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म्यांमार बॉर्डर पर बाड़ः क्या अपना एक और फैसला पलट रही है मोदी सरकार?

म्यांमार बॉर्डर पर बाड़ः क्या अपना एक और फैसला पलट रही है मोदी सरकार?

केंद्रीय गृह मेंत्री अमित शाह ने म्यांमार बॉर्डर पर बाड़ लगाने और मुफ्त आवाजाही रोकने की घोषणा की है। यह व्यवस्था मणिपुर में मैतेई-कुकी चिन आदिवासियों के बीच जारी संघर्ष को रोकने के लिए की गई है। लेकिन क्या इससे मणिपुर में शांति लौट आएगी। क्या मणिपुर सरकार की कमजोरियों को यूं ही नजरन्दाज किया जाता रहेगा। जानिएः

अशांत मणिपुर में पिछले एक हफ्ते से हिंसा की ताजा घटनाएं हो रही हैं। भाजपा शासित बीरेन सिंह की सरकार इसके लिए म्यांमार सीमा से आने वाले घुसपैठियों को जिम्मेदार बता रही है। उसने केंद्र सरकार से फौरन कदम उठाने को कहा। अमित शाह ने असम पुलिस कमांडो की पासिंग आउट परेड में शनिवार को कहा, "म्यांमार के साथ भारत की सीमा को बांग्लादेश के साथ सीमा की तरह संरक्षित किया जाएगा।" यानी भारत में मुक्त आवाजाही को प्रतिबंधित करने के लिए भारत म्यांमार से लगी सीमा पर बाड़ लगाएगा। यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब बड़ी संख्या में म्यांमार के सैनिक जातीय संघर्षों से बचने के लिए भारत की ओर भाग रहे हैं।

 - Satya Hindi

भारत म्यांमार बॉर्डर पर आखिर मुक्त आवाजाही क्या है और इस पर अचानक सवाल क्यों उठ रहे हैं कि वहां बाड़ लगने से समस्या खत्म हो जाएगी। भारत और म्यांमार के बीच की सीमा चार राज्यों मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 1,643 किमी तक फैली है। मुक्त आवाजाही व्यवस्था (फ्री मूवमेंट रिजीम- एफएमआर) दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है जो दोनों तरफ सीमा पर रहने वाली जनजातियों को बिना वीजा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक यात्रा करने की अनुमति देती है।

कौन लाया था एफएमआर

एफएमआर को 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में उस समय लागू किया गया था जब भारत और म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध बढ़ रहे थे। दरअसल, एफएमआर को 2017 में ही लागू किया जाना था, लेकिन अगस्त में उभरे रोहिंग्या शरणार्थी संकट के कारण इसे टाल दिया गया था। यानी मुक्त आवाजाही व्यवस्था मोदी सरकार ने खुद लागू की थी और अब उसे बंद करने की बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को असम में की है। नॉर्थ ईस्ट राज्यों को लेकर अक्सर महत्वपूर्ण घोषणाएं असम से ही की जाती हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा नॉर्थ ईस्ट की सलाह से मोदी सरकार नॉर्थ ईस्ट को लेकर फैसले लेती है।

भारत और म्यांमार के बीच की सीमा का सीमांकन 1826 में अंग्रेजों द्वारा क्षेत्र में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना किया गया था। सीमा ने प्रभावी ढंग से एक ही जातीयता और संस्कृति के लोगों को उनकी सहमति के बिना दो देशों में विभाजित कर दिया। वर्तमान आईएमबी यानी इंडिया म्यांमार बॉर्डर अंग्रेजों द्वारा खींची गई रेखा को दर्शाता है। लेकिन दोनों ओर की संस्कृतियां, धर्म एक जैसे हैं, उन्होंने इस सीमा को कभी माना ही नहीं।

इस क्षेत्र के लोगों के बीच सीमा पार मजबूत जातीय और पारिवारिक संबंध हैं। मणिपुर के मोरेह क्षेत्र में ऐसे गांव हैं जहां कुछ घर म्यांमार में हैं। नागालैंड के मोन जिले में, सीमा वास्तव में लोंगवा गांव के मुखिया के घर से होकर गुजरती है, जिससे उनका घर दो हिस्सों में बंट जाता है।

