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‘जय श्री राम’ न बोलने पर मदरसे के टीचर पर हमले का आरोप

‘जय श्री राम’ न बोलने पर मदरसे के टीचर पर हमले का आरोप

दिल्ली में मदरसे के एक टीचर को ‘जय श्री राम’ न बोलने पर उसे कार से टक्कर मारकर घायल करने की घटना सामने आई है।

दिल्ली में मदरसे के एक टीचर को ‘जय श्री राम’ बोलने को कहा गया और ऐसा न कहने पर उसे कार से टक्कर मारकर घायल करने की घटना सामने आई है। टीचर का नाम मोहम्मद मोमीन है। यह घटना गुरुवार शाम को रोहिणी में सेक्टर 20 में हुई। बता दें कि पिछले कुछ दिनों में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब ‘जय श्री राम’ या ‘वंदे मातरम’ न बोलने पर मुसलमानों के साथ मारपीट हुई है।

डीसीपी (रोहिणी) एस.डी. मिश्रा ने बताया कि मोमीन ने गुरुवार शाम को 7 बजे पुलिस को इस बारे में सूचित किया। मोमीन ने शुक्रवार सुबह पुलिस में इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराई। मिश्रा के मुताबिक़, घटना के दौरान मोमीन मदरसे के बाहर चहलक़दमी कर रहे थे, तभी सफेद रंग की एक कार उनके सामने रुकी और उसमें बैठे लोग उनसे बात करने लगे। मिश्रा के मुताबिक़, शिकायत में मोमीन ने लिखा है कि कार में बैठे एक शख़्स ने उनसे कार में लिखे जय श्री राम के स्टिकर को देखकर इसे पढ़ने को कहा। जब मोमीन ने ऐसा करने से मना किया तो उन्होंने उसे कार से टक्कर मारकर घायल कर दिया। मोमीन ने बताया कि उन्होंने उन लोगों को नज़रअंदाज करने की कोशिश भी की। मोमीन के मुताबिक़, उन लोगों ने उन्हें गालियाँ भी दीं।

पुलिस ने आईपीसी की धारा 323 के तहत केस दर्ज़ कर लिया है और घटना की जाँच शुरू कर दी है। डीसीपी मिश्रा ने कहा कि शुरुआती जाँच में पुलिस को एक प्रत्यक्षदर्शी मिला है जिसने घटना के बारे में जानकारी दी है लेकिन मोमीन के आरोपों की अब तक पुष्टि नहीं हो पाई है। 

अब सवाल यह है कि आख़िर ऐसी घटनाएँ लगातार क्यों बढ़ती जा रही हैं। क्या ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों के भीतर क़ानून का ख़ौफ़ पूरी तरह ख़त्म हो गया है या उनके ख़िलाफ़ कोई सख़्त एक्शन न होने के कारण वे ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।

हाल ही में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं। पिछले महीने गुड़गाँव के जैकबपुरा इलाक़े के सदर बाज़ार में मुसलिम युवक मोहम्मद बरकत से कुछ लोगों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने को कहा था।

बरकत ने बताया था कि जब उसने ऐसा करने से मना किया तो हमलावरों में से एक ने उसे सुअर का माँस खिलाने की धमकी दी थी। बरकत के मुताबिक़, ‘हमलावरों में से एक व्यक्ति ने उससे कहा था कि इस इलाक़े में धार्मिक टोपी (छोटी टोपी) पहनना पूरी तरह मना है। जब मैंने उसे बताया कि मैं मसजिद से नमाज पढ़कर लौट रहा हूँ तो उसने मुझे थप्पड़ मार दिया।’
इसी साल हरियाणा के ही भोंडसी इलाक़े में कुछ लोगों ने होली के मौक़े पर एक मुसलिम परिवार के सदस्यों को घर में घुसकर बेरहमी से पीटा था। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हुआ था। आरोपियों ने लाठी-डंडों, तलवारों, लोहे की छड़ों और हॉकी स्टिक से परिवार के लोगों पर हमला किया था। आरोपियों ने उन लोगों को गालियाँ दी थीं और कहा था कि वे पाकिस्तान चले जाएँ।

पिछले महीने ही बिहार के बेगूसराय में एक मुसलिम फेरीवाले को उसका नाम पूछने के बाद उसे गोली मार दी गई थी और उसे पाकिस्तान जाने के लिए कहा गया था। फेरीवाले का नाम मोहम्मद कासिम था।

पहले गो तस्करी या गो माँस घर में रखे होने की अफ़वाह में मुसलिमों पर हमले होने की घटनाएँ सामने आती थीं लेकिन पिछले कुछ महीनों में उन्हें ‘जय श्री राम’ या ‘वंदेमातरम’ का नारा लगाने को मजबूर करने पर और उनके ऐसा न करने पर मारपीट की घटनाएँ सामने आ रही हैं। याद दिला दें कि गो तस्करी के शक में पहलू, रकबर और और लोगों की पीटकर हत्या हो चुकी है।

सितंबर 2015 में ग्रेटर नोएडा के दादरी में स्थानीय नागरिक अख़लाक़ को भीड़ ने उनके घर के गो माँस रखे होने और पकाये जाने के शक में पीट-पीट कर मार डाला था। इस बार लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान अख़लाक़ की हत्या के आरोपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंच पर भी दिखाई दिए थे।
अप्रैल 2017 में कथित गो रक्षकों ने राजस्थान के अलवर में 55 वर्षीय बुजुर्ग पहलू ख़ान की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस घटना में घायल हुए पहलू ख़ान के बेटे इरशाद ने बताया था कि उनका डेयरी का कारोबार है और वह इसके लिए जयपुर से गाय और भैंस खरीदकर ले जा रहे थे लेकिन कथित गो रक्षकों ने उन्हें गो तस्कर समझ लिया और उन पर हमला कर दिया।

ऐसी सैकड़ों घटनाएँ हैं और इस तरह की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। और यह घटनाएँ तब हो रही हैं जब लोकसभा चुनाव जीतने के बाद अपने पहले भाषण में प्रधानमंत्री ने चुनाव जीतने के बाद संविधान को नमन करते हुए कहा था कि वह अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की कोशिश करेंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री जी इस तरह आप कैसे अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतेंगे

क्या इस तरह की घटनाओं को सभ्य समाज के लिए कलंक नहीं माना जाना चाहिए। इससे देश के सामाजिक ताने-बाने और सौहार्द्र को गहरी चोट पहुँचती है। और यह क्यों नहीं माना जाना चाहिए कि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले पूरी तरह बेख़ौफ़ हैं और वे किसी से नहीं डरते। इन मामलों पर क्या कभी कड़ी कार्रवाई होगी या अख़लाक, रक़बर, पहलू से शुरू हुआ यह सिलसिला जारी रहेगा। अगर ऐसी घटनाएँ होती रहीं तो यह देश के संविधान की हत्या करने जैसा होगा।

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