रमज़ान में मतदान पर एतराज़ इसलाम की मूल भावना के ख़िलाफ़
आगामी लोकसभा चुनाव के मतदान के सात चरणों में से तीन चरण रमज़ान में पड़ रहे हैं। इस पर सियासी घमासान मचा हुआ है। मुसलिम वोटों पर अपनी राजनीति चमकाने वाले राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक रमज़ान में चुनाव कराए जाने का विरोध कर रहे हैं। ख़ुद को धर्म की राजनीति से अलग बताने वाली आम आदमी पार्टी (आप) भी इस मुद्दे पर एतराज़ करने में बाक़ी पार्टियों से होड़ कर रही है।
एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी को छोड़कर बाक़ी सभी दलों के मुसलिम नेताओं ने रमज़ान में मतदान कराए जाने के चुनाव आयोग के फ़ैसले पर एतराज़ जताया है। अकेले ओवैसी ऐसे नेता हैं जिन्होंने कहा है कि रमज़ान में मतदान कराए जाने से मुसलिम समुदाय के वोटिंग पैटर्न पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी ने कहा है कि रमज़ान में मुसलिम समुदाय ज़्यादा मतदान करेगा क्योंकि रमज़ान में मुसलमानों के ईमान का जज़्बा ऊंचा रहता है।
वोट हासिल करने की कोशिश
एसपी, बीएसपी, आरजेडी और तृणमूल कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया है। माना जा रहा है कि इन दलों ने मुसलमानों को ख़ुश करके उनके वोट हासिल करने के लिए ऐसा किया है। उनका काम राजनीति करना है ही और वे इस मुद्दे पर भी राजनीति कर रहे हैं तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। हैरानी की बात यह है कि कुछ मुसलिम संगठन भी रमज़ान में मतदान कराए जाने को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साध रहे हैं।चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होने के बाद लखनऊ के जाने-माने मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगीमहली ने इस पर ऐतराज़ जताया। बाद में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए रमज़ान में पड़ने वाली मतदान की तारीख़ें बदलने की माँग की है।
रमज़ान में मतदान कराए जाने को लेकर मुसलिम संगठनों का एतराज़ किसी भी तरह से उचित नहीं है। बल्कि यह एतराज़ इसलाम की मूल भावना के ही ख़िलाफ़ है।
रमज़ान में ही हुई थी जंग-ए-बदर
इसलामी तारीख़ पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इसलाम की पहली लड़ाई जंग-ए-बदर रमज़ान में ही हुई थी। पैग़ंबर-ए-इसलाम हजरत मोहम्मद के मक्का से मदीना हिजरत करने के 2 साल बाद रोज़े फर्ज़ हुए थे। उसी साल जंग-ए-बदर हुई थी। यह लड़ाई रमज़ान की 17 तारीख़ को मदीने से 70 मील यानी 110 किलोमीटर दूर बदर के मैदान में लड़ी गई थी। इस लड़ाई में मुसलमानों ने मक्का से मुसलमानों को नेस्तनाबूद करने के लिए भेजी गई क़ुरैश की फ़ौज़ को एक ही दिन में बैरंग लौटा दिया था। इसलाम के बड़े दुश्मन इस पहली ही जंग में हलाक़ हो गए थे।
इसी तरह आठवीं हिजरी में पैग़ंबरे इसलाम हज़रत मोहम्मद काबा फ़तह करने के लिए मदीना से 300 मील यानी क़रीब 450 किलोमीटर दूर मक्का पहुँच गए थे। रमज़ान में 10 से 20 तारीख के बीच मोहम्मद साहब के नेतृत्व में मुसलमानों ने काबे पर फ़तह यानी जीत हासिल की थी। दुनिया की तारीख़ बदल देने वाली यह जीत बग़ैर किसी ख़ून-ख़राबे के हुई थी। काबे पर मुसलमानोंं की फ़तह के बाद दुनिया भर में इसलाम बहुत तेज़ी से फैला। इन उदाहरणों से साफ़ है कि इसलामी तारीख़ की दो फ़ैसला कुन यानी निर्णायक जंग रमज़ान के महीने में ही लड़ी गईंं।
