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महाराष्ट्र : मुसलमानों की आबादी 12% तो कोरोना से मरने वाले 44% क्यों?

महाराष्ट्र : मुसलमानों की आबादी 12% तो कोरोना से मरने वाले 44% क्यों?

महाराष्ट्र में मुसलमानों की जनसंख्या 12 प्रतिशत है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली मौतों में उनकी हिस्सेदारी 44 प्रतिशत है।

महाराष्ट्र में मुसलमानों की जनसंख्या 12 प्रतिशत है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण होने वाली मौतों में उनकी हिस्सेदारी 44 प्रतिशत है। यानी, मुसलमानों की जो आबादी है, उस अनुपात से लगभग तीन गुणा अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 

इंडियन एक्सप्रेस के आँकड़ों के मुताबिक़, महाराष्ट्र में बुधवार तक 548 लोगों की मौत कोरोना से हुई, जिसमें 239 मुसलमान हैं। 

जमात से संपर्क

महाराष्ट्र में कोरोना से पहली मौत 17 मार्च को हुई। उस समय से लेकर 15 अप्रैल तक राज्य में कोरोना से 187 लोगों की जान चली गई, इसमें 89 मुसलमान थे। इसी तरह 15 अप्रैल से 3 मई के बीच 361 लोगों की मृत्यु हो गई, जिसमें 150 मुसलमान थे। 

महाराष्ट्र में कोरोना से संक्रमित लोगों में सिर्फ 69 लोगों का संपर्क तबलीग़ी जमात से पाया गया है। कोरोना से होने वाली मौतों में सिर्फ़ एक आदमी का संपर्क जमात से था। वह फिलिपीन्स का नागरिक था।

दूसरी ओर 15 अप्रैल तक पूरे देश में कोरोना संक्रमित लोगों में से 4,291 लोग ऐसे हैं, जिनके तार दिल्ली स्थित तबलीग़ी मुख्यालय मरकज़ से जुड़े हुए पाए गए। 

सरकार की चूक

राज्य के मुख्य महामारी विशेषज्ञ प्रदीप अवाटे ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'खाड़ी देशों से लौटे बहुत लोगों की हवाई अड्डे पर ही जाँच नहीं की जा सकी। कई लोगों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखे, पर वे कोरोना से प्रभावित थे, उनमें से कई ने दूसरे लोगों को संक्रमित किया।'

केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार, 16 मार्च तक विदेशों से आए लोगों को क्वरेन्टाइन नहीं किया गया। तब तक चीन में कोरोना संक्रमण फैलने की बात हुए दो महीने हो चुके थे।

उसके बाद ही संयुक्त अरब अमीरात, क़तर, ओमान और क़ुवैत से आए लोगों की स्क्रीनिंग शुरू की गई। उसके बाद ही क्वरेन्टाइन शुरू हुआ। इसके बाद यानी 22 मार्च से ही अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाया गया। 

ग़रीबों पर अधिक क़हर

अवाटे ने यह भी कहा है कि महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण के ज़्यादातर मामले कमज़ोर आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से आ रहे हैं, ग़रीब घरों के लोग हैं। 

झोपड़पट्टियों में कोरोना संक्रमण अधिक तेज़ी से फैला। वहाँ सोशल डिस्टैंसिंग लागू करना मुश्किल है। ग़रीबी के कारण ही इन इलाक़ों में मुसलमानों की बड़ी तादाद है।

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मुंबई के एग्रीपाड़ा और नागपाड़ा में 34 लोगों की मौत हुई है। यह तादाद वर्ली के बाद दूसरे नंबर पर है।

डरे हुए मुसलमान!

बृहन्मुंबई नगर निगम के उपायुक्त प्रशांत गायकवाड़ ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि मुंबई के एक मकान में 26 लोग ऐसे थे, जो हाल फ़िलहाल विदेश से लौटे थे। उस मकान में सिर्फ 1 आदमी को कोरोना हुआ। वहां संक्रमण नहीं फैला। लेकिन चाल में यही संक्रमण अधिक तेज़ी से फैल सकता है। 

दूसरी बात यह है कि तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम और उसके बाद मुसलमान समुदाय के ख़िलाफ़ हुए प्रचार से मुसलमान डरा हुआ है। भिवंडी के विधायक रईस शेख ने कहा,

तबलीग़ी जमात प्रकरण से मुसलमान डरा हुआ है। मुसलमान कोरोना की रिपोर्ट नहीं करता है, लक्षणों के बारे में दूसरों को नहीं बताता है।


रईस शेख, विधायक, भिवंडी

भारत के मुसलमानों की तुलना हम अमेरिका के अश्वेतों और हिस्पैनी मूल के लोगों से कर सकते हैं। नतीजे बताते हैं कि अमेरिका में कुल मरने वालों में अश्वेत लोगों का अनुपात सबसे अधिक है। इसके बाद हिस्पैनी और लैटिन मूल के लोग आते हैं। गोरों की संख्या इनके मुक़ाबले सबसे कम है, जबकि आबादी सबसे अधिक है।

अमेरिका की आबादी में श्वेतों की तादाद कुल 72.4 फ़ीसदी है, जबकि काले 12.6 फ़ीसदी हैं। इसके अलावा हिस्पैनिक और लैटिन अमेरिकी हैं जिनकी तादाद 16.3 फ़ीसदी है। 

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