मुसलिम संस्कृत प्रोफ़ेसर: फ़िरोज़ ने छोड़ा बीएचयू कैंपस, कई छात्र समर्थन में
बीएचयू में नियुक्त किए गए संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान कुछ छात्रों के लगातार विरोध के बाद कथित तौर पर बीएचयू कैंपस से चले गये हैं। बताया जा रहा है कि सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए वह अपने घर जयपुर के बगरू लौट गए हैं। हालाँकि कुछ छात्र अब फ़िरोज़ के समर्थन में भी उतर आए हैं। एआईएसए, एनएसयूआई और दूसरे ग़ैर दक्षिणपंथी छात्र संगठनों के छात्रों के समूह ज्वाइंट एक्शन कमिटी ने फ़िरोज़ के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बीएचयू कैंपस में गुरुवार शाम को मार्च भी निकाला। सोशल मीडिया पर भी फ़िरोज़ को ज़बर्दस्त समर्थन मिल रहा है।
बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान यानी एसवीडीवी में संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में फ़िरोज़ की नियुक्ति के बाद से संस्कृत में एक भी कक्षा नहीं ली जा सकी है। उनकी नियुक्ति के बाद 6 नवंबर को जब फ़िरोज़ पहली कक्षा लेने गए तो कुछ छात्रों ने उनके मुसलिम होने के कारण विरोध शुरू कर दिया। उन्होंने वाइस चांसलर के आवास के बाहर प्रदर्शन किया। इनके विरोध के बाद बीएचयू प्रशासन ने साफ़ कर दिया था कि फ़िरोज़ की नियुक्ति पूरी तरह नियमानुसार हुई है और वह इस पद के लिए पूरी तरह योग्य हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय के नियमों व निर्देशों और भारतीय संविधान के ख़िलाफ़ इन छात्रों के प्रदर्शन के बावजूद अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हालाँकि, एक रिपोर्ट यह ज़रूर आई थी कि बीएचयू के वाइस चांसलर ने छात्रों से अपना विरोध-प्रदर्शन वापस लेने का आग्रह किया है।
अंग्रेज़ी अख़बार 'द ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के अनुसार, फ़िरोज़ का समर्थन कर रहे छात्रों के समूह ज्वाइंट एक्शन कमिटी के प्रवक्ता ने इस पर दुख जताया कि फ़िरोज़ को सुरक्षा कारणों से कैंपस को छोड़ना पड़ा है। उन्होंने इसका भी ज़िक्र किया कि इस नियुक्ति के लिए वाइस चांसलर के खुले समर्थन के बावजूद यह दुखद है कि फ़िरोज़ अभी तक औपचारिक तौर पर ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने आरोप लगाया, 'बीएचयू कैंपस में साम्प्रदायिक आधार पर खुलेआम माहौल ख़राब करने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ वाइस चांसलर ने कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई भी नहीं की।'
परेश रावल ने भी किया फ़िरोज़ का समर्थन
अभिनेता और बीजेपी के पूर्व सांसद परेश रावल ने भी फ़िरोज़ का समर्थन किया है। उन्होंने ट्वीट कर फ़िरोज़ की नियुक्ति का विरोध करने वालों की निंदा की है। परेश रावल ने ट्वीट में लिखा, 'मैं प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति पर विरोध से स्तब्ध हूँ। भाषा का धर्म से क्या लेनादेना है। यह तो विडंबना ही है कि प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान ने अपनी मास्टर और पीएचडी संस्कृत में की है। भगवान के लिए यह मूर्खता बंद की जानी चाहिए।’
Stunned by the protest against professor Feroz Khan !what language has to do with Religion!!! Irony is professor Feroz has done his masters and PhD in Sanskrit !!! For Heavens sake stop this god damn idiocy !
— Paresh Rawal (@SirPareshRawal) November 19, 2019
बता दें कि प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान मुख्य रूप से राजस्थान के बगरू के हैं। उनके पिता भी संस्कृत में स्नातक हैं और वह मंदिर में भजन गाते थे। फ़िरोज़ मुसलिम हैं तो क्या, पूरी ज़िंदगी उन्होंने संस्कृत की ही पढ़ाई की है। दूसरी कक्षा से संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी थी। उन्होंने नेट और जेआरएफ़ की परीक्षा भी पास की है।
हर तरफ़ कमज़ोर पड़ रही संस्कृत शिक्षा के बावजूद संस्कृत की विरासत को ढो रहे फ़िरोज़ पर कुछ लोग अब सवाल खड़े कर रहे हैं। पहले उनके साथ ऐसा नहीं हुआ। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में फ़िरोज़ ख़ान ने कहा था, 'मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी संस्कृत सीखी और मुझे इसका कभी भी महसूस नहीं होने दिया गया कि मैं एक मुसलिम हूँ। लेकिन अब जब मैं पढ़ाने की कोशिश में हूँ एकाएक यही एक मुद्दा बन गया है।' उन्होंने कहा था, ‘दरअसल, मैं जितना संस्कृत साहित्य को जानता हूँ उतना तो क़ुरान को भी नहीं जानता। मेरे क्षेत्र में प्रमुख हिंदू लोग मुसलिम होने के बावजूद संस्कृत और साहित्य में मेरे ज्ञान के लिए मेरी तारीफ़ करते रहे हैं।’