नबी ने रमज़ान के महीने में 110 और साढ़े 450 किलोमीटर दूर जाकर जंग लड़ी। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ख़ुद को नबी का वारिस बताने वाले उलेमाओं को यह चिंता सता रही है कि आख़िर रमज़ान में मुसलमान मतदान केंद्रों तक कैसे जाएँगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे मुसलमानों को किस तरफ़ ले जा रहे हैं।
तोड़ रहे मुसलमानों का हौसला
एक तरफ़ असदउद्दीन ओवैसी रमज़ान में मुसलमानों में ईमान का जज़्बा ऊंचा रहने की बात कहकर मुसलिम समुदाय का हौसला बढ़ा रहे हैं। वहीं, कुछ मुसलिम संगठन रमज़ान में मतदान पर स्यापा पीटकर मुसलमानों का हौसला तोड़ रहे हैं। जबकि इनकी ज़िम्मेदारी मुसलिम समुदाय के बीच इस बात का प्रचार करने की है कि जैसे रमज़ान में रोज़े रखना फर्ज़ है ठीक उसी तरह लोकतंत्र में मतदान करना भी फ़र्ज है।
मुसलिम समुदाय के कुछ प्रमुख लोगों ने रमज़ान के दौरान वोट डालने को मुद्दा बनाए जाने को लेकर नाराज़गी जताई है। मशहूर गीतकार और पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अख़्तर ने ट्वीट किया है कि रमज़ान में वोटिंग को लेकर हो रही बातें बेहूदा हैं और चुनाव आयोग को इस पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए।
I find this whole discussion about Ramzan and elections totally disgusting . This is the kind of distorted and convoluted version of secularism that to me is repulsive , revolting and intolerable . EC shouldn’t consider it for a second .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) March 11, 2019
उर्दू साप्ताहिक ‘नयी दुनिया’ के सम्पादक और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी ने ट्वीट किया कि मुसलमानों को रमज़ान के दौरान रोज़े रखते हुए वोटिंग ज़रूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें ईद के त्योहार से पहले भारत के लोकतंत्र का उत्सव मनाना चाहिए।
Muslims should take a pledge to vote in Ramzan, while fasting. Go to polling booths after Fajir namaz, be the first to vote. Bring your women, old people to vote early before it gets really hot. Celebrate India & it’s wonderful Democracy, before you celebrate Eid.
— shahid siddiqui (@shahid_siddiqui) March 12, 2019
पूर्व पत्रकार और लेखिका इरीना अकबर ने ट्वीट किया कि रमज़ान आत्मा और शरीर से बुराइयों को ख़त्म करने का महीना है। भारत से भी नफ़रत की राजनीति को ख़त्म करने की ज़रूरत है। इरीना ने अपील की कि रोज़ा रखें और वोट ज़रूर डालें।
Ramzan is the month of detoxification of body and soul. As elections are being held in the blessed month of Ramzan, let’s use the opportunity to detoxify the political system of India too. Fast & cast your vote. Detoxify & purify India from the politics of hate. Insha Allah!
— Irena Akbar (@irenaakbar) March 11, 2019
सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हिलाल अहमद ने ट्वीट किया कि 15 अगस्त 1947 को रमज़ान का अंतिम शुक्रवार था और उसी दिन हमारा देश आज़ाद हुआ था।
Just a small information: 15 August 1947 was the last Friday of the month of Ramzan. Muslims of old Delhi not merely celebrated the event but also set up a unique tradition of "kite flying" as most of the USTAD PATAGBAAZ were Delhi'Muslims.
