रही।