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क्या केजरीवाल को मुसलिम वोट खिसकने का डर है?

क्या केजरीवाल को मुसलिम वोट खिसकने का डर है?

केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के इमामों और मुअज़्ज़िनों का वेतन बढ़ा दिया है। इस फ़ैसले को मुसलिम तुष्टिकरण की कोशिश माना जा रहा है।

आम तौर पर धार्मिक मुद्दों से दूर रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनावों में मुसलिम वोट हासिल करने के लालच में दिल्ली की मसजिदों के इमामों की शरण में पहुँच गए हैं। इमामोंं के साथ हुई एक अहम बैठक में अरविंद केजरीवाल ने एलान किया कि वह पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को केंद्र की सत्ता से बेदख़ल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैंं। केजरीवाल ने यह भी एलान किया कि प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के अलावा किसी का भी समर्थन कर सकते हैं। 

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इमामों, मुअज़्ज़िनों का वेतन बढ़ाया

दिल्ली की सभी मसजिदों के इमामों की ख़ास तौर तौर पर बुलाई गई इस बैठक में इमामों का वेतन बढ़ाने का एलान किया गया। वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाली 185 मसजिदों के इमामों को अब 18,000 रुपये प्रति माह वेतन मिलेगा। अभी तक उनका वेतन 10,000 रुपये प्रतिमाह था। मसजिदों के मुअज़्ज़िनों को अब 9,000 रुपये प्रतिमाह के बजाय 16,000 रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा। 

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दिल्ली सरकार ने वक़्फ़ बोर्ड के तहत नहीं आने वाली मसजिदों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को भी वक़्फ़ बोर्ड के खाते से वेतन देने का फ़ैसला किया है। ऐसी मसजिदों के इमामों को 14,000 रुपये और मुअज़्ज़िन को 12,000 रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाएगा। पिछले 5 साल से इमाम वेतन बढ़ाने की माँग कर रहे थे। लेकिन वक़्फ़ बोर्ड की आमदनी कम होने की वजह से उनका वेतन बढ़ाने में दिक्क़त आ रही थी। 

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इमामों और मुअज़्ज़िनों का वेतन बढ़ा कर केजरीवाल ने मुसलमानों को खुश करने की कोशिश की है। केजरीवाल के इस फ़ैसले को मुसलिम तुष्टिकरण की कोशिश माना जा रहा है।

मुसलमानों के वोट 'आप' को दिलाएँ 

इस अहम बैठक में केजरीवाल ने कहा कि लोकसभा चुनावों में दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सीधा मुक़ाबला होगा। लिहाज़ा, बीजेपी को हराने के लिए इमामों को मुसलमानों के वोट उनकी पार्टी को दिलाने में मदद करनी चाहिए। यह बैठक दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से आयोजित की गई थी और दिल्ली की सभी मसजिदों के इमामों और मुअज़्ज़िनों को इसमें बुलाया गया था। 

दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन और आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने इमामों से अपील की कि वे मुसलमानों के वोट दिलाने में पार्टी की खुले दिल से मदद करें। 

आप विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने कहा कि सभी इमाम अपने-अपने इलाक़ों में मुसलमानों को इस बात पर राज़ी करें कि वे लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट दें।

केंद्र में देंगे कांग्रेस को समर्थन

आप विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने कहा कि कांग्रेस की तरफ़ से प्रचार किया जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनावों में केंद्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला, जबकि सच्चाई यह है कि दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सीधा मुक़ाबला है। उन्होंने कहा कि मुसलमान आम आदमी पार्टी को वोट दें और पार्टी के जो भी सांसद जीतेंगे, वे केंद्र में सरकार बनाने में कांग्रेस को समर्थन देंगे। 

 - Satya Hindi

कार्यक्रम में मौजूद अरविंद केजरीवाल, आप विधायक अमानतुल्लाह ख़ान

वोट हासिल करने की जुगत

केजरीवाल और अमानतुल्लाह के इस तरह इमामों से मुसलमानों के वोट पार्टी के लिए डलवाने की अपील करना राजनीति में धर्म का सीधा-सीधा इस्तेमाल है। इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि केजरीवाल को लोकसभा चुनावों में मुसलिम वोटों के खिसकने का डर है। उन्हें यह डर है कि अगर मुसलमानों को यह एहसास हो गया कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर दे रही है तो दिल्ली के मुसलमान भी कांग्रेस की तरफ़ जा सकते हैं। लिहाज़ा, केजरीवाल इमामोंं का वेतन बढ़ा कर उनके ज़रिए मुसलमानों के वोट हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। 

मुसलिम समाज के वोट हासिल करने के लिए इमामों का वेतन बढ़ाना तो ठीक है, लेकिन इसके बदले उनसे मुसलमानों के वोट हासिल करने की खुली अपील करना राजनीतिक पर्यवेक्षकों को नहीं पच रहा है।

केजरीवाल के रुख़ पर हैरत

केजरीवाल और उनकी पार्टी के इस रुख़ पर हैरत हो रही है कि यह वही केजरीवाल हैं, जिन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जामा मसजिद के इमाम सैयद अहमद बुख़ारी की तरफ़ से मुसलमानों से उनकी पार्टी को वोट देने की अपील का कड़ा विरोध किया था। हालाँकि कहा जाता है कि उस वक़्त इमाम बुखारी की तरफ से यह अपील बीजेपी के इशारे पर की गई थी ताकि चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए बीजेपी को फायदा पहुँचाया जा सके। केजरीवाल को इसकी भनक लग गई थी। उन्होंने कड़ा विरोध करके यह चाल नाकाम कर दी थी। 

साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले बरेली के मौलाना तौक़ीर रज़ा से हुई केजरीवाल की मुलाकात पर भी सवाल उठे थे। बाद में केजरीवाल ने उनसे कन्नी काट ली थी। केजरीवाल और उनकी पार्टी के तमाम नेता कहते रहे हैं कि वे धर्म और जाति की राजनीति नहीं करते। इमामों की इस बैठक में जिस तरह सीधे-सीधे मुसलमानों से वोट देने की अपील की गई, उसे आम आदमी पार्टी के राजनीतिक चरित्र के ख़िलाफ़ माना जा रहा है।

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ग़ौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से पहले मुसलमानों का एकतरफ़ा वोट कांग्रेस के पक्ष में पड़ता रहा है। लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटें जीती थीं और 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सातों सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी। उसके बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती थी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। तब यह कहा गया था कि मुसलिम वोट कांग्रेस से खिसक चुका है। 

हाल ही में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद देश भर में मुसलमानों का रुझान कांग्रेस की तरफ़ देखा जा रहा है, ऐसे में केजरीवाल का चिंता करना लाज़िमी है। इसलिए वह मुसलिम वोट अपने पाले में रखने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

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