— Hilal Ahmed (@Ahmed1Hilal) March 11, 2019
यह बात सही है कि पिछले साल तीन लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव रमज़ान में ही हुए थे और तब मुसलिम बहुल इलाक़ों से कम मतदान की ख़बर भी आई थी। उत्तर प्रदेश की कैराना सीट पर महज 54% वोट पड़े थे जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 73% वोट पड़े थे, इसी तरह उत्तर प्रदेश की ही नूरपुर सीट पर भी उपचुनाव में 61% वोट पड़े थे जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में यहाँ 66.82% मतदान हुआ था। मुसलिम बहुल क्षेत्रों में कम वोटिंग के बावजूद बीजेपी दोनों ही सीटें हार गई थी। ग़ौरतलब है कि उपचुनाव के दौरान मतदान का प्रतिशत कम ही रहता है।
रमज़ान मुसलमानों का त्योहार है और चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्यौहार है। मुसलमान हमेशा इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। भले ही चुनाव रमज़ान में ही क्यों न हों।
अगर कुछ मुसलमानों को ऐसा लगता है कि रोजे की हालत में वे मतदान केंद्र तक नहीं जा पाएँगे या वोट डालने के लिए लंबे समय तक लंबी लाइन में खड़े नहीं रह पाएँगे उस दिन वह रोज़ा नहीं रखें। लेकिन वोट डालने जरूर जाएँ।
ग़ौरतलब है कि जंग-ए-बदर और काबा फ़तह करने के लिए हुई जंग के दौरान पैग़ंबर-ए-इसलाम हज़रत मोहम्मद ने अपने सभी साथियों को रोज़ा तोड़ने का हुक्म दिया था। इसका ज़िक्र हदीसों में मिलता है। तिरमिज़ी में हदीस नंबर 714 के मुताबिक़ हजरत उमर बिन खत्ताब कहते हैं, 'हम दो बार रसूल अल्लाह के साथ रमज़ान में जंग पर गए। जंग-ए-बदर में और फतह-ए-काबा के वक़्त और दोनों ही बार हमने रोज़ा तोड़ दिया था।'
मुसलिम शरीफ़ की हदीस नंबर 1120 के मुताबिक़, अबू सईद ख़ुदरी कहते हैं कि रमज़ान में रोज़े की हालत में हम जंग-ए-बदर और फतह-ए-काबा के लिए जंग पर गए थे। पैग़ंबर-ए-इसलाम हज़रत मोहम्मद (सअव) ने दोनों ही बार यह कहकर रोज़ा तोड़ने का हुक्म दिया था कि रोज़ा तोड़ना तुम्हें दुश्मन से लड़ने के लिए ज्यादा ताक़तवर बना देगा। मुसलमान इस रोज़े को रमज़ान के बाद कभी भी पूरा कर सकते हैं। क़ुरआन भी इसकी इजाज़त देता है।
पुराने ज़माने में सत्ता के लिए आमने-सामने की लड़ाई हुआ करती थी। ज़्यादा शक्तिशाली लोग कम शक्तिशाली लोगों को हराकर सत्ता पर कब्जा करते थे। लोकतंत्र में सत्ता के लिए जंग वोटों से होती है। मक़सद तो दोनों का एक ही है।
अगर मुसलमानों को यह लगता है कि चुनाव आयोग ने बीजेपी को फायदा पहुँचाने की नीयत से रमज़ान में मतदान रखा है तो तो इस पर हाय-तौबा मचाने के बजाय उन्हें इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए और यह भ्रम तोड़ देना चाहिए कि रमज़ान की वजह से मुसलमान कम वोट डालते हैं।
मुसलिम वोटों पर पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने वाले राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रमज़ान के बावजूद मुसलिम बहुल इलाक़ों में मत प्रतिशत पहले के मुक़ाबले ज़्यादा हो।
मुसलमानों के धार्मिक संगठनों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे समाज के बीच इस बात की जानकारी को आम करें कि रमज़ान मुसलमानों को दूसरे काम करने से नहीं रोकता बल्कि अपने रोज़मर्रा के ज़रूरी काम के साथ ही रोज़े रखना बेहतर होता है।
रमज़ान का मक़सद लोगों को मुत्तक़ी यानि ख़ुद को ग़लत कामोंं से परहेज़ करने वाला बनाना है। देश प्रेम हर मुसलमान के तक़वे का हिस्सा है। तक़वे को मजबूत करने के लिए ही रमज़ान की व्यवस्था है। ऐसे में मुसलमान रमज़ान में ख़ुद को मतदान करने से कैसे रोक सकते हैं। सांसद असदुद्दीन ओवैसी के कहे के मुताबिक़, रमज़ान में मुसलमानों में ईमान का जज़्बा ऊंचा रहना चाहिए। मतलब यह कि रमज़ान में मुसलमान, बुलंद रखें ईमान, ज्यादा करें मतदान।