हालांकि स्थानीय लोगों के लिए फायदेमंद और भारत-म्यांमार संबंधों को बेहतर बनाने में सहायक, मुक्त आवाजाही व्यवस्था ने अवैध माइग्रेशन, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी को अनजाने में मदद मिलने की बातें सामने आईं। भारत-म्यांमार सीमा जंगली और ऊबड़-खाबड़ इलाकों से होकर गुजरती है, लगभग पूरी तरह से बाड़ रहित है और निगरानी करना मुश्किल है। मणिपुर में सीमा के 6 किमी से भी कम हिस्से में बाड़ लगी हुई है।

1 फरवरी, 2021 को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से, सत्तारूढ़ जुंटा ने कुकी-चिन लोगों के खिलाफ उत्पीड़न का अभियान शुरू कर दिया है। इसने बड़ी संख्या में म्यांमार के आदिवासियों को देश की पश्चिमी सीमा पार कर भारत, विशेषकर मणिपुर और मिजोरम में आने को मजबूर किया है। मिजोरम, जहां आबादी के एक बड़े वर्ग के सीमा पार के लोगों के साथ घनिष्ठ जातीय और सांस्कृतिक संबंध हैं, ने 40,000 से अधिक शरणार्थियों के लिए शिविर स्थापित किए।

मणिपुर सरकार के सूत्रों का कहना है कि पिछले तीन महीनों में म्यांमार सेना के लगभग 600 सैनिक भारत में घुस आए हैं। सरकारी सूत्रों ने कहा कि पश्चिमी म्यांमार राज्य रखाइन में एक जातीय सशस्त्र समूह अराकन आर्मी (एए) के उग्रवादियों द्वारा उनके शिविरों पर कब्जा करने के बाद उन्होंने मिजोरम के लांग्टलाई जिले में शरण ली। 

पिछले साल मणिपुर में हिंसा भड़कने से एक दिन पहले 2 मई को मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इम्फाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था: “म्यांमार से मणिपुर में अवैध इमीग्रेशन इस हद तक है कि हमने अब तक उस देश के 410 लोगों को हिरासत में लिया है जो वहां रह रहे हैं।” उनमें से अतिरिक्त 2,400 लोग सीमावर्ती क्षेत्रों के हिरासत घरों में शरण मांग रहे हैं...जो म्यांमार से भाग गए हैं...।'' उन्होंने आगे कहा, "हमारे पास यह मानने के कारण हैं कि मणिपुर में कई और म्यांमारवासी अवैध रूप से रह रहे हैं... राष्ट्र और राज्य के व्यापक हित में और सुरक्षा उद्देश्यों के लिए, मैं उन सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से अपील करता हूं जहां घुसपैठ हो सकती है, सहयोग करें। ताकि हम ऐसे अवैध अप्रवासियों का विवरण नोट कर सकें।" यह बात कौन कह रहा था- राज्य का मुख्यमंत्री जो मैतेई समाज से आता है। मणिपुर में अगले दिन से ही मैतई-कुकी चिन संघर्ष शुरू हो गया।

तो, म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने, मुक्त आवाजाही रोकने से समस्या घटेगी या बढ़ेगी यह तो समय तय करेगा लेकिन एक ही संस्कृति और मजहब के लोगों को कैसे दूर किया जा सकता है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और भारत के हिस्से वाले कश्मीर के बीच भी यही स्थिति है। वहां परिवार, घर, शादियों को भारत-पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति ने बांट रखा है लेकिन वहां भी परमिट लेकर लोग रिश्तेदारों से मिलने उस पार जाते हैं। यह सीमांकन भी अंग्रेजों की देन था। लेकिन इससे जो समस्याएं अब पैदा हो रही हैं वो भयावह हैं।

भारत म्यांमार के बीच बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही खत्म होने के बाद भी अगर मैतेई-कुकी संघर्ष मणिपुर में खत्म न हुआ तो क्या होगा। क्योंकि मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में इंफाल में रह रहे मैतेई बसना चाहते हैं, जिसका वहां के आदिवासी विरोध कर रहे हैं। अब कुकी लोगों को म्यांमार के अवैध अप्रवासी, ड्रग स्मगलर मान लिया जाए और बाड़ भी लगा दी जाए तो भी मणिपुर सुलगता रहे, तब सरकार क्या करेगी। मणिपुर में प्रभावी नियंत्रण जब तक नहीं होगा, समस्याओं को एक दूसरे से जोड़ कर मामले को टाला जाता रहेगा। जरूरत एन बीरेन सिंह सरकार को चुस्त दुरुस्त बनाने की है।

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