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कोरोना टीका नहीं लेने का आरोप क्यों लगा रहा है मुसलमानों पर?

कोरोना टीका नहीं लेने का आरोप क्यों लगा रहा है मुसलमानों पर?

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि मुसलमान कोरोना टीका लेने से बच रहे हैं क्योंकि उनके मन में इसे लेकर कई तरह की ग़लत धारणाएँ और डर हैं। 

तमाम मामलों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने और हर मामले में हिन्दू-मुसलिम करने का आरोप जिस बीजेपी पर लगता रहा है, उसके नेता कोरोना के मामले में भी मुसलमानों को निशाने पर ले रहे हैं।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि मुसलमान कोरोना टीका लेने से बच रहे हैं क्योंकि उनके मन में इसे लेकर कई तरह की ग़लत धारणाएँ और डर हैं। 

उन्होंने कहा, 

हमारे देश के मुसलमान फ़िलहाल कोरोना टीका से दूरी बनाए हुए हैं, उनके मन में हिचक, कई तरह की ग़लत धारणाएँ और डर हैं।


त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

उन्होंने ऋषिकेश में विश्व रक्त दाता दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा। उन्होंने इसके साथ ही यह भी कहा कि वे जानबूझ कर मुसलमानों का नाम ले रहे हैं। 

सुपर स्प्रेडर!

उन्होंने कहा कि यदि ये लोग कोरोना टीका नहीं लेंगे तो इससे कोई नहीं बचेगा और लोग सुपर स्प्रेडर बन जाएंगे। उन्होंने इसके साथ ही सबसे कोरोना टीका लने की अपील की। 

रावत ने कहा कि जो लोग कोरोना टीका नहीं ले रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, उनका वेतन रोक लिया जाए या फोन कनेक्शन ब्लॉक कर दिया जाएगा।

मुसलमानों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार

मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस तरह का दुष्प्रचार दूसरी जगहों पर भी चल रहा है। असम के एक लोकप्रिय अख़बार ने पहले पेज पर छपी एक ख़बर में कहा कि मुसलिम-बहुल ज़िलों में कोरोना टीका के प्रति हिचक ज़्यादा है। 

इस ख़बर में कुछ चुनिंदा जगहों को लेकर खबर की गई है और उससे यह साबित करने की कोशिश की गई है कि मुसलमान कोरोना टीका नहीं लगवा रहे हैं।

इस खबर में दक्षिण सलमारा मानकचार ज़िले में 12 जून तक सिर्फ 18,098 लोगों को कोरोना टीका देने की बात कही गई है। यह ज़िले की जनसंख्या का 3.65 प्रतिशत हिस्सा है।

इसी तरह धुबड़ी ज़िले में 6.5 प्रतिशत तो नगाँव में 9.09 प्रतिशत लोगों के टीका लेने की बात कही गई है। 

क्या है सच?

'द वायर'  ने एक ख़बर में कहा है कि जान बूझ कर कुछ जगहों को चुना गया है ताकि इस तरह का दावा किया जा सके। 

'द वायर' के अनुसार, इन ज़िलों में कम टीकाकरण की बात तो कही गई है, पर उसके कारणों पर चर्चा नहीं की गई है, इसके उलट इसके लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

इन ज़िलों में सड़कें नहीं हैं, स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं है, साक्षरता दर कम है, स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता नहीं है और कोरोना टीका को लेकर सरकार की ओर से कोई प्रचार कार्य नहीं है।

दूसरे कारण भी हैं। मसलन, कार्बी ऑगलोंग में पहाड़ियाँ और घने जंगल हैं, जिससे लोगों तक पहुँचना मुश्किल है। 

श्रीनगर में वैक्सीन नहीं

दूसरी ओर 16 मई तक जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में शनिवार को एक भी वैक्सीन नहीं लग पाई। घाटी के 1.4 करोड़ की आबादी वाले 10 ज़िलों में भी सिर्फ़ 504 लोगों को शनिवार को टीके लगाए जा सके। एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। राज्य में पिछले कई दिनों से वैक्सीन की कमी की शिकायतें आ रही हैं। 

श्रीनगर नगर निगम के कॉर्पोरेटर दानिश भट ने ट्वीट किया कि उन्होंने लाल बाज़ार पीएचसी का औचक निरीक्षण किया। उन्होंने लिखा, 'वैक्सीन की कमी के कारण छह दिनों से वहाँ टीकाकरण बंद है।' उन्होंने कहा कि ज़िले के उच्चाधिकारी से बात की तो उन्होंने जल्द ही इसे शुरू करने का आश्वासन दिया है।

 - Satya Hindi

दूसरे केंद्रों पर भी यही स्थिति है। एक रिपोर्ट के अनुसार शनिवार को श्रीनगर ज़िले में एक भी टीका नहीं लगाया जा सका। 'एनडीटीवी' ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से लिखा है कि क्षेत्र में टीके उपलब्ध नहीं हैं और पिछले हफ़्ते से टीके नहीं मिले हैं। 

उन्होंने कहा कि आख़िरी बार टीके एक हफ़्ते पहले शनिवार को आए थे। रिपोर्ट के अनुसार घाटी के दस ज़िलों में शनिवार को सिर्फ़ 504 लोगों को टीका लगाया जा सका